Goncha Rath Yatra: छत्तीसगढ़ के  बस्तर मे भी गोंचा पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. रथ यात्रा की करीब 615 सालो  से बस्तर मे चली आ रही इस पंरपरा को आज भी बस्तरवासी उसी उत्साह के साथ मनाते दिखाये दिये.  गोंचा पर्व के दौरान मंगलवार को 3  विशालकाय रथो मे  भगवान जगन्नाथ . माता सुभद्रा और बलभद्र की विग्रहों को सवारकर शहर में रथयात्रा निकाली गई. इस दौरान भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी से सलामी दी गई.  इस मौके पर बड़ी संख्या मे लोग रथयात्रा मे भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पंहुचे....


रियासतकाल से निभाई जा रही है राजपरिवार के द्वारा  विशेष पूजा की परंपरा 


दरअसल बस्तर मे आरण्यक ब्राम्हण समाज द्वारा पिछले 615  सालो से गोंचा का पर्व मनाया जा रहा है. आज रथ यात्रा के दिन तीन नए रथो पर  भगवान जगन्नाथ. माता सुभद्रा और बलभद्र की विग्रहों को सवारकर भगवान  जगन्नाथ मंदिर से  सीरासार भवन में बनाये  गए जनकपुरी के लिए रथयात्रा निकाली गई. इस दौरान सैकड़ो श्रद्धालु शामिल हुए. रियासत काल से चली आ रही यह पंरपरा बस्तर मे आज भी कायम है. बस्तर गोंचा पर्व के जानकार  रुद्र नारायण पाणिग्रही बताते है कि बस्तर मे विश्व प्रसिध्द दशहरा पर्व के बाद गोंचा  दुसरा सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.


करीब 615 साल पहले  बस्तर के तत्कालीन महाराज पुरषोत्तम देव बस्तर से  पदयात्रा कर जगन्नाथ पुरी कर गये थे.  जिसके बाद पूरी के तत्तकालीन महाराजा गजपति द्वारा  बस्तर के राजा को रथपति की उपाधी दी गई थी.  महाराजा पुरूषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का रथ दिया गया था. और प्राचीन समय मे बस्तर के महाराजा रथ यात्रा के दौरान इस रथ पर सवार होते थे. तब से ही बस्तर मे यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है. पंरपरानुसार रथयात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ  माता सुभद्रा  और बलभद्र को अपने साथ गुंडेचा मंदिर (जनकपुरी )ले जाकर सात दिनो तक वंहा विश्राम करते है. बस्तर के  राजकुमार कमलचंद भंजदेव आज भी इस रथयात्रा से पूर्व भगवान जगन्नाथ की पूजा पूरे विधि विधान से करते है.


जनकपुरी में 9 दिनों तक होती है विशेष पूजा पाठ 


बस्तर में 9 दिनो  तल चलने वाले गोंचा पर्व की शुरुआत  3 विशालकाय रथ की परिक्रमा जगदलपुर मे भगवान को रथ मे विराजने के साथ होती है.  पंरपरानुसार बांस से बनी तुपकी से सलामी दी जाती है. इसके बाद सीरासार  भवन जिसे जनकपुरी कहा जाता है यहां पूरे 9 दिनों तक 360 आरण्यक ब्राह्मण समाज और बस्तर के श्रद्धालुओं के द्वारा हर दिन विशेष पूजा पाठ की जाती है. वही इन रस्मों के दौरान 56 भोग लगाने की भी रस्म निभाई जाती है. 9 दिनों तक जगदलपुर शहर का माहौल भक्तिमय हो जाता है .और सिर्फ बस्तर ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग इस महापर्व में शामिल होने बस्तर पहुंचते हैं..एक तरफ जंहा विकास की अधंड ने सारे विश्व मे संस्कृति और पंरपराओ को बदल कर रख दिया है. वही आज भी 615 साल पुरानी इस गोंचा पर्व की पंरपंरा जस के तस बरकरार है. बस्तर की जनता आज भी 600 साल पूर्व की तरह ही पूरे जोश खरोश से गोंचा पर्व के सभी रस्मो और पंरपराओ का निर्वहन करती दिखाई देती है.