पटनाः बिहार में जातीय जनगणना (Caste Based Census) एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जिसमें पक्ष-विपक्ष जोरशोर से एक साथ दिख रहा है. इस मांग के पीछे हर कोई एक ही बात कह रहा है कि इससे लोगों को फायदा होगा. क्योंकि जब भी हम किसी के लिए योजना बनाते हैं तो उसकी संख्या हमें पता होना चाहिए. हालांकि कई लोग यह भी कहते आ रहे हैं कि यह राजनीतिक फायदे के लिए भी किया जा रहा है. इस मामले में जेडीयू (JDU) संसदीय दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने एबीपी न्यूज को यह स्पष्ट किया कि इसमें कहीं से कोई राजनीतिक फायदे की बात नहीं है. उन्होंने बीजेपी को नसीहत दी तो वहीं पार्टी में गुटबाजी पर निशाना भी साधा.


बीजेपी सत्र में कुछ बोलती है और बाहर कुछः उपेंद्र


उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बीजेपी अगर जातीय जनगणना के पक्ष में अपना मत देती है तो कहीं से कोई नुकसान नहीं है, लेकिन बीजेपी के लोग क्या सोचते हैं और बाहर क्या बोलते हैं पता नहीं. उन्होंने कहा कि अभी कुछ ही दिनों पहले सत्र खत्म हुआ है. उस सत्र में भी एक खास विषय पर बीजेपी के सांसद ने कहा था कि जातीय जनगणना होनी चाहिए. जातीय जनगणना को लेकर मतभेद जैसी कोई बात नहीं है. बीजेपी (BJP) चाहती है और पक्ष में भी है. कुछ लोग जरूर हैं जो इसके खिलाफ कभी-कभी बोल देते हैं, लेकिन जो प्रस्ताव पारित हुआ उसमें बीजेपी ने भी सहमति जताई है और यह सर्वसम्मति से केंद्र को भेजा गया है.


उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि, “नित्यानंद राय जी ने भारत सरकार के मंत्री के रूप में जवाब दिया है. उन्होंने बीजेपी के नेता के रूप में जवाब नहीं दिया है. बीजेपी के नेता के रूप में जो व्यक्ति वहां बोल रहा था सदन में उसने कहा कि जातीय जनगणना जरूरी है सरकार को करना चाहिए.”


कुशवाहा ने कहा कि यह आज की मांग नहीं और ना ही किसी पार्टी विशेष की मांग है. 2011 में जब जनगणना होने वाली थी तो उसके पहले पार्लियामेंट में इस विषय पर चर्चा हुई थी. पार्लियामेंट ने सर्वसम्मति से उस समय कहा था कि जनगणना के समय जाति की भी जनगणना कराई जानी चाहिए. जब कराने की बारी आई तो यह कह कर टाल दिया कि हम इसे अलग से करा लेंगे. बाद में सरकार ने सोशल इकोनॉमिक सर्वे कराया, लेकिन वह भी आधा-अधूरा ही रहा. कुशवाहा ने कहा, “आज जिस तरह नीतीश कुमार लीड कर रहे हैं उस समय ऐसी कोई बात नहीं थी. उस वक्त और लोग थे, पुरानी बात है. आज 10 साल बाद फिर जनगणना होनी है, इसलिए यह मांग उठ रही है. इसमें कहीं से भी राजनीतिक लाभ लेने की बात नहीं है.”


बीजेपी को मतभेद भुलाकर निर्णय लेना चाहिए


आगे कहा कि जब प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनकर पहली बार बिहार आए थे उस समय भी उन्होंने कहा था कि हम पिछड़ा समाज से आते हैं. बार-बार अभी मंत्री परिषद के सदस्यों का परिचय कराते हुए भी कहा गया कि कौन पिछड़ा है और कौन दलित समाज से है. इस तरह की बात जब होती है तो पिछड़ों के पक्ष में और सामाजिक न्याय के पक्ष में लेकिन कोई निर्णय लेना होता है तो बीजेपी कन्नी काटने लगती है. बीजेपी को मतभेद भुलाकर निर्णय लेना चाहिए.


पार्टी में गुटबाजी को लेकर भी साधा निशाना


वहीं, दूसरी ओर पार्टी में गुटबाजी को लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने निशाना साधा. कहा कि प्रदेश या राष्ट्र के स्तर पर भी अब इक्का-दुक्का लोग खुद गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं या खुद ही गलतफहमी पाल लेते हैं तो इससे उनका ही नुकसान हो सकता है. नीचे के स्तर पर अगर किसी ने गलतफहमी पाल लिया है तो उसे दूर करना चाहिए, नहीं तो खुद का नुकसान होगा. क्योंकि पार्टी पूरे तौर पर एकजुट है और आगे भी एकजुट रहेगी. कहा कि जेडीयू में नीतीश कुमार जो चाहते हैं उसके बाद यदि कोई दाएं बाएं दिखता है तो उसका कोई अर्थ नहीं है.


वहीं, जेडीयू में पोस्टर वार को लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जिनलोगों ने होर्डिंग लगवाई उसका जवाब वही दे पाएंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें जैसे ही जानकारी हुई तो इसपर एतराज जताया और उस होर्डिंग पर जिस जेडीयू नेता की तस्वीर लगी थी हमने उनसे फोन पर बात की. पूछा भी था कि ऐसा पोस्टर क्यों लगवाया यह ठीक नहीं है. हमने अपना एतराज उन्हें व्यक्त किया था. यहां बता दें कि मजफ्फरपुर में एक पोस्टर लगाया गया था जिसमें उपेंद्र कुशवाहा को बिहार का भावी मुख्यमंत्री बताया गया था.


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