करिए न बीए-बीएससी हमरा बिहार में, पास कर ही देंगे 5-6 साल में...,विश्वविद्यालयों पर खास रिपोर्ट
अक्टूबर 2005 में जीत मिलने के बाद अरुण जेटली के साथ नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि एक मिथक यह भी है कि बिहार ठीक नहीं हो सकता और हमें इस मिथक को भी तोड़ना है.
जिस बिहार को आईएएस और आईपीएस की खान कहा जाता है वहां पर अगर ग्रेजुएशन की डिग्री लेनी है तो कम से कम 5 से 6 साल अपनी जिंदगी के खपाने होंगे. ऐसा इसलिए नहीं कि वहां पर सिलेबस इतना कठिन है कि पास होना मुश्किल है दरअसल सिस्टम ऐसा जो किसी भी छात्र के करियर के इन अहम सालों को दीमक की तरह चाट डालता है.
हैरानी है कि 'जंगलराज' का नारा देकर साल 2005 से सत्ता में लगातार काबिज नीतीश कुमार भी बिहार के विश्वविद्यालयों में हो रही इस धांधागर्दी को रोक नहीं पाए हैं. जब उनसे सवाल पूछा जाता है तो उनके पास एक ही जवाब होता है, 'दिखवाते हैं'.
बिहार के विश्वविद्यालयों के रिजल्ट कार्ड की इस खास रिपोर्ट को पढ़ने से पहले थोड़ा खुश भी हो लीजिए क्योंकि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने रिकॉर्ड बनाते हुए लगातार 5वीं बार पूरे देश में इंटरमीडिएट का रिजल्ट सबसे पहले जारी किया है. इस साल आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स संकाय मिलाकर कुल 13 लाख 4 हजार 586 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी. बिहार बोर्ड के मुताबिक इनमें से 83.70% छात्रों को सफलता मिली है.
इंटरमीडिएट के रिजल्ट आने के बाद स्नातक की पढ़ाई में दाखिला लेने का प्लान बना रहे छात्रों के आगे फिर वही समस्या है जो बीते दशकों से उनसे पहले के विद्यार्थी झेल रहे हैं. वजह है- बिहार के विश्वविद्यालयों में सत्र का समय पर पूरा नहीं होना. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के 17 में से 16 विश्वविद्यालयों का सत्र तय समय पर पूरा नहीं हो पाता है. कई विश्वविद्यालयों में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने में 6 साल का समय लग जाता है.
अक्टूबर 2005 में जीत मिलने के बाद बीजेपी नेता अरुण जेटली के साथ नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि एक मिथक यह भी है कि बिहार ठीक नहीं हो सकता और हमें इस मिथक को भी तोड़ना है. हमारा फोकस सुशासन और शिक्षा व्यवस्था को बदलना है. नीतीश कुमार ने अपने करीबी वृषिण पटेल को शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपी थी.
नीतीश कुमार शासन के 18 साल बीत चुके हैं, लेकिन बिहार में विश्वविद्यालयों का हाल नहीं बदला है यानी नीतीश की शब्दों में कहें तो वे अब तक 'बिहार ठीक नहीं हो सकता है' के मिथक को नहीं तोड़ पाए हैं.
इस स्टोरी में आइए विस्तार से जानते हैं कि इंटरमीडिएट का रिजल्ट सबसे पहले देने वाला बिहार हायर एजुकेशन में क्यों फिसड्डी है?
पहले जानिए किस विश्वविद्यालय में कितनी देरी से चल रहा है सत्र
जेपी विश्वविद्यालय छपरा- स्नातक और परास्नातक कोर्स के सत्र में सबसे अधिक देरी जेपी विश्वविद्यालय छपरा में ही होती है. यहां अमूमन 6 साल में ग्रेजुएशन और साढ़े तीन साल में मास्टर्स का कोर्स पूरा होता है.
छात्रों का आरोप है कि एग्जाम लेने, रिजल्ट देने और फिर अगले सत्र में नामांकन देने की प्रक्रिया बहुत ही धीमी है. यही वजह है कि जेपी यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन करने में 6 साल का वक्त लग जाता है.
विश्वविद्यालय में 46 तरह के अलग-अलग कोर्स चलाए जाते हैं. छपरा यूनिवर्सिटी को सरकार की ओर से 2023 में करीब 5 अरब का बजट दिया गया है. सेशन में देरी होने की वजह से ही 2022 में यूजी कोर्स में सिर्फ 39 हजार 200 छात्रों ने एडमिशन लिया था.
