Adivasi Mati Festival News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में आदिवासी समुदाय द्वारा तीज त्योहार मनाने की परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही हैं. इन त्योहारों में आदिवासियों के द्वारा निभाई जाने वाली परंपरा रीति रिवाज काफी अनोखा होता है जो केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है. नवाखानी त्योहार के साथ 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा और गांव-गांव में होने वाले मंडई मेला (Mandai Mela) के साथ माटी त्योहार (Mati Festival) मनाने की  एक अलग ही विशेषता है.


माटी त्योहार साल में केवल एक बार मनाया जाता है. इस त्योहार के दौरान ऐसी भी मान्यता  है कि इसको मनाए बगैर आदिवासी आम, चार फल और महुआ के फल नहीं खाते. माटी त्योहार के बाद आम फल की पूजा की पूजा की जाती है. उसके बाद ही उसे खाया जाता है. इस त्योहार को गांव में मौजूद आम के बगीचे के नीचे पारंपरिक गुड़ी में मनाया जाता है. यहां देवी देवताओं की विशेष पूजा अर्चना करने के साथ मिट्टी की भी पूजा की जाती है ताकि इस पूरे साल भर उनके खेत फसलों से हरे भरे रहें.  इस पूजा में ये प्रार्थना की जाती है कि फसलों की अच्छी पैदावार हो, जिससे ग्रामीणों  को अच्छी आय हो सके.




हर गांव में मनाया जाता है माटी त्योहार
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के गांव-गांव में इन दिनों माटी त्योहार की धूम मची हुई है. हर गांव में इस त्योहार को आदिवासी समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसे साधारण बोलचाल में भूमि उत्सव भी कहा जाता है. क्योंकि आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति के उपासक रहे हैं. वो प्रकृति से मिलने वाली हर उन चीजों की पूजा करते आ रहे हैं, जो उनके जीवन के लिए उपयोगी होती है.  


इसमें मिट्टी भी शामिल है. प्रकृति  से मिलने वाली हर उन  वस्तुओं को चाहे वो वनोपज हो या किसानों के द्वारा उगाई जाने वाली फसल इसके अलावा जो भी  मिट्टी से मिलता है उन सबको पहले माटी देवता को समर्पित किया जाता है. बस्तर के रहने वाले पूरन सिंह कश्यप  बताते हैं कि आदिवासी मिट्टी के प्रति अपना कर्ज उतारने के लिए हर साल माटी त्योहार मनाते हैं. यह त्योहार महीने भर चलता है. जिले के हर गांव गांव में इस त्योहार को आदिवासी समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है.


पूर्वजों को करते हैं याद
यही नहीं  बकायदा इसके लिए सभी गांव के लोग चंदा इकट्ठा करते हैं. गांव के सभी लोग माटी त्योहार मनाकर  सामूहिक भोज करते हैं. पूरन सिंह कश्यप ने बताया  कि माटी पूजा की विधि की भी अपनी अलग खासियत होती है.  त्योहार के दिन बकायदा शाम को गांव के सभी ग्रामीणों द्वारा धान के बीज और  प्याज को एक सियाड़ी पत्ते में लपेटकर और उसे रस्सी से बांधकर पोटली तैयार की जाती है.


इसके बाद उसे आम के बगीचे के नीचे देवगुड़ी  में माटी देव के पास रखा जाता है. दूसरे दिन पूरे गांव के लोग उस जगह जमा होकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं. साथ ही परंपरा के अनुसार, अपने साथ लाए हुए फूल, फल, चुनरी, मस माटी, डाहा माटी, मुर्गा ,बकरा, कबूतर, और अंडे को अपनी-अपनी मन्नते मांगकर माटी देव को अर्पित करते हैं.




है अनोखी परंपरा
इसके बाद गांव के पुरुष ( सियान )  उसी माटी देव के पास गड्ढा खोदकर उसमें पानी डालते हैं. जिसके बाद जिस सियाड़ी पत्ते से पोटली तैयार की जाती है उसे उस गड्ढे में डाल दिया जाता है.  उसके बाद इस कीचड़ को खेला जाता है. बकायदा आदिवासी एक दूसरे के गले में कीचड़ का लेप भी लगाते हैं. इस रस्म को चिकल लौंडी कहा जाता है. इसके बाद सभी ग्रामीण माटी देव से गांव में अच्छी फसल होने की प्रार्थना करते हैं.


सितारा माटी देवता को कच्चे आम का भोजन भी चढ़ाया जाता है. त्योहार पूरी तरह से संपन्न होने के बाद आम और महुआ के  फल को खाया जाता है. इस तरह की अनोखी परंपरा केवल छत्तीसगढ़ के बस्तर में ही देखने को मिलती है.


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