सहरसा: बिहार के सहरसा में 1980 के दशक में बने बैजनाथपुर पेपर मिल का हाल बेहाल है. मिल में अब कागज नहीं बनते, बल्कि चमगादड़ों ने उसे अपना घर बना रखा है. मालूम हो कि 1980 में कांग्रेस की सरकार थी और उस समय कांग्रेस के तत्कालीन मंत्री रमेश झा ने इस योजना को जमीन पर उतारा था.
किसी सरकार ने नहीं दिया ध्यान
रमेश झा का सपना था कि कोशी, मिथलांचल और सीमांचल के लोगों को रोजगार तालशने के लिए पलायन नहीं करना पड़े और उनको यहीं पर रोजगार उपलब्ध हो जाए. लेकिन उनका सपना अधूरा रहा और बिहार में अस्सी दशक के बाद आरजेडी की सरकार बनी और उन्होंने ने इस पेपर मिल पर ध्यान नहीं दिया. वर्तमान में 15 वर्षों से एनडीए सरकार है लेकिन किसी के मैनिफेस्टो में बैजनाथपुर पेपर मिल नहीं है. हालांकि साल के अंत में विधानसभा की चुनाव होने वाला है और कोशी वासी के लिए बैजनाथपुर पेपर मिल भी एक मुद्दा बनेगा.
काम करने वालों को नहीं मिला रोजगार
जानकारों के अनुसार वर्ष 1976-77 के आसपास इसका निर्माण हुआ और उस समय लोगों ने मिल में जम कर काम किया. वहां के लोगों को आस्वासन मिला कि मन से काम करिए सबको रोजगार मिलेगा, लेकिन जिसने काम किया था वह अब बूढ़ा हो गया उनको रोजगार नहीं मिला.
सभी नेता सिर्फ देते हैं आश्वासन
इस पेपर मिल में गार्ड के पद पर तैनात सत्तो मुखिया की माने तो उनका कहना है कि बैजनाथपुर पेपर मिल उद्योग के अस्सी के दशक में चालू होने की बात शुरू हुई. कई वर्षों तक काम चला. हम लोगों ने जोश के साथ काम किया क्योंकि कहा गया था कि रोजगार मिलेगा. लेकिन यह बनकर तैयार तो हो गया लेकिन आज तक चालू नहीं हो सका है. चुनाव के समय सभी लोग आश्वासन देते हैं लेकिन किसी ने अब तक इस ओर कोई काम नहीं किया.
युवाओं को नहीं करना पड़ता पलायन
वहीं, आरजेडी जिला अध्यक्ष मोहम्द ताहिर हुसैन की ने कहा कि अस्सी के दशक में इसका निर्माण हुआ लेकिन किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. आज अगर यह पेपर मिल उद्योग चालू रहता तो हजारों युवकों को यहां रोजगार उपलब्ध हो जाता. युवाओं को पलायन नहीं करना पड़ता.
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