Bharat Jodo Yatra Bihar: कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत बिहार में हो चुकी है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बांका के मंदार पर्वत से आधिकारिक रूप से इसकी शुरुआत की. यह यात्रा 1200 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए गया में समाप्त होगी. इस यात्रा के समापन समरोह में राहुल गांधी भी शामिल होंगे, लेकिन अहम सवाल यह है कि यात्रा के बाद क्या बिहार में कांग्रेस फ्रंट पर आकर सियासी दमखम दिखा पाएगी?


ऐसा इसलिए कि यूपी में जिस तरह से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने से इनकार किया ठीक उसी तरह बिहार में आरजेडी और जेडीयू ने कांग्रेस की बिहार पदयात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया. ये हाल उस समय है, जब कांग्रेस नीतीश कुमार की गठबंधन सरकार में शामिल है. 


ये बात अलग है कि लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही काफी वक्त है, लेकिन बीजेपी की तरह कांग्रेस (Bihar Congress) ने राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है. बिहार में कांग्रेस की भारत जोड़ो पदयात्रा के पीछे मुख्य मकसद पार्टी को बिहार में मजबूत करने की है. पदयात्रा उसी योजना का हिस्सा है. कांग्रेस इस यात्रा के जरिए गठबंधन दलों को अपनी हैसियत का भी अहसास कराना चाह रही है. 



बिहार में फ्रंटफुट पर खेलेगी कांग्रेस!


बिहार में कांग्रेस पिछले कई सालों से आरजेडी के साये से बाहर नहीं निकल पाई है. ऐसे में कांग्रेस इस यात्रा के जरिए आरजेडी के साये से बाहर निकलने की छटपटाहट में है. साफ है कि इस यात्रा का सियासी मकसद बड़ा है. आज जिस तरह लोगों के बांटने की राजनीति हो रही है उससे लोगों को अगाह करना भी कांग्रेस का दायित्व है. फिर कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है. किसी को यह भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि ये कभी याचक की भूमिका में रहेगी. कांग्रेस नेताओं के बयानों से साफ है कि कांग्रेस अब बिहार में फ्रंटफुट पर बल्लेबाजी करने को आतुर हैं. पिछले कुछ वर्षों से सहयोगी दलों ने कांग्रेस को सीट देने में अनदेखी की है. पार्टी अब आने वाले दिनों में इस मसले पर समझौता नहीं करेगी. फिलहाल, कांग्रेस अपनी इस यात्रा के जरिए बिहार में एक तीर से कई निशाने साधने की फिराक में है. 


परंपरागत समर्थकों को पार्टी से जोड़ने की कवायद


आजादी के बाद दशकों तक बिहार में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी और अगड़ों के दम पर अपनी सरकार बनाती रही. एक बार कांग्रेस उसी राह पर बढ़ती दिखाई दे रही है. कांग्रेस के तौर तरीके से साफ है कि वो बिहार में अपनी परंपरागत मतदाताओं को हासिल करने में जुटी है. एक साल पहले तक बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन झा थे, उन्होंने ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश की. अब अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. वो भूमिहार समुदाय से आते हैं. अखिलेश भी बिहार में ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ, बनिया, राजपूत व अन्य को पार्टी से जोड़कर आरजेडी और जेडीयू को कांग्रेस की मूल ताकत का अहसास कराना चाहते हैं. इसका नजारा कांग्रेस पदयात्रा में भारी संख्या में लोगों को जोड़कर पेश करना चाहती है. पदयात्रा को सफल बनाने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा के भी शामिल होने की चर्चा है. पदयात्रा के समापन अवसर पर राहुल गांधी खुद मौजूद होंगे. 


कांग्रेस बिहार में खो चुकी है जमीन


बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस की सीट 27 से घटकर 19 रह गई. यानि 240 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के सिर्फ 19 विधायक हैं. बिहार में कांग्रेस तीसरे दर्जे की पार्टी है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि 2020 विधानसभा चुनाव में आरजेडी की वजह से ही कांग्रेस को 19 सीटों पर जीत हासिल हो सकी थी. ऐसा इसलिए कि उत्तर बिहार में ब्राह्मण और विशेषकर 'झा' काफी दिनों पहले से ही कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी की तरफ अपना रुख कर चुके हैं. इसके उलट कांग्रेस आज भी मानकर चलती है कि ब्राह्मण उनके साथ हैं. इसी वजह से कांग्रेस को उत्तर बिहार में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था. 


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