पटना: बिहार बीजेपी प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल, बिहार बीजेपी प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक संजय टाइगर, बीजेपी नेता योगेंद्र पासवान ने दिल्ली एम्स में जेडीयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) से शुक्रवार को मुलाकात की. कुशवाहा रूटीन चेकअप के लिए दिल्ली एम्स में भर्ती हैं, लेकिन बीजेपी के नेताओं की उनसे मुलाकात ने बिहार की सियासत को गरमा कर रख दिया है. कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं क्योंकि जेडीयू में अपनी अनदेखी से कुशवाहा इन दिनों नाराज चल रहे हैं.


बीजेपी नेताओं से उनकी मुलाकात के बाद से इस बात की आशंका जताई जा रही है बिहार में जल्द बड़ा सियासी उलटफेर हो सकता है. उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय किया था. इसके बाद नीतीश ने उनको जेडीयू संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष और एमएलसी बनाया था. अपने लव कुश समीकरण को मजबूत करने के लिए नीतीश उन्हें पार्टी में लेकर आए थे लेकिन एनडीए सरकार या महागठबंधन सरकार में कुशवाहा मंत्री नहीं बन पाए. उनकी डिप्टी सीएम बनने की भी चर्चा थी लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.



कुशवाहा लड़ना चाहते हैं लोकसभा का चुनाव


उपेंद्र कुशवाहा के पास संगठन में बड़ा पद उनके पास है लेकिन संगठन में उनकी चल भी नहीं रही है. जेडीयू को बार-बार चिट्ठी जारी करना पड़ता है कि कुशवाहा जिस जिले में जाएं कार्यकर्ता उनसे मिलें. कुशवाहा लोक सभा चुनाव भी 2024 में काराकाट से लड़ना चाहते हैं लेकिन जेडीयू के महाबली सिंह अभी वहां से सांसद हैं. कुशवाहा को यह सीट मिलेगी इसकी उम्मीद भी बहुत कम है.


न संन्यासी हूं न...


सियासी गलियारों में चर्चा है कि कुशवाहा खुद नया ठिकाना तलाश रहे हैं. जेडीयू में हो रही अनदेखी पर वह बोल भी चुके हैं कि न मैं संन्यासी हूं न कोई मठ में बैठा हुआ हूं. यह भी बोल चुके हैं कि कब तक पवेलियन में बैठा रहूंगा. उनके बयानों से साफ लग रहा है कि कुछ बड़े फैसले लेने की तरफ बढ़ रहे हैं. वैसे वह इन अटकलों को खारिज कर देते हैं और कहते हैं वो जेडीयू में ही रहेंगे.


वह नीतीश के पुराने सहयोगी हैं. 2000 में नीतीश ने उनको विपक्ष का नेता बनाया था. तब नीतीश की समता पार्टी थी. 2005 में कुशवाहा नीतीश से अलग हो गए थे. एनसीपी में गए, फिर 2010 में वापस जेडीयू में आए और 2010 में नीतीश ने उनको राज्यसभा भेजा. 2013 में ही उन्होंने जेडीयू और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से गठबंधन किया था. एनडीए में उनकी पार्टी को तीन सीट मिली थी. तीनों सीट पर उनकी पार्टी जीत हासिल की थी.


उपेंद्र कुशवाहा केंद्र सरकार में मंत्री बनाए गए थे लेकिन 2018 में महागठबंधन में चले गए. 2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में उनकी पार्टी पांच सीट पर लड़ी जिसमें कुशवाहा खुद काराकाट और उजियारपुर से लड़े लेकिन हार गए. 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ओवैसी के साथ तीसरा मोर्चा बनाया लेकिन सफलता नहीं मिली. उसके बाद अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर दिया. बार-बार पलटी मारने वाले कुशवाहा का एक बार फिर मन डोल रहा है. उनका अगला सियासी कदम क्या होगा सबकी नजरें इस पर टिकी हैं. बीजेपी नेताओं की उनसे मुलाकात ने उनके भाजपा के साथ जाने की अटकलों को और हवा दे दी है.


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