Bastar City Bus: बस्तर में मेंटेनेंस के अभाव में धूल फांक रही सिटी बसें, टेंडर भरने में ट्रांसपोटर्स की रूची नहीं
Bastar बस्तर जिले में मिली कुल 12 बसों में से सिर्फ दो बसें चल रही हैं, बाकी 10 बसें खुले आसमान में धूल खाकर कबाड़ हो रही हैं.
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Bastar City Bus News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर में जोर-शोर के साथ शुरू हुई सिटी बस का तोहफा ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है. पिछले कई वर्षों से इस सिटी बस का संचालन बंद होने से ग्रामीण इसकी सुविधा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. हालांकि, कुछ साल पहले जगदलपुर में निगम प्रशासन ने इस धूल भरी सिटी बस को फिर से शुरू करने के लिए 12 लाख रुपये खर्च किए. उम्मीद की जा रही थी कि सभी 10 बसों के पहिए घूमने लगेंगे और लोगों को इसका लाभ फिर से मिलना शुरू हो जाएगा. लेकिन राशि खर्च करने के बावजूद ये बसें निगम के यार्ड में धूल फांक रही हैं, अगर इनका संचालन जल्द शुरू नहीं किया गया तो सभी बसें कबाड़ में तब्दील हो जाएंगी.
निगम के यार्ड में सालो से धूल खा रही 10 सिटी बसें
जानकारी के अनुसार निगम की यार्ड में लगभग 10 सिटी बसें खुले आसमान में धूल फांक रही हैं और उनके संचालन को बहाल करने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. निगम के कर्मचारियों का कहना है कि कोरोना काल की शुरुआत से ही सेवा पर ग्रहण लग गया है. बस्तर ट्रैफिक सोसाइटी का गठन 7 साल पहले बीजेपी शासन के दौरान सिटी बसों की शुरुआत की गई थी, और इस सेवा की शुरुआत से ही बस्तर जिले को सभी ब्लॉक से जोड़ने का प्रयास किया गया था, ताकि इन बसों का उपयोग ग्रामीण अपने आवागमन के लिए कर सकें. लेकिन पिछले कई सालों से रखरखाव के अभाव में सभी बसें कंडम हो रही है.
टेंडर भरने में नहीं दिखा रहे रुचि
जानकारी के अनुसार जिस एजेंसी ने बसों के संचालन की जिम्मेदारी ली थी, उसके मालिक ने इसे घाटे का सौदा बताया. धीरे-धीरे मेंटेनेंस के अभाव में बसों की हालत खराब होती चली गई और कोई ध्यान नहीं दे रहा था जिससे बस सेवा दम तोड़ती गई. एक-एक कर बसें सड़कों से बाहर हो गईं. हालांकि बस्तर जिले में मिली कुल 12 बसों में से सिर्फ दो बसें चल रही हैं, बाकी 10 बसें खुले आसमान में धूल खाकर कबाड़ हो रही हैं. निगम के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि 31 जुलाई को इन बसों के पुन: संचालन के लिए टेंडर निकाला गया था और इच्छुक ट्रांसपोर्टरों को इसमें भाग लेने के लिए कहा गया था. बताया जा रहा है कि इन बसों से ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा है उससे ज्यादा रकम इसके रखरखाव में खर्च हो रहा है.
इसलिए ट्रांसपोर्टर ने टेंडर भरने से अपना हाथ खींच लिया. करीब 7 से 8 साल पहले खरीदी गई सभी बसें कबाड़ में तब्दील हो रही हैं और यही कारण है कि ट्रांसपोर्टर इसे चलाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. नोडल ऑफिसर भोलाराम पटेल का कहना है कि टेंडर कॉल किए गए थे लेकिन किसी ने रुचि नहीं दिखाई. उन्होंने का कि नए सिरे से सिटी बसों के संचालन की योजना तैयार की जा रही है और जल्द ही सकारात्मक पहल देखने को मिल सकती है.
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