मगध विश्वविद्यालय, बोधगया- छपरा विश्वविद्यालय के बाद सत्र देरी के मामले में मगध यूनिवर्सिटी का भी नाम शीर्ष पर आता है. यहां भी ग्रेजुएशन का कोर्स 6 साल में पूरा हो पाता है. मगध यूनिवर्सिटी में इसी साल के शुरुआत में सत्र में देरी को लेकर आंदोलन हुआ था.
छात्रों का कहना था कि 2018-21 वाला कोर्स भी अब तक पूरा नहीं हो पाया है. प्रशासन इसके पीछे कोरोना को वजह बता दिया. हालांकि, कोरोना से पहले भी मगध यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई 5 साल में पूरी हो पाती थी.
यूनिवर्सिटी में करीब 2 लाख छात्र रजिस्टर्ड हैं. यूनिवर्सिटी के पास 652 करोड़ रुपए का बजट है. 2017 में यूनिवर्सिटी से दबाव कम करने के लिए इसे तोड़कर पाटलिपुत्रा यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी.
बीआर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर- भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में भी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने में 5 साल का वक्त लग जाता है. यहां एक सत्र का रिजल्ट जारी होता है, तो उसके बाद 2-3 सत्र का रिजल्ट पेंडिंग रहता है.
साथ ही बार-बार मेरिट लिस्ट भी सत्र देरी का वजह बना हुआ है. हाल ही में राजभवन ने बिहार विश्वविद्यालय में नया कुलपति नियुक्त किया है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि 2022-25 का सत्र समय पर पूरा होगा और इसके लिए कई तैयारियां की जा रही है.
बिहार विश्वविद्यालय में साल 2022-25 सत्र के लिए करीब 1 लाख 30 हजार छात्रों ने नामांकन कराया है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि इस बार 70 हजार सीट रिक्त रह गए. यूनिवर्सिटी ने 2022 में 1052 करोड़ का बजट प्रावधान किया था.
बीएन मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा- भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी मधेपुरा में भी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने में 5 साल का वक्त लग जाता है. हाल ही में यूनिवर्सिटी का रिजल्ट उस वक्त चर्चा में आया था जब एक स्टूडेंट को बिना एग्जाम दिए डिग्री मिल गई थी.
बीएन मंडल यूनिवर्सिटी का करीब 600 करोड़ रुपए का बजट है. संस्थान का दावा है कि आने वाले सत्र को पटरी पर लाया जाएगा. इसके लिए कई तरह के प्रयास किए गए हैं.
1992 में सहरसा, मधेपुरा और पूर्णिया के लोगों को सहूलियत के लिए लालू यादव ने इस यूनिवर्सिटी की स्थापना करवाई थी. समाजवादी नेता भूपेंद्र नारायण मंडल के नाम पर इसका नामकरण हुआ था.
ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी, दरभंगा- एलएनएमयू में समय से परीक्षा नहीं होने की वजह से 3 लाख छात्र हर साल प्रभावित होते हैं. एलएनएमयू की गिनती बिहार के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में होती है.
ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन करने में 3 साल के बदले 5 साल का वक्त लगता है. यूनिवर्सिटी में 2015 में आंदोलन हुए थे तो उस वक्त सत्र में सुधार आया था, लेकिन पिछले 3 साल से फिर हालात बदतर हो गए हैं.
बजट की बात करें तो इस विश्वविद्यालय के पास साल में 1600 करोड़ रुपए का बजट है. यूनिवर्सिटी में कुल 6 लाख से अधिक छात्र रजिस्ट्रर्ड हैं. यूनिवर्सिटी प्रशासन कई बार सत्र को समय पर पूरा करने की घोषणा कर देती है, लेकिन यह घोषणा हमेशा अधूरी ही रहती है.
समय पर पूरा क्यों नहीं हो पाता है कोर्स, 4 वजह...
आंदोलन, उठते सवाल और अखबारों में छपी खबर का भी यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार पर कोई असर नहीं होता है. हर साल सरकार इसे ठीक करने का दावा करती है, लेकिन यह शिगूफा ही निकलता है. ऐसे में आइए जानते हैं बिहार में समय पर क्यों नहीं खत्म होता है अकादमिक सत्र?
