(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
LJD-RJD Merger: क्या शरद-लालू के मिलन से बदलेगी बिहार की राजनीतिक बिसात, पढ़ें- दोनों पार्टियों के विलय के मायने
आरजेडी को शरद को पार्टी में मिलाने का कुछ खास लाभ आने वाले समय में तो नहीं दिख रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि शरद यादव की एलजेडी ने बिहार में एक भी चुनाव नहीं लड़ा है. ना ही उनका ओहदा लालू यादव जैसा है.
LJD-RJD Merger: विपक्षी एकता की ओर पहला कदम बताते हुए समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव (Sharad Yadav) ने रविवार को अपने लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) का बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में विलय कर दिया. लंबे समय बाद दो बड़े यादव नेता के एक साथ आने के बाद चर्चाओं का एक दौर निकल पड़ा है. सबसे महत्वपूर्ण जो चर्चा है वो ये है कि क्या दो यादवों के मिलने से बिहार का राजनीतिक समीकरण बदल जाएगा?
एक-दूसरे का करते रहे हैं विरोध
बता दें कि साल 1997 में लालू यादव के जनता दल यूनाइटेड से अलग होने के बाद शरद और लालू के बीच जबरदस्त राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता थी. दोनों कई मौकों पर एक दूसरे को घेरते दिखते थे. लेकिन सालों बाद राजनीति ने फिर दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों को एक ही मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है. बता दें कि शरद फिलहाल किसी राजनीतिक पद पर नहीं है. उनके राज्यसभा सांसद का कार्यावधी भी समाप्त हो गई है. ऐसे में आरजेडी में अपनी पार्टी का विलय कराना राजनीति में उनके लिए नए रास्ते खोल सकता है.
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नीतीश कुमार का नहीं दिया था साथ
मालूम हो कि 2017 में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) महागठबंधन से जब एनडीए में आए थे तो शरद यादव ने उनका साथ देने से मना कर दिया था. इसके बाद जेडीयू की तरफ से उनकी राज्यसभा सदस्यता समाप्त करा दी गई थी. ऐसे में शरद यादव ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी. तब शरद यादव को कहा गया था कि जब तक मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक वह सरकारी बंगले में रह सकते हैं.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में शरद ने बिहार के मधेपुरा से आरजेडी की टिकट पर चुनाव लड़ा था. लेकिन वे हार गए थे. इसके बाद उनकी बेटी सुहासिनी यादव ने साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बिहारीगंज सीट से कांग्रेस की टिकट पर किस्मत आजमाई थी और मुंह की खाई थी.
शरद यादव का लाभ होना तय
ऐसे में देखा जाए तो आरजेडी को शरद को पार्टी में मिलाने का कुछ खास लाभ आने वाले समय में तो नहीं दिख रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि शरद यादव की एलजेडी ने बिहार में एक भी चुनाव नहीं लड़ा है. ना ही वे लालू यादव की तरह बिहार के चर्चित नेता हैं. जबकि आरजेडी 2020 के विधानसभा चुनाव में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. पार्टी के पास सबसे बड़ा वोट शेयर भी था, जिसके पक्ष में 23% से अधिक वोट पड़े थे. ऐसे में भले ही शरद यादव निश्चित रूप से आरजेडी का अंग बनकर एक लाभ प्राप्त करते हैं. लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि आरजेडी को क्या लाभ होगा.
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