Chhattisgarh News: अक्षय तृतीया को शादी-विवाह या अन्य शुभ कार्यों के लिए काफी अच्छा माना जाता है. आज 22 अप्रैल को अक्षय तृतीया है. वैसे तो हर छोटे-बड़े शुभ संस्कार संपन्न करने के लिए पंडित-ज्योतिषियों से मुहूर्त निकलवा जाता है, लेकिन एकमात्र अक्षय तृतीया ही ऐसी तिथि है जिसमें मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती.


महामुहूर्त की संज्ञा दी गई है अक्षय तृतीया को 


अक्षय तृतीया पर ज्योतिष के जानकारों से सलाह लिए बिना ही इस दिन सभी शुभ संस्कार पूरे किए जा सकते हैं. इसलिए अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त और महामुहूर्त की संज्ञा दी गई है. बिना पंचांग देखे नया व्यवसाय, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ, सगाई, विवाह जैसे संस्कार निभाए जाते हैं. खास बात यह है कि इस दिन छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुरूप प्रत्येक घर में गुड्डा-गुड़िया का ब्याह रचाने की परंपरा निभाई जाती है, जिसे ग्रामीण अंचलों में पुतरा-पुतरी कहा जाता है.


'अक्ती' के नाम से जाना जाता है अक्षय तृतीया को


छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में अक्षय तृतीया को 'अक्ती' के नाम से जाना जाता है. अक्ती पर्व मनाए जाने की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती है. जिस परिवार में विवाह योग्य युवक-युवती होते हैं, उनका विवाह प्राय: अक्षय तृतीया के महामुहूर्त में ही संपन्न किया जाता है. यदि युवक-युवतियों का विवाह न हो तो उस परिवार के छोटे बच्चे अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाकर खुशियां मनाते हैं.


बच्चों की खुशियों में परिवार के बड़े-बुजुर्ग भी शामिल होते हैं. पुतरा-पुतरी का नकली विवाह रचाने के जरिए बच्चों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति में निभाए जाने वाले संस्कारों की जानकारी दी जाती है ताकि बच्चे जब बड़े हो जाएं तो उन्हें पहले से संस्कारों की जानकारी हो. इन संस्कारों में तालाब से चूलमाटी लाने की रस्म, तेल, हल्दी लगाने, सिर पर मौर-मुकुट बांधने, फेरे लेने, विदाई आदि रस्मों के बारे में सिखाया जाता है.


 इसे आखातीज के नाम से मनाते हैं जैन धर्म के लोग


हिंदू संवत्सर के वैसाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है. अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय न हो. वैशाख शुक्ल तृतीया पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन सतयुग, त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था. उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा इसी दिन से शुरू होती है. जैन धर्म के तीर्थंकर ने इसी दिन इक्षु रस यानी गन्ना रस का पान करके अपने व्रत का पारण किया था.


जैन धर्म के लोग इसे आखातीज के नाम से मनाते हैं. विशेष तरह की खिचड़ी का भोग लगाकर परिवार के लोग खिचड़ी खाने की परंपरा निभाते हैं. खिचड़ी के भोज के लिए विशेष रूप से रिश्तेदाराें को आमंत्रित किया जाता है.


अक्षय तृतीया पर विवाह करना होता है शुभ 


महामुहूर्त अक्षय तृतीया के बारे में यह प्रचलित है कि यदि विवाह योग्य युवक-युवतियों की कुंडली के हिसाब से विवाह मुहूर्त नहीं निकल रहा है. ऐसी स्थिति में अक्षय तृतीया पर विवाह करना शुभ फलदायी माना जाता है. विवाह के अलावा जनेऊ संस्कार, बच्चों का मुंडन संस्कार, सगाई, गृह प्रवेश, भूमि पूजन जैसे अन्य संस्कार भी इस दिन किए जा सकते हैं. इस दिन सोना खरीदने की परंपरा भी है.


मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर स्वर्ण, रजत, हीरा आदि धातुएं घर में लाने से वह हमेशा के लिए अक्षय हो जाती है अर्थात परिवार में सुख, समृद्धि बढ़ती है. अक्षय तृतीया के दिन घर में पर्रा, सूपा, टोकनी, दूल्हा-दुल्हन के लिए साफा, पगड़ी, तोरण, कटार, पूजन सामग्री की खरीदारी करना शुभ माना जाता है.


अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में किया जाता है दान भी 


अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में दान करने की परंपरा निभाई जाती है. वैशाख माह में प्रचंड गर्मी पड़ती है, पशु-पक्षी, इंसान सभी गर्मी के मारे परेशान होते हैं. निर्धनों, जरूरतमंदों को राहत देने के लिए मिट्टी का घड़ा, फल, जल, अनाज, नमक, घी, शक्कर, वस्त्र, पैरों को जलन से बचाने जूता, चप्पल आदि चीजों का दान करना उत्तम माना जाता है. इस दिन किए गए दान का हजार गुणा फल मिलता है.


अक्षय तृतीया के मौके पर अम्बिकापुर, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग जैसे बड़े शहरों के बाजार गुड्डा- गुड्डी के पुतलियों से सजे हुए हैं, लोग इस दिन के परंपरा को निभाने के लिए गुड्डा-गुड्डी की शादी रचा रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को शादी-विवाह में होने वाली रस्मों की जानकारी से अवगत करा रहे हैं. इसके अलावा सूपा, टोकनी, दूल्हा-दुल्हन के लिए साफा, पगड़ी, तोरण, कटार, पूजन सामग्री से भी बाजार सजा हुआ है.


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