पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी बिगुल बजने को है और ऐसे में तमाम राजनैतिक हलकों में सीटों की दावेदारी की हनक गूंजने लगी है. अब बड़ा सवाल ये है कि सीटों की गणित क्या होगी? क्योंकि जब दुश्मन सामने हो तो लड़ाई आसान होती है, लेकिन जब दुश्मन ही दोस्त बन जाए तो मामला पेंचीदा हो जाता है. ऐसे ही हालात बिहार की तमाम पार्टियों के हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 का हालात कुछ ऐसा ही था कि बीजेपी-जेडीयू के अलावे जेडीयू-एलजेपी आमने सामने थी. वहीं कहीं आरएलएसपी और आरजेडी तो कहीं हम और जेडीयू एक दूसरे को चुनौती दे रही थी. सबसे खास बात ये रही कि इस टक्कर में किसी को जीत मिली तो कोई दूसरे स्थान पर रहा.
इस विधानसभा चुनाव में गठबंधन में बदलाव
इस बार विधानसभा चुनाव में तमाम गठबंधन में बदलाव आए हैं. एनडीए की बात करें तो जेडीयू एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. ऐसे में जेडीयू-बीजेपी की 52 सीटों के अलावा 46 सीटों पर अन्य दलों की दावेदारी पर मामला फंस सकता है.
2015 चुनाव में आमने-सामने
2015 के चुनाव में हम और जेडीयू 12 सीटों पर आमने-सामने थीं. तो जेडीयू और एलजेपी मुकाबला 21 सीटों पर था. आरएलएसपी के साथ आरजेडी और कांग्रेस 14 सीटों पर थी. वहीं जेडीयू और बीजेपी का 52 सीटों पर मजबूत मुकाबला रहा था.
महंगठबंधन में यहां फंस सकता है पेंच
2015 चुनाव के आंकड़ों की बात करें तो जेडीयू और बीजेपी के बीच 52 सीटों पर कड़ी टक्कर थी, जिनमें एक को जीत हासिल हुई तो दूसरे नंबर पर टक्कर देने वाले प्रत्याशी रहे. कुछ ऐसे हीं हालात थे आरजेडी-आरएलएसपी और कांग्रेस आरएलएसपी की. अधिकतर सीटों आरएलएसपी हार गई तो वो सीटें कहीं आरजेडी तो कहीं कांग्रेस के पाले में आए. पिछले चुनाव में आरएलएसपी बीजेपी गठबंधन के साथ थी और इस बार आरजेडी गठबंधन के साथ है. ऐसे में सीटों के बंटवारे का पेंच एक बार फिर फंसेगा.