1. एग्जाम कैलेंडर नहीं- पटना विश्वविद्यालय को छोड़कर किसी भी विश्वविद्यालय के पास अपना एग्जाम कैलेंडर नहीं है. एग्जाम कैलेंडर के जरिए ही पूरे सत्र का निर्धारण होता है. एग्जाम कैलेंडर में रजिस्ट्रेशन से लेकर एग्जाम और रिजल्ट तक का शेड्यूल बना होता है.
विश्वविद्यालय को उसी के हिसाब से काम करना होता है. ऐसे में तय समय पर एग्जाम खत्म होता है. एग्जाम और रिजल्ट अगर समय पर हो जाए तो सत्र समय पर अपने आप पूरा हो जाता है. हाल के दिनों में बीएन मंडल यूनिवर्सिटी ने एग्जाम कैलेंडर लाने की घोषणा की थी.
2. मेरिट लिस्ट का खेल- यूनिवर्सिटी में नामांकन के समय बिहार के विश्वविद्यालयों में मेरिट लिस्ट जारी किया जाता है. बिहार के विश्वविद्यालयों में संबंधित कॉलेजों की संख्या ज्यादा है. इस वजह से यूनिवर्सिटी को कई बार मेरिट लिस्ट जारी करना पड़ता है.
मेरिट लिस्ट और नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने में कई बार 6 महीने का वक्त लग जाता है. नामांकन में देरी होने के कारण पहले सत्र की परीक्षा समय पर पूरी नहीं हो पाती है. सत्र खत्म होते-होते कई बार 5 साल का वक्त लग जाता है.
3. शिक्षकों की भारी कमी- बिहार के महाविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी भी सत्र में देरी का कारण है. महालेखागार (सीएजी) ने हाल ही में बिहार के विश्वविद्यालयों को लेकर एक रिपोर्ट शिक्षा विभाग को सौंपी है.
रिपोर्ट में सीएजी ने कहा है कि बिहार में 10 विश्वविद्यालयों के लिए 7514 पद की व्यवस्था की गई है, जिसमें से 4179 पद रिक्त है. अधिकांश यूनिवर्सिटी अतिथि शिक्षक के भरोसे चल रही है. कॉपी चेक करने का काम यूनिवर्सिटी में शिक्षक ही करते हैं.
4. सरकार का ढीला ढाला रवैया- सरकारी अधिनियम के तहत यूनिवर्सिटी एक ऑटोनोमस बॉडी है और यहां राज्यपाल का आदेश चलता है. राज्यपाल ही कुलपति को नियुक्त करते हैं और कुलपति संचालन का काम. शिक्षा विभाग सिर्फ सलाहकार की भूमिका में होती है. हालांकि, सरकार चाहे तो यूनिवर्सिटी प्रशासन पर नकेल कस सकती है.
विश्वविद्यालयों के खिलाफ कई बार शिकायत आती है, लेकिन इसके बावजूद सरकार कोई एक्शन नहीं ले पाती है. सरकार का तर्क है कि राजभवन को इस पर संज्ञान लेना चाहिए. हाल ही में बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे कह रहे थे कि यूनिवर्सिटी पर फैसला लेना राज्यपाल का काम है.
सरकार के इसी ढीला-ढावा रवैया की वजह से यूनिवर्सिटी प्रशासन सही तरीके से काम नहीं करती है, जिस वजह से सत्र में विलंब होता है. पिछले दिनों नए राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने 10 विश्वविद्यालयों के कुलसचिव के कामों पर रोक लगा दिया था.
सभी सवालों का 'नीतीश' जवाब- हम एक-एक चीज दिखवाते हैं
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में समाधान यात्रा पर निकले थे, उस वक्त नीतीश कुमार से छात्रों ने सेशन लेट को लेकर खूब शिकायतें की. गया में छात्रों ने नीतीश कुमार को घेर भी लिया. उस वक्त नीतीश कुमार छात्रों के सभी सवालों का एक ही जवाब दे रहे थे- दिखवाते हैं.
2005 के बाद से बिहार में अब तक 7 शिक्षा मंत्री (वृषिण पटेल, पीके शाही, अशोक चौधरी, कृष्णनंदन पटेल वर्मा, अशोक चौधरी, मेवालाल चौधरी और विजय चौधरी) बदल चुके हैं. सभी नीतीश कुमार के करीबी ही रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद बिहार का हायर एजुकेशन सिस्टम नहीं बदल पाया.