Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के सबसे घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र अबूझमाड़ में पहली बार फलों की खेती की जा रही है. अब यहां के ग्रामीण किसान धान के बाद पहली बार अपने खेतों में फलों की खेती करेंगे. अब नक्सलगढ़ अबूझमाड़ की धरती यहां उगने वाली लीची से पहचानी जाएगी. इस क्षेत्र में लगभग 200 एकड़ में लीची के पौधे लगाए जाने की तैयारी प्रशासन ने शुरू कर दी है. वहीं अबूझमाड़ के हर किसान अपने खेतों में लीची के पौधे लगाए. इसके लिए उन्हें भी उद्यानिकी विभाग की ओर से पौधे दिए जा रहे हैं.
आय में वृद्धि कर सकेंगे किसान
दरअसल, अबूझमाड़ में आजादी के 75 साल बाद हुए सर्वे के बाद यहां के किसानों को मसाहती पट्टा देने के साथ अपने खेतों में धान के अलावा दूसरी फसलों को भी उगाने के लिए जागरूक किया जा रहा है और इसी के तहत अब अबूझमाड़ में पहली बार 200 एकड़ में लीची के पौधे रोपे जा रहे हैं. उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों का मानना है कि अबूझमाड़ की जमीन लीची उत्पादन के लिए पूरी तरह से अनुकूल है. ऐसे में अब यहां के किसान ज्यादा से ज्यादा लीची का उत्पादन कर अपनी आय में वृद्धि कर सकेंगे.
अबूझमाड़ के किसान करेंगे लीची की खेती
उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अबूझमाड़ का इलाका घनघोर जंगल है. इस वजह से यहां बारिश भी पर्याप्त होती है. छत्तीसगढ़ के इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा बारिश होती है. अबूझमाड़ की समुद्र तल से 1600 मीटर ऊंचाई होने के कारण आद्रता और शीतल जलवायु लीची के लिए पूरी तरह से उपयुक्त जलवायु है. इस वजह से अब इस इलाके में लगभग 200 एकड़ की जमीन पर लीची के पौधे रोपे जाने की तैयारी विभाग ने पूरी कर ली है.
किसानों को दी जा रही है ट्रेनिंग
अधिकारियों का कहना है कि लीची का सीजन मुश्किल से एक महीने का होता है और मई के गर्मी में फल लगना शुरू होता है और मानसून के बारिश में इसका सीजन खत्म हो जाता है लेकिन एक माह से भी कम समय में प्रति हेक्टेयर 200 पौधे के हिसाब से 4 से 5 लाख रुपये की आमदनी इससे होती है. ऐसे में यहां के किसानों को उनके खेतों में लीची लगाने के लिए विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है और उन्हें हर संभव मदद भी की जा रही है. उन्होंने कहा कि लीची के फसल के लिए बकायदा किसानों को पौधा देने के साथ ही उन्हें इसके रोपाई से लेकर पौधा बनते तक पूरी तरह से ट्रेनिंग विभाग के द्वारा दी जाएगी.
मुज्जफरपुर की लीची को देगी टक्कर
इधर लीची का नाम सुनते ही अमूमन बिहार के मुजफ्फरपुर इलाके की याद आती है लेकिन अब छत्तीसगढ़ के नक्सलगढ़ अबूझमाड़ की धरती भी मीठे लीची के नाम से पहचानी जाएगी और अधिकारियों का मानना है कि अबूझमाड़ की लीची मुजफ्फरपुर के लीची को टक्कर देगी.