केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता बनाने में लगे नीतीश कुमार को उनके ही सहयोगी जीतन राम मांझी झटका देने की तैयारी में हैं. जीतन राम मांझी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष हैं और उनका सिंबल कड़ाही है.


अमित शाह से मुलाकात के बाद पटना में मांझी ने कहा कि मैं भी सचिन पायलट की तरह नीतीश सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठूंगा. मांझी ने शराबबंदी पर नीतीश कुमार से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग कर दी है.


मांझी के इस रुख से महागठबंधन के नेता परेशान हैं और सियासी गलियारों में अटकलों का दौर शुरू हो गया है. 2015 में नीतीश कुमार से अलग होने के बाद मांझी ने खुद की पार्टी बनाई थी और पिछले 8 साल में तीन बार पलटी मार चुके हैं. मांझी के बेटे अभी नीतीश सरकार में मंत्री हैं.


3 दिन में जीतन राम मांझी का 3 अलग-अलग बयान


16 अप्रैल- मुझ पर महागठबंधन से प्रेशर है कि मैं अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय कर लूं. अब कोई फैसला लेने का घड़ी आ गया है.


17 अप्रैल- मेरी पत्नी मुझसे कहती है कि मैं नीतीश कुमार से कभी न लड़ूं, क्योंकि उन्होंने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था और मेरे बेटे को मंत्री.


18 अप्रैल- शराबबंदी पर सर्वदलीय बैठक की जरूरत है. मैं सचिन पायलट की तरह नीतीश सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठूंगा.


नीतीश कुमार से क्यों नाराज हैं मांझी?


1. कैबिनेट में अधिक भागीदारी चाहते हैं- जीतन राम मांझी 2021 से ही नीतीश कैबिनेट में अधिक भागीदारी की मांग कर रहे हैं. वर्तमान में उनकी पार्टी के पास 4 विधायक और एक विधानपार्षद हैं. 5 में से 3 पद मांझी के परिवार के सदस्य के पास ही है.


नीतीश कैबिनेट में मांझी की पार्टी को सिर्फ एक पद मिला है. मांझी शुरू से ही 2 पद की मांग कर रहे हैं. साथ ही मंत्रिमंडल में बड़े विभाग की मांग कर रहे हैं. मांझी के बेटे संतोष सुमन के पास अभी लघु सिंचाई और आदिवासी कल्याण विभाग है. 


2. लोकसभा सीट पर सस्पेंस से नाराज- मांझी बिहार की पॉलिटिक्स में बेटे को स्थापित कर खुद दिल्ली की राजनीति करना चाहते हैं. इसके लिए बिहार की गया लोकसभा सीट अपने लिए मांग रहे हैं. 


गया सीट अभी जेडीयू के पास है और विजय मांझी सांसद हैं. ऐसे में नीतीश कुमार इस पर कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे हैं.


मांझी 2019 में गया सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. मांझी को इस बार उम्मीद है कि महागठबंधन से अगर सीटें उनके खाते में जाती है तो यहां जीत मिल सकती है. 


3. हम की कई सीटों पर राजद की दावेदारी- जीतन राम मांझी की पार्टी को गया की चार सीटों पर 2020 में जीत मिली थी. इनमें इमामगंज, बाराचट्टी, टिकारी और सिकंदरा सीट शामिल हैं. 


यह चारों सीट राजद का मजबूत गढ़ रहा है. 2025 में राजद इनमें से 2 सीट बाराचट्टी और टिकारी पर दावा ठोक सकता है. मांझी ये बात भी बखूबी से जानते हैं, इसलिए अभी से नीतीश कुमार पर प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं.


अमित शाह से मांझी की मुलाकात, क्या हुई बात?
जीतन राम मांझी 13 अप्रैल को दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिले. मांझी के अलावा इस मुलाकात में पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष रजनीश कुमार समेत 4 अन्य नेता भी मौजूद रहे. अमित शाह से मिलने के बाद मांझी ने रटा-रटाया पुराना राग अलापा और कहा कि श्रीकृष्ण सिंह और दशरथ मांझी को भारत रत्न देने की मांग के लिए यहां आए थे. 


मांझी और शाह के बीच मुलाकात के बाद बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने द हिंदू से बात करते हुए कहा कि 2023 जाते-जाते नीतीश के साथ कोई नहीं बचेंगे. महागठबंधन में शामिल सभी को पता चल गया है कि नीतीश डूबता हुआ जहाज पर बैठे हैं. 


शाह मांझी के बीच मीटिंग के बाद सिन्हा का यह बयान हम के एनडीए में शामिल होने को लेकर साफ इशारा कर रहा है. ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि मांझी और शाह के बीच गठबंधन को लेकर बात हुई होगी.


शाह से मुलाकात के बाद मांझी ने हम के कार्यकारिणी बैठक में एक बयान भी दिया. उन्होंने कहा कि महागठबंधन और एनडीए दोनों तरफ के लोग पार्टी को विलय करने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन मांझी ऐसा करने वाला नहीं है. अमित शाह से मुलाकात के बाद मांझी के इस बयान को अहम माना जा रहा है.


