सहरसाः राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित डॉ. आरएन सिंह को विश्व हिंदू परिषद ने अध्यक्ष पद की कमान सौंप दी है. मूलतः बिहार के सहरसा जिले के गोलमा गांव के रहनेवाले डॉ. आरएन सिंह को वीएचपी का अध्यक्ष बनाए जाने पर उनके गांव में खुशी है. जिस गांव में आरएन सिंह का जन्म हुआ उस गांव में रविवार को एबीपी की टीम पहुंची. यहां उनके चचेरे भाई बबलू सिंह मिले जिनसे एबीपी ने बातचीत की. इस दौरान डॉ. आरएन सिंह से जुड़ी कई अनकही बातें सामने आईं. पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.


बातचीत की शरुआत करते हुए बबलू सिंह ने बताया कि डॉ. आरएन सिंह चार भाई थे. सबसे बड़े अरविंद सिंह थे जो सहरसा कॉलेज में इंग्लिश के प्रोफेसर थे. दूसरे भाई अमरनाथ सिंह पटना कॉलेज में प्रोफेसर थे. तीसरे नंबर पर डॉ. आरएन सिंह खुद थे और सबसे छोटे भाई संजय सिंह पायलट थे.


गांव में नहीं रहे आरएन सिंह लेकिन लगा रहा आना-जाना


डॉ. आरएन सिंह के तीन बच्चे हैं. पुत्र का नाम डॉ. आशीष और एक पुत्री का नाम डॉ. परितंजलि है जो पटना पीएमसीएच में पढ़ी हैं. वहीं, दूसरी पुत्री का नाम गीतांजलि है और वो भी पढ़ी लिखी हैं. वहीं, बबलू सिंह ने कहा कि शुरुआती दौर में आरएन सिंह गांव में नहीं रहे लेकिन उनका गांव आना-जाना लगा रहता था. उनका व्यवहार बहुत अच्छा था. वो अपने पिता के साथ ही कटिहार और पटना में ही रहे और वहीं पढ़ाई की.


2010 में पद्मश्री अवॉर्ड से उन्हें किया गया था सम्मानित


डॉ. आरएन सिंह पटना यूनिवर्सिटी से 1970 में एमबीबीएस,1976 में पटना यूनिवर्सिटी से ही ऑर्थो, इंग्लैंड में लिवरपूल यूनिवर्सिटी से 1981 में एम सीएच ऑर्थो किया. चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए वर्ष 2010 में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पद्मश्री अवॉर्ड से उन्हें सम्मानित भी किया.


गांव से इतना लगाव था कि वहां भी खोल दिया अस्पताल


डॉ. आरएन सिंह का गांव से कितना लगाव रहा इसके बारे में जानकारी देते हुए बबलू ने कहा कि गांव से उनका इतना लगाव था कि उन्होंने गांव में एक अस्पताल भी खोल दिया था. हर महीने वो गांव पहुंचकर मरीजों का निश्शुल्क इलाज भी करते थे. बीते दो साल से कोरोना को लेकर वो गांव नहीं आए हैं. पिता और डिस्ट्रिक्ट जज राधा बल्लभ सिंह के कहने पर आरएन सिंह ने पटना में एक हड्डी हॉस्पिटल खोला और बेहतर इलाज कर लोगों का दिल जीत लिया.


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