पूर्णिया: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक देख मतदाता भी अभी से अपना महत्व सरकार और प्रत्याशीयों को बता रहे हैं. अगर किसी की जान सिर्फ इस वजह से चल जाती है क्योंकि उसके घर से बीमार अवस्था मे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है. तो दुनिया के संबसे बड़े लोकतंत्र में इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है?


गांव से कोसों दूर है विकास


पूर्णिया के कई ऐसे गांव आज भी हैं, जहां आजादी के 74 वर्ष बाद भी उस तरह से विकास नहीं हुआ है, जिस तरह से होना चाहिए. इन गांव वालों ने आजतक विकास देखा ही नहीं है. शहर से सटे हरदा में बसे विक्रमपट्टी गांव का हाल कुछ ऐसा ही है.आज भी विकास से ये गांव कोसों दूर है.


आज तक नहीं बन पाया है सड़क


आजादी के 74 साल बाद भी इस गांव में सड़क नहीं बना पाया है. आज भी हल्की बारिश में पूरा गांव कीचड़ से सन जाता है. ऐसे स्थिति हो जाती है कि चलना फिरना मुश्किल हो जाता है.


मरीजों ने कई बार रास्ते में तोड़ा दम


विक्रम पट्टी गांव की सड़क की दशा ऐसी है कि अधिक बीमार मरीज रास्ते में ही दम तोड़ दे. सड़क ना होने के कारण मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. गर्भवती महिला की जान हमेशा जोखिम में होती है.


कॉलेज का रास्ता बारिश में हो जाता है बन्द


जिस क्षेत्र में विकास ने कभी झांक कर भी नहीं देखा हो वहां खुद से मेहनत कर शिक्षा जैसे वातावरण को बनाना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. मगर गांव से कोसों दूर एक कॉलेज है, वो भी बारिश के बाद छात्रों के लिए जाना दूभर जाता है. छात्रों को कॉलेज जाने में काफी परेशानी होती है.


मखाना का बड़ी खेती मगर उन्नति नहीं


पूर्णिया का यह गांव मखाना खेती के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां बड़े पैमाने पर मखाना की खेती होती है, लेकिन विकास की राह ताक रहे इस गांव में इतनी बड़ी खेती होने के बावजूद भी वह उन्नत नहीं हो पाया है. यहां उत्पाद को कभी बढ़ावा भी नहीं मिला.


चुनाव में नेता जी केवल करते हैं वादा


10 हजार की आबादी वाले इस गांव की जनता से हर वर्ष विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वादा कर प्रत्याशी वोट ले लेतें है. लेकिन आज तक किसी नेता ने जनता से किया वादा नहीं निभाया है. परिणाम यह है कि इस क्षेत्र की जनता आज भी उद्धारक की बाट जोह रही है. ऐसे में इस हालात से परेशान लोगों ने आगामी विधानसभा चुनाव में वोट वहिष्कार करने का मन बना लिया है. लोगों का यही नारा है, " रोड नहीं तो वोट नहीं."