6 महीने में 41 विदेशी नागरिक अरेस्ट, बिहार-नेपाल का बॉर्डर क्यों बन गया है घुसपैठ का अड्डा?
हाल ही में बिहार पुलिस ने किशनगंज से 2 चीनी नागरिकों को गिरफ्तार किया है. आशंका जताई जा रही है कि दोनों भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों की गतिविधियों की जानकारी लेने पहुंचे थे.
इंटरनेशल बॉर्डर पर घुसपैठ को लेकर बिहार पुलिस ने चौंकाने वाला डेटा जारी किया है. बिहार के अपर पुलिस महानिदेशक (मुख्यालय) जितेंद्र सिंह गंगवार के मुताबिक पिछले 6 महीने 41 विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है. सभी विदेशी नागरिक सीमा पर अवैध तरीके से घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे.
हाल ही में बिहार पुलिस ने किशनगंज से 2 चीनी नागरिकों को गिरफ्तार किया है. आशंका जताई जा रही है कि दोनों भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों की गतिविधियों की जानकारी लेने पहुंचे थे. दोनों आरोपियों की पहचान झाओ जिंग और फूं कांग के रूप में हुई है, जो चीन के जियांग्शी प्रांत के रहने वाले हैं.
बिहार बॉर्डर पर लगातार हो रहे विदेशी नागरिकों की गिरफ्तारी ने सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं. मोतिहारी के एसपी कान्तेश कुमार मिश्रा ने बताया कि दोनों चीनी युवकों को रिमांड पर लिया गया है, उससे पूछताछ के बाद ही घुसपैठ का मकसद पता चल पाएगा.
इधर, एक सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है. आखिर क्यों बिहार से सटे नेपाल बॉर्डर घुसपैठियों का पसंदीदा अड्डा बनता जा रहा है?
2022 में 16 और 2021 में 11 गिरफ्तार
बिहार पुलिस मुख्यालय के मुताबिक 2022 में बिहार-नेपाल सीमा से 16 विदेशी नागरिकों को अवैध घुसपैठ के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इनमें नाइजीरियन और चीन के नागरिक भी शामिल थे. 16 में से 7 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने 2022 में ही चार्जशीट दाखिल कर दिया था.
पुलिस मुख्यालय के मुताबिक 2022 में 16 में 5 विदेशी नागरिक तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे. बात 2021 की करें तो इस साल भी बिहार-नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार विदेशी नागरिकों की संख्या डबल डिजिट में था. रिपोर्ट के मुताबिक बॉर्डर इलाके से 11 विदेशी नागरिक 2021 में गिरफ्तार किए गए.
2021 में भी सीमावर्ती इलाकों से चीनी नागरिकों को अवैध घुसपैठ के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. बिहार पुलिस ने 2020 और 2019 में भी करीब 10-10 विदेशी नागरिकों को अवैध घुसपैठ के आरोप में पकड़ा था.
घुसपैठ का अड्डा क्यों बना बिहार का बॉर्डर, 3 प्वॉइंट्स...
1. बॉर्डर पर मजबूत फेसिंग नहीं- भारत नेपाल के साथ 1751 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. इसमें सबसे ज्यादा लंबाई बिहार (729 किमी) की है. बिहार के करीब 10 जिले नेपाल बॉर्डर से लगे हैं. इनमें बेतिया, मोतिहारी, सीतामढ़ी, किशनगंज, अररिया और मधुबनी जैसे जिले प्रमुख रूप से शामिल हैं.
बिहार से सटे नेपाल बॉर्डर पर बंगाल और पंजाब की तरह मजबूत ताड़बंदी नहीं की गई है. समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए आईपीएस अधिकारी और उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि जब से पंजाब और बंगाल के बॉर्डर पर फेंसिंग हुई है उसके बाद से ही नेपाल राष्ट्र विरोध ताकतों का एक आसान रास्ता बन गया है.
वहीं बॉर्डर पर फेसिंग नहीं होने की वजह से घुसपैठी स्थानीय लोगों की मदद से आसानी से भारत में एंट्री कर लेते हैं. मधुबनी और सीतामढ़ी जिले में घुसपैठ रोकने में जमुनी नदी काफी हद तक सुरक्षाबलों के लिए मददगार साबित होती रही है, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह नदी भी लगातार सूख रही है.
