बेंगलुरु में प्रेस कॉन्फ्रेंस किए बिना पटना लौटे नीतीश कुमार की नाराजगी का जेडीयू ने खंडन किया है. पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा है कि नीतीश विपक्षी एकता के सूत्रधार हैं और सूत्रधार कभी नाराज नहीं होते. सिंह ने नाराजगी की खबर को बीजेपी की साजिश बताया और गठबंधन में सब कुछ सही होने का दावा किया.


जेडीयू की सफाई के बीच सियासी गलियारों में एक सवाल और भी तैर रहा है, अगर सब कुछ ठीक है तो नीतीश कुमार मीटिंग में INDIA के संयोजक क्यों नहीं बन पाए? वो भी तब, जब लालू प्रसाद यादव ने इस बात की पैरवी भी की?


समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि विपक्षी एकता की मीटिंग में लालू यादव ने कहा कि नीतीश संयोजक बना देना चाहिए. कहा जा रहा है कि लालू यादव की पैरवी के बावजूद गठबंधन में संयोजक चुनने का मामला मुंबई मीटिंग तक के लिए टाल दिया गया. 


मुंबई में अगले महीने शिवसेना (यूबीटी) की ओर से मीटिंग का आयोजन किया जाएगा. इसी बैठक में संयोजक का चयन होगा और कॉर्डिनेशन कमेटी के 11 नाम भी यहीं फाइनल होंगे. 


नीतीश क्यों नहीं बन पाए संयोजक, 3 वजहें...


1. कई दावेदार, स्ट्रक्चर फाइनल नहीं- विपक्षी एकता का स्ट्रक्चर कैसा होगा, यह अभी फाइनल नहीं है. कुछ नेता एनडीए की तरह एक चेयरमैन और एक संयोजक रखने के पक्ष में है. कुछ का मानना है कि एक संयोजक और बाकी सदस्य हों. 


अखबार डेक्कन हेराल्ड ने सूत्रों के हवाले से बताया कि शरद पवार ने सोनिया गांधी को केंद्र में रखने की बात कही, लेकिन सोनिया ने खुद को फैसला लेने वाली जिम्मेदारी से बाहर रखने को कहा है. इससे पहले चर्चा थी कि सोनिया गांधी को चेयरमैन और नीतीश कुमार को संयोजक बनाया जा सकता है. 


सोनिया ने कहा कि वो गठबंधन को एकजुट रखने के लिए काम करेंगी. वो फैसला लेने में नहीं रहेंगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बैठक में संयोजक पद की चर्चा शुरू हुई तो एक साथ कई दावेदारों के नाम सामने आ गए. कुछ नेताओं ने सभी क्षेत्र से एक-एक संयोजक बनाए जाने की सलाह दे दी.


हालांकि, इस मुद्दे को कांग्रेस ने मुंबई मीटिंग में सुलझाने की बात कही. बाद में नीतीश ने भी इस पर हामी भरी.


2. मलमास भी बड़ी वजह? जेडीयू सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार के संयोजक नहीं बनने के पीछे एक बड़ी वजह मलमास है. हिंदू धर्म मान्यताओं के मुताबिक मलमास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. 18 जुलाई यानी कल से ही मलमास की शुरुआत हो गई और यह अगले महीने के 16 तारीख तक चलेगा.


मान्यताओं के मुताबिक मलमास के वक्त कोई भी शुभ काम शुरू करने से हानि की आशंकाएं ज्यादा रहती है. हिंदू पंचांग की मानें तो हर तीन साल पर एक बार मलमास आता है. 


जेडीयू सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार का संयोजक बनना तय है. मुंबई की बैठक में इसकी घोषणा की जा सकती है. इस हिसाब से देखें तो विपक्षी गठबंधन की अगली बैठक 16 अगस्त के बाद हो सकती है. 


3. एक मीटिंग में एक ही फैसला- विपक्षी एकता के सूत्रधार हड़बड़ी में कोई भी फैसला नहीं लेना चाहते हैं. शुरू से ही एक मीटिंग में एक फैसला लेने का लक्ष्य रखा गया है. पटना की मीटिंग में सभी के एकजुटता का संदेश दिया गया था. उसी तरह बेंगलुरु की मीटिंग में नाम फाइनल किया गया.


इसी फॉर्मूले के तहत सीट बंटवारे पर भी चर्चा नहीं हो पाई. कर्नाटक के स्थानीय अखबार डेक्कन हेराल्ड ने सूत्रों के हवाले से बताया कि अरविंद केजरीवाल ने सीट बंटवारे की बात शुरू की, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें रोक दिया. राहुल ने कहा कि इसे आसानी से हम सुलझा लेंगे.


राजगीर में नीतीश कुमार ने भी कह दिया है कि उन्होंने जो प्रस्ताव दिए थे, उसी हिसाब से काम हो रहा है. बीजेपी को इस मीटिंग से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.


मुंबई में मीटिंग करने का सुझाव नीतीश का, कहीं ये वजह तो नहीं?
बेंगलुरु मीटिंग में मुंबई में अगली बैठक करने का सुझाव नीतीश कुमार ने ही दिया. अब तक जिन 2 राज्यों में विपक्षी एकता की मीटिंग हुई है, वहां गठबंधन के घटक दलों की सरकार है. वहीं मुंबई में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है. 


ऐसे में सवाल उठता है कि नीतीश कुमार ने मुंबई में बैठक करने की सलाह क्यों दी है? मुंबई में शिवेसना की ओर से मीटिंग का आयोजन किया जाएगा.


1. 2019 के बाद विपक्षी पार्टी के भीतर सबसे अधिक टूट महाराष्ट्र में ही हुई है. वहां 2 बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां अब तक टूट चुकी है. शरद पवार ने मीटिंग में टूट के पीछे ईडी-सीबीआई को बताया. ऐसे में माना जा रहा है कि मुंबई में मीटिंग कर विपक्ष मनोवैज्ञानिक बढ़त लेना चाह रहा है. बिहार के बाद महाराष्ट्र से सबसे अधिक दल विपक्षी एकता में शामिल हैं. 


2. एक चर्चा आजादी से पहले हुए कांग्रेस के अधिवेशन से भी जोड़कर की जा रही है. पूर्ण स्वराज्य की मांग के बाद कांग्रेस के 12 अधिवेशन हुए. 1934 में कांग्रेस ने मुंबई में अधिवेशन बुलाया, जिसमें राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया था. पूर्ण स्वराज्य की मांग के बाद बिहार के राजेंद्र प्रसाद ही कांग्रेस के अध्यक्ष बन पाए. राजेंद्र बाबू आजाद भारत में पहले राष्ट्रपति बने.