दरभंगा: बिहार के कई हिस्सों और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला जितिया पर्व संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला व्रत है. इस व्रत में निर्जला यानी बिना पानी के पूरे दिन उपवास किया जाता है. यह पर्व आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिनों तक मनाया जाता है. यह पर्व उत्तर प्रदेश और बिहार के अलावा झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी मनाया जाता है.
क्या है इस व्रत की पूजा विधि, कथा और महत्व?
जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले जागकर स्नान करके पूजा करती हैं और फिर अपने पितरों को याद कर उनकी पूजा करती है. फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन निर्जला रहती हैं. दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं. व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं.
मालूम हो सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं अन्न ग्रहण कर सकती हैं. मुख्य रूप से पर्व के तीसरे दिन मिथिला में व्रती मटर का अंकुर एवं खीरा खाकर वहीं अन्य समुदाय झोर-भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग खाकर व्रत तोड़ती हैं. अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है. इसके साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से सियारिन और चील की प्रतिमा बनाई जाती है.
प्रतिमा बन जाने के बाद उसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजन समाप्त होने के बाद व्रती जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं. मान्यता है इस व्रत को करने से संतान की उम्र लंबी होती है और वह माता-पिता ही नहीं बल्कि पूरे कुल का नाम रोशन करता है.
मिथिला में जितिया व्रत का महत्व
मिथिलांचल में नहाए खाए के साथ ही जितिया पर्व शुरू हो जाता है. माताएं संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए जितिया व्रत करती हैं. इस कठिन पर्व को मनाने के पीछे मिथिलांचल में कई मान्यताएं हैं. इस पर्व को लेकर अलग-अलग कहानियां है. एक कथा महाभारत से जुड़ी है. खास बात यह है इस पर्व में कई तरह के नियम भी होते हैं. शहर से लेकर गांवों तक नहाय खाय के दिन माताओं ने तालाबों में स्नान कर जितवाहन को सरसों तेल एवं खल्ली अर्पित किया.
नहाय खाय के दिन अहले सुबह से ही शहर से लेकर गांव तक मछलियों के दुकानों पर पर्व को ले भीड़ लगी रही. मिथिला में मछली को शुभ माना जाता है एवं हर पावन कार्य में मछली का उपयोग किया जाता है. कहते हैं मिथिला में इसदिन मछली खाने का विशेष महत्व है.
पर्व मनाने की विधि एवं परंपरा
जितिया पर्व के पहले दिन व्रती महिलाएं पवित्र जलाशय और तालाबों में स्नान कर जीतवाहन को सरसों का तेल और खल्ली अर्पित करती हैं और अपने-अपने कुलदेवता के समक्ष पितरों को दही चूड़ा का नैवेद्य अर्पित कर परिवार के लोगों के बीच प्रसाद वितरण कर व्रत शुरुवात करती हैं. अनुष्ठान के दूसरे दिन व्रती महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने के लिए 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखकर अगले दिन मटर के अंकुर एवं खीरा खाकर व्रत समाप्त करती हैं