DP Ojha Passes Away: लालू-राबड़ी राज के शासनकाल में डीजीपी के पद पर तैनात रहे चर्चित आईपीएस अधिकारी डीपी ओझा का बीते शुक्रवार (06 दिसंबर) को निधन हो गया. इसे अहम संयोग ही कहा जा सकता है कि उनके जीवन में 6 दिसंबर का दिन बहुत अहम रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि 6 दिसंबर 2003 को ही राबड़ी देवी की सरकार ने उन्हें डीजीपी के पद से हटा दिया था. उस समय राबड़ी सरकार के लिए डीपी ओझा टेंशन बन चुके थे. क्योंकि लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी रहे उस वक्त के बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन पर नकेल कसने में डीपी ओझा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
बिहार कैडर के 1967 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे डीपी ओझा को एक फरवरी 2003 को डीजीपी के पद पर नियुक्त किया गया था. फरवरी 2004 में निर्धारित सेवानिवृत्ति से कुछ महीने पहले छह दिसंबर 2003 को उन्हें पद से हटा दिया गया था. कहा यह भी जाता है कि लालू-राबड़ी के 15 साल के शासनकाल का अंत 2005 में हुआ था, लेकिन उसकी नींव 2003 में डीजीपी बनने के बाद डीपी ओझा ने ही रखी थी.
...और सरकार की हुई थी किरकिरी
डीजीपी का पद संभालने के बाद राबड़ी सरकार की कुंडली खंगालने में जुट गए थे. उन्होंने बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के एके-47 खरीदने का खुलासा किया था. इसके बाद सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी. डीपी ओझा काफी चर्चा में आ गए थे. उस वक्त विपक्ष में रही बीजेपी और जेडीयू ने सरकार को जमकर घेरा था. अंत में राबड़ी सरकार ने डीपी ओझा को डीजीपी के पद से हटाने का निर्णय ले लिया था.
उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी जिसमें उन्होंने राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी. उस रिपोर्ट में पाकिस्तान में स्थित संगठनों के साथ सांसद के संबंध होने का दावा किया गया था. रिपोर्ट के तुरंत बाद उनका स्थानांतरण आदेश जारी कर दिया गया था.
डीपी ओझा की रिपोर्ट में शहाबुद्दीन पर कश्मीर से सक्रिय आतंकवादियों से कई एके-47 खरीदने और उसमें कुछ एके-47 वाराणसी के कौआकोल विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी नेता अजय राय को बेचने का आरोप लगाया था. हालांकि अजय राय ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन किया था. यह वही अजय राय थे जिन्हें कांग्रेस ने 2014 में वाराणसी लोकसभा सीट से पीएम मोदी के खिलाफ उतारा था. बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में वे शामिल हो गए थे.
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