Bihar Political Crisis: बिहार में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. अब वह आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ महागठबंधन की सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं. इससे पहले मंगलवार सुबह 11 बजे के करीब जेडीयू के विधानमंडल दल की बैठक हुई है जिसमें बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का फैसला किया गया.


उसके बाद शाम होते-होते नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव राज्यपाल के आवास पहुंचे और इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के बाद मीडिया से बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा कि सभी विधायकों और सांसदों का फैसला था कि एनडीए छोड़ देना चाहिए. बीजेपी के साथ काम करना मुश्किल हो रहा था. 


इसके बाद सभी नेता राबड़ी देवी के आवास पहुंचे. सूत्रों के हवाले से खबर मिली कि नीतीश कुमार ने राबड़ी देवी से कहा कि साल 2017 में जो कुछ भी हुआ उसे भूल नया शुरू कीजिए. 


हालांकि सवाल इस बात का है आखिर नीतीश कुमार के इस फैसले के पीछे का क्या गुणा-गणित हो सकता है. क्योंकि राजनीति में जो सामने से दिखता है उसकी कई इनसाइड स्टोरी भी हो सकती हैं. बीजेपी और आरजेडी के बीच तल्खी जब बढ़ती थी बीजेपी आलाकमान और नीतीश कुमार सीधे बात करके मामले को सुलझाते रहे हैं लेकिन इस बार नीतीश ने एनडीए से अलग होने का फैसला क्यों ले लिया. 


लेकिन 71 साल के हो चुके नीतीश कुमार के इस कदम के पीछे दूरदर्शी राजनीति भी हो सकती है. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार का बीजेपी से रिश्ता तोड़ना पहला कदम भर है वो राजनीति में बड़ा 'खेला' कर सकते हैं.  


इस बात को समझने के लिए हमें लोकसभा चुनाव 2019 के साथ ही शुरू हुए कुछ घटनाक्रमों पर नजर डालनी होगी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक 6 महीने पहले कांग्रेस यूपीए के कुनबे को मजबूत करने की कवायद में जुटी थी. लेकिन इसी बीच आंध्र प्रदेश से चंद्राबाबू नायडू और पश्चिम बंगाल की मुख्यंत्री ममता बनर्जी की सक्रियता बढ़ जाती है. दोनों ही नेता विपक्षी एकता की बात कर रहे थे लेकिन इसके साथ ही वो कांग्रेस की नेतृत्व स्वीकार करने की मूड में नहीं थे.


ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू खुद की दावेदारी पीएम पद के लिए मजबूत करने में जुटे थे. ममता बनर्जी ने कोलकाता में विपक्ष की एक रैली भी आयोजित कर डाली जिसमें उन्होंने कांग्रेस को भी न्योता दिया था. लेकिन इस रैली में गांधी परिवार से कोई शामिल नहीं हुआ हालांकि पार्टी से नेताओं को जरूर भेजा गया था.


विपक्षी दलों में पीएम पद के दावेदारी पर मंथन में ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू के बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार का भी नाम कई समीकरण के तहत आ रहा था. 


कहा यह भी जा रहा था कि अगर एनडीए बहुमत से दूर रहता है तो बाकी पार्टियों का समर्थन जुटाने के लिए नीतीश कुमार को पीएम पद के लिए आगे किया जा सकता है.


दूसरी ओर चर्चा इस बात की भी थी कि संयुक्त विपक्ष की ओर से भी नीतीश कुमार को चेहरा बनाया जा सकता है और कांग्रेस भी इसका समर्थन कर सकती है. ये बातें उस समय हो रही थीं जब नीतीश कुमार एनडीए में शामिल थे.


हालांकि नीतीश कुमार ने कभी पीएम बनने की इच्छा खुले तौर पर तो नहीं जाहिर की लेकिन उनकी पार्टी जेडीयू के नेता  समय-समय पर उनको पीएम मटेरियल बताते रहे हैं.


अब बदले समीकरण के बीच हो सकता है राजनीति के कुशल खिलाड़ी नीतीश कुमार ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चलने का फैसला किया है. कांग्रेस के अंदर जिस तरह से हालात हैं उससे लगता नहीं है कि गांधी परिवार की अगुवाई में इस बार भी कोई बड़ा विकल्प बन पाए.


ऐसे स्थिति में विपक्ष को हिंदी पट्टी से एक ऐसे चेहरे जरूरत होगी जिसको सभी पार्टियां स्वीकार कर लें. नीतीश कुमार के नाम पर ममता बनर्जी भी शायद विरोध  न करें और बिहार में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस को भी ज्यादा दिक्कत नहीं होगी.


और रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव तक बिहार की कमान तेजस्वी यादव को सौंप दिया जाए और नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए लोकसभा चुनाव 2024 के मैदान में उतर जाएं. हालांकि ये भी सिर्फ कयास हैं.



बीजेपी के पास क्या होगा विकल्प


इसमें कोई दो राय नहीं है कि नीतीश के एनडीए से जाने के नुकसान की भरपाई करना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. यही वजह है कि बीजेपी नीतीश की ओर से पहल का इंतजार कर रही है. बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि उसने जेडीयू की 45 सीटें होने के बाद नीतीश कुमार को सीएम बनाया फिर भी उसे धोखा मिला.


दूसरी ओर बीजेपी की रणनीति में लालू प्रसाद यादव भी हैं. पार्टी की कैलकुलेशन के हिसाब से लालू की छवि के खिलाफ पड़ने वाला एकमुश्त वोट अब उसे मिलेगा. हालांकि बिहार में भी यह भी एक सच्चाई है कि जब दो पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो जीत उन्हीं की होती है क्योंकि वोटों का प्रतिशत बहुत ज्यादा हो जाता है.


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