इस वजह से घुसपैठिएं आसानी से नदी को पार कर भारत में आ जाते हैं. इतना ही नहीं, बिहार सीमा से नेपाल के जो भी हिस्सा लगा हुआ है, वहां परिवहन व्यवस्था पूरी तरह सुचारू है. यानी बॉर्डर पर आने में घुसपैठियों को कोई कठिनाई नहीं होती है. इसलिए यह इलाका घुसपैठियों का पसंदीदा अड्डा बन चुका है.
2. चिकेन नेक साबित हो रहा है कमजोर कड़ी- नेपाल, भूटान, बांग्लादेश से संपर्क स्थापित के लिए बनाए गए सिलिगुड़ी कॉरिडोर यानी चिकेन नेक भी कमजोर कड़ी साबित हो रहा है. स्थानीय अखबार प्रभात खबर के मुताबिक इस कॉरिडोर पर नेपाल और भूटान के लोगों की आवाजाही को लेकर कोई तय नियम नहीं है.
हालांकि, सीमा सुरक्षा बल और असम राइफल्स के जवान समय-समय पर गुप्त सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई करती रहती है. इस इलाके को सुरक्षा दृष्टि से काफी संवेदनशील माना जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक इसका फायदा घुसपैठिएं भी उठाने लगे हैं. चीन लंबे समय से चिकेन नेक को टारगेट पर रख रखा है. चिकेन नेक किशनगंज से शुरू होकर उत्तर दिनाजपुर, दार्जिलिंग और मालदा तक विस्तारित है. यह गलियारा 60 किमी लंबा और 20 किमी चौड़ा है और उत्तर-पूर्व हिस्से को बाकी भारत से जोड़ता है.
अंग्रेजी पत्रिका द वीक ने इसी साल मार्च में चिकेन नेक को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. रिपोर्ट में सैन्य अभ्यास का जिक्र किया था. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन चिकेन नेक के उत्तर भाग में स्थित जोम्पेलरी पर कब्जा करना चाहता है. चीन अगर इस काम में सफल हो जाता है, तो वो सिलिगुड़ी कॉरिडोर की सारी गतिविधियां जान सकेगा.
3. तस्करों का सांठगांठ भी घुसपैठ का कारण- बिहार से लगे नेपाल का बॉर्डर पर अंतरराष्ट्रीय तस्कर सक्रिय हैं. बॉर्डर पर यूरिया, शराब, चावल, ड्रग्स पदार्थ आदि की तस्करी धड़ल्ले से होती है. नेपाल बॉर्डर से एक दिन में करोड़ों की तस्करी होती है. पिछले 3 साल करीब 15 विदेशी नागरिकों को सीमा सुरक्षा बल ने तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया है.
तस्करी रोकने और नियमित मॉनिटरिंग के लिए नेपाल बॉर्डर पर 450 से ज्यादा चेकपोस्ट बनाए गए हैं. इनमें 193 चौकियां बिहार में ही है. हालांकि, पूरी तरह तस्करी रोकने में ये चौकियां भी विफल साबित हुई है. तस्करों की मदद से ही घुसपैठिएं बिहार के रास्ते आसानी से भारत में एंट्री कर लेते हैं.
दरभंगा मॉड्यूल ने बढ़ाई और अधिक टेंशन
बिहार का दरभंगा घुसपैठिएं और आतंकियों के पनगाह के लिए पहले से ही बदनाम है. साल 2013 में इंडियन मुजाहिद्दीन के सरगना यासीन भटकल की गिरफ्तारी दरभंगा से ही हुई थी. उस वक्त सीमा सुरक्षा को लेकर खूब सवाल उठे थे.
जांच एजेंसी से पूछताछ में भटकल ने बताया था कि गिरफ्तारी से पहले उसने दरभंगा के अलग-अलग इलाकों में करीब 6 महीने से रह रहा था. भटकल ने नेपाल के रास्ते ही भारत में एंट्री की थी.
इतना ही नहीं, एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010-2014 तक दरभंगा से इंडियन मुजाहिद्दीन के करीब 14 आतंकी दरभंगा से गिरफ्तार किए गए थे. 2021 में भी दरभंगा रेलवे स्टेशन पर एक पार्सल मिला था, जिसमें विस्फोटक मौजूद था. इस केस की जांच एनआईए कर रही है.