Demand to Give Bharat Ratna To Nitish Kumar: दो दिनों पूर्व बिहार में एक बड़ी सियासी हलचल हुई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की ओर से प्रदेश कार्यालय में राज्य कार्यकारिणी की बैठक हुई, मुख्यमंत्री नितीश खुद भी इस बैठक में शामिल हुए. कार्यालय के गेट पर बड़े-बड़े पोस्टर बैनर लगाया गया. उसमें एक खास पोस्टर था नीतीश कुमार को भारत रत्न मिलना चाहिए. पार्टी के बड़े पद पर स्थापित कार्यकर्ताओं ने जहां बयान दिया कि उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए तो पार्टी के कई मंत्री और वरिष्ठ नेताओं ने भी इसमें हामी भर दी और कहा कि नीतीश कुमार ने इतना ज्यादा बिहार के लिए और देश के लिए काम किया है उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए.


राजनीतिक विशेषज्ञ की क्या है राय?


अब सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री रहते किसी को भारत रत्न मिला है और इसके पीछे की राजनीति क्या है? ये मांग उनके नेता लोग कर रहे हैं या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इशारे पर सब कुछ हो रहा है. विपक्ष ने तो सीधे तौर पर पागलपन करार दिया था और कहा था कि यह बीजेपी की साजिश है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि इसके पीछे रणनीति क्या है? इस मामले पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ संतोष कुमार ने कहा कि जेडीयू में जो कुछ भी होता है, कोई भी नेता बयान देते हैं या कोई पोस्टर बैनर लगाते हैं तो बिना नीतीश के इशारे पर कुछ नहीं होता है जो भी होता है एक अने मार्ग से दिए गए आदेश पर ही किया जाता है.


संतोष कुमार ने कहा कि जब एक बार भीम सिंह ने बगैर इजाजत के कह दिया था कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के चेहरा हो सकते हैं तो उन पर नीतीश कुमार काफी फटकार लगाए थे, फिर इतनी बड़ी बात का बैनर लग गया, वह भी नीतीश कुमार उस बैठक में शामिल हुए और उनकी ओर से ऐसी कोई बात नहीं की गई तो यह साफ है कि भारत रत्न नीतीश कुमार की चाहत है. नीतीश कुमार कहीं ना कहीं इतिहास रचना चाहते हैं कि क्योंकि अभी तक देश की आजादी के बाद 6 मुख्यमंत्री को भारत रत्न की उपाधि दी गई है लेकिन मात्र एक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे डॉ० विधान राय को मुख्यमंत्री काल में भारत रत्न मिला था और और एक को केंद्रीय गृह मंत्री काल में बाकी चार को मरणोपरांत मिला है.


ऐसे में नीतीश कुमार अपने जीते जी भारत रत्न लेकर डॉ. विधान राय का रिकॉर्ड तोड़ते हुए दूसरे नंबर में हो जाएंगे. उन्होंने बताया कि देश में सबसे पहले 1957 में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत को मिला था. वह 26 जनवरी 1950 से 27 दिसंबर 1954 तक मुख्यमंत्री रहे थे, हालांकि 1955 से अपनी मृत्यु 7 मार्च 1961 तक देश के गृह मंत्री रहे और गृह मंत्री कल में उन्हें भारत रत्न मिला था. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे डॉ. विधान चंद्र राय को 1961 में भारत रत्न मिला था. डॉ. विधान  पश्चिम बंगाल के पहले और 1948 से 1962 तक के मृत्यु तक मुख्यमंत्री बने रहे थे और मुख्यमंत्री काल में भारत रत्न दिया गया था.


तीसरा भारत रत्न के कामराज को 1976 में मिला था. वह तमिलनाडु के तीसरे मुख्यमंत्री रहे थे. 1975 में उनकी मृत्यु हुई और 76 में 1976 में उन्हें भारत रत्न मिला था. वह 1954 से 1963 तक मुख्यमंत्री रहे थे चौथा भारत रत्न 1988 में एमजी रामचंद्रन को भारत रत्न मिला था, वह तमिलनाडु के तीसरे मुख्यमंत्री रहे थे 1980 से 1987 तक मुख्यमंत्री रहे. उनकी मृत्यु के बाद 1988 में उन्हें भारत रत्न मिला. पांचवा भारत रत्न असम के पहले मुख्यमंत्री रहे गोपीनाथ बोरदोलोई को 1999 में मिला. वह उनकी 1950 में ही मृत्यु हो गई थी. छठे नंबर पर बिहार 11 वें मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को 2024 में भारत रत्न मिला है. कपूरी ठाकुर 1977 से 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे और 1988 में उनकी मृत्यु हुई थी.


'विधान चंद्र राय का रिकॉर्ड तोड़ना चाहते हैं नीतीश'


संतोष कुमार ने बताया कि नीतीश कुमार कहीं ना कहीं विधान चंद्र राय का रिकॉर्ड तोड़ना चाहते हैं और रही बात नीतीश कुमार के बाद अगले चेहरे की तो नीतीश कुमार अपना उत्तराधिकारी मरते दम तक किसी को नहीं बनाएंगे और निश्चित तौर पर 2025 का चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. 2025 में बहुमत आया तो फिर वही मुख्यमंत्री बनेंगे. मुख्यमंत्री बनने के बाद वह किसी को प्रमोट कर दें, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. उनके मरने के बाद अगर पार्टी टूटने के कगार पर आएगी तो ऐसी संभावना जताई जा रही है कि नीतीश कुमार का बेटा निशांत कुमार को आगे किया जा सकता है. नीतीश के पार्टी में पुराने नेता श्रवण कुमार और एक दो नेता है जो उनके शुरू दौर से हैं, लेकिन कभी नीतीश ने उनको आगे नहीं किया.


इसमें बीजेपी की कोई साजिश नहीं दिखती है क्योंकि बीजेपी भी यह जानती है कि नीतीश कुमार के बगैर वह अकेले बिहार की सत्ता में नहीं आ सकती है. नीतीश कुमार के नहीं रहने के बाद वह दावा कर सकती है, लेकिन उनके जीते जी ऐसा संभव नहीं है. कुल मिलाकर नीतीश कुमार केंद्र पर दबाव बनाकर अपनी राजनीति पहचान बनाना चाहते हैं. अभी केंद्र  की सरकार में जेडीयू बड़े सहयोगी के रूप में ऐसे में मौके को देखते हुए नीतीश कुमार ने इस मांग को आगे कर दिया है.


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