बीजेपी की रणनीति- छोटी पार्टियों को जोड़कर महागठबंधन से लड़ा जाए
नीतीश कुमार से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी 2014 के मॉडल पर आगे बढ़ रही है. 2014 में बीजेपी लोजपा और रालोसपा के साथ मिलकर 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी इस बार भी इसी रणनीति पर काम कर रही है. 


बीजेपी अब तक चिराग पासवान, पशुपति पारस और उपेंद्र कुशवाहा को साधने में कामयाब हो चुकी है. पार्टी की कोशिश जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को भी साधने की है. सभी लोग पूर्व में बीजेपी के साथ गठबंधन में रह चुके हैं.


बिहार में लोकसभा सीटों की संख्या गठबंधन के लिहाज से कम है. इस वजह बीजेपी की कोशिश कुछ पार्टियों को विलय कराने की भी है, जिससे सीट बंटवारे का खेल न खेलना पड़े. बिहार में लोजपा 6 और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी 3 सीटों पर पहले से ही दावा ठोक चुकी हैं. 


ऐसे में बीजेपी के पास लोकसभा चुनाव में छोटी-छोटी पार्टियों को भी देने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. यही वजह है कि अमित शाह से मुलाकात और बातचीत के बाद भी मांझी पत्ता नहीं खोल रहे हैं.


तो फिर मांझी अब आगे क्या करेंगे?
जीतन राम मांझी के राजनीतिक भविष्य को लेकर 2 बड़ी संभावनाएं हैं. पहला, मांझी प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए अपनी बात महागठबंधन में मनवा लें और नीतीश कुमार के साथ ही रहे. मांझी मीडिया में भी यह कह चुके हैं कि मैं हमेशा नीतीश के साथ ही रहूंगा. 


मांझी के हालिया कदम से इस बात की संकेत सबसे अधिक मिल रहा है. अमित शाह से मिलने के बाद मांझी लगातार नीतीश कुमार की तारीफ कर रहे हैं. 


दूसरी बड़ी और मजबूत संभावनाएं है कि मांझी बीजेपी के साथ आकर खुद दिल्ली की और परिवार के अन्य लोगों को बिहार की पॉलिटिक्स में स्थापित करें. हालांकि, सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी ने अब तक साथ आने के लिए यानी गठबंधन के लिए किसी भी तरह का ऑफर नहीं दिया है.


कांग्रेस, राजद और जेडीयू... 33 साल में 7 बार पलटी मार चुके हैं मांझी
1. 1980 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार फतेहपुर से विधायक बने. 1983 में चंद्रशेखर सिंह की सरकार में मंत्री बने. 1985 में दोबारा विधायक बनने में कामयाब रहे और बिंदेश्वरी दुबे की सरकार में मंत्री बने. 1990 में चुनाव हार गए तो कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी में शामिल हो गए.


2. 1996 में जनता दल में टूट हो गई और सरकार में शामिल लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल का गठन कर लिया. मांझी जनता दल छोड़ लालू के साथ राजद में चले गए. 1996 में भागवती देवी के सांसद बनने से बाराचट्टी सीट रिक्त घोषित हुआ और यहां उपचुनाव कराए गए.


3. 1996 में राजद ने मांझी को बाराचट्टी सीट से उतार दिया. मांझी विधायकी जीतने में कामयाब रहे, जिसके बाद लालू कैबिनेट में शामिल हुए. 2000 में फिर राबड़ी कैबिनेट में शामिल हुए, लेकिन 2005 में मांझी ने राजद का भी दामन छोड़ दिया.


4. 2005 में राजद का साथ छोड़ने के बाद मांझी जेडीयू में शामिल हो गए और नीतीश सरकार बनने के बाद कैबिनेट में शामिल हुए. 2014 में मांझी की किस्मत पलटी और बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद मांझी ने जेडीयू से बगावत कर दी.


5. 2015 में जीतन राम मांझी ने खुद की नई पार्टी बनाई और बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया. हालांकि, चुनाव में बीजेपी और मांझी दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा. 2017 में मांझी ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया.


6. 2017 में मांझी कांग्रेस नीत यूपीए में शामिल हो गए और 2019 में राजद-कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली. 2020 में यूपीए छोड़ फिर एनडीए में शामिल हो गए.


7. 2022 में नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ा तो जीतन राम मांझी भी उनके साथ आ गए. मांझी नीतीश और लालू के साथ महागठबंधन सरकार में शामिल हो गए.


अब जानिए बिहार पॉलिटिक्स में मांझी कितने मजबूत?
पूर्णिया की रैली में नीतीश कुमार ने मांझी से कहा था कि कुछ लोग आप पर नजर रखे हुए हैं, लेकिन आप कहीं जाइएगा मत. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार पॉलिटिक्स में मांझी कितने मजबूत हैं?


2015 के चुनाव में मांझी की पार्टी को करीब 2 फीसदी वोट मिला था. हम 21 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें से 1 पर जीत मिली थी. 2020 के चुनाव में मांझी की पार्टी के वोट फीसदी में गिरावट आई, लेकिन सीटों की संख्या में बढ़ोतरी हुई.


2020 में हम को 0.89 फीसदी वोट मिले, जबकि 4 सीटों पर जीत हुई. मांझी बिहार में मुसहर समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं. जीतन राम मांझी के मुताबिक बिहार में मुसहर जातियों की आबादी करीब 55 लाख हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़े में यह 30 लाख से कम है.