Surguja News: कुपोषण के लिए जिले में किए गए प्रयास और करोड़ों रूपए खर्च करके कुपोषित बच्चों की संख्या में गिरावट तो आई है. लेकिन समस्या का अंत अभी तक नहीं हो पाया है. जिले में कई बच्चे ऐसे हैं. जिन्हे निश्चित समय पर पोषण आहार और इलाज नहीं मिल पाने के कारण वे ज्यादा कुपोषित हो जा रहे हैं. इस हालात में कोरोना महामारी ने और समस्याएं पैदा कर दी है.


विभाग की नीति काम नहीं आ सकी


पहली लहर के बाद महिला बाल विकास विभाग ने कई प्लानिंग की. लेकिन उसके बलबूते बच्चों को सिर्फ रेडी टू ईट खाना ही मिल सका. वो भी नियमित रूप से नहीं मिला. जानकारी के मुताबिक कोरोना की पहली लहर में रेडी टू ईट खाने के साथ-साथ बच्चों को अंडा भी प्रदान किया जा रहा था. लेकिन दूसरी लहर में विभाग की नीति काम नहीं आ सकी. जिसके बाद स्थिती ये है कि आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से कराए गए सर्वे में अभी तक सरगुजा जिले में 13648 बच्चे मध्यम कुपोषित एवं गंभीर कुपोषित चिन्हित किए गए हैं.


कोरोना की दूसरी लहर से सिस्टम पर असर
 
गौरतलब है कि सरगुजा जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 87 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इनमें 6 माह से 6 वर्ष तक की उम्र के लगभग 88707 बच्चे पंजीकृत हैं. कोरोना लॉकडाउन के दौरान हर महीने सभी बच्चों को पोषण युक्त खिचड़ी का पैकेट आंगनबाड़ी के माध्यम से घर-घर वितरित किया गया था. कई जगह दाल और चावल भी वितरित किया गया था. जिले से कुपोषण को दूर करने के लिए विभाग की ओर से कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान काफी मशक्कत की गई. परंतु दूसरी लहर में स्थिति यह थी कि बच्चों को सिर्फ रेडी टू ईट खाना ही प्रदान किया जा सका.


कई जगह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की लापरवाही से बच्चों को जो पौष्टिक आहार मिलना चाहिए था वह भी नहीं मिल पाया. ऐसी कई शिकायतें लगातार सामने आती रही है. शासन-प्रशासन लगातार जिले से कुपोषण का आंकड़ा कम करने के लिए कई प्रयास कर रहा है. कुपोषित बच्चों की दुर्बलता को दूर करने के लिए शासन ने पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) भी खोला है. यहां कुपोषित बच्चों को उनकी माता के साथ रखकर इलाज और पोषण आहार दिया जाता है. जिले में जिला अस्पताल और सीतापुर में एनआरसी का संचालन किया जा रहा है.


पोषण पुनर्वास केन्द्र में घटा दिए बिस्तर


कोरोना की तीसरी लहर और बढ़ते हुए संक्रमण को देखते हुए मेडिकल कॉलेज अस्पताल में वर्षो से संचालित पोषण पुनर्वास केंद्र में बिस्तरों की संख्या भी कम कर दी गई है. 20 बिस्तर वाले इस एनआरसी में बिस्तरों की संख्या घटा कर 10 कर दी गई है. इसके अवाला जिले के सीतापुर सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में भी 10 बिस्तरों वाला एनआरसी संचालित है. ऐसे में कुपोषित एवं गंभीर कुपोषित बच्चों को समय से उपचार का लाभ नहीं मिल पा रहा है. एक बच्चे को एनआरसी में कम से कम 14 दिन तक रखा जाता है. जहां रखकर बच्चों को वहां की व्यवस्था के हिसाब से पौष्टिक आहार दिया जाता है, जो नाकाफी है. जबकि महिला बाल विकास की ओर से भी ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए जिससे कुपोषित बच्चों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके. 


कुपोषण का आंकडा कम करना है तो गर्भवती महिलाओं पर फोकस


गर्भवती माताओं को हर रोज पोषण के लिए एक अंडा प्रदान किया जाता है जो उनके शारीरिक पोषण के लिए काफी नहीं है. विभाग का मानना है कि गर्भवती माताओं को उनके परिवार का पूरा सपोर्ट होना चाहिए. इसके साथ-साथ व्यवहार में भी परिवर्तन जरूरी है. जब तक सही समय पर उनका टेस्ट ना हो तब तक स्थिति पता नहीं चलती. सही समय पर टेस्ट हो जाने पर गर्भवती माताओं में क्या कमजोरी है उसका पता चल सकता है. इससे कुपोषित बच्चों का आंकड़ा भी कम हो सकता है.


कोविड की वजह से तैयारी में रूकावट 


महिला एवं बाल विकास अधिकारी बसंत मिंज ने बताया कि उनके द्वारा सरगुजा जिले के दूरस्थ क्षेत्र को चिन्हांकित कर वहां जाने और स्थिति का जायजा लेने का प्लान बनाया गया था. लेकिन कोरोना संक्रमण ने तैयारी पर रूकावट लगा दिया. उन्होंने यह भी बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों से संचालित पोषण कार्यक्रम में लापरवाही पर उनके द्वारा पिछले सप्ताह ही 7 कार्यकर्ताओं को नोटिस थमाया गया है. उनके द्वारा लगातार एनआरसी पर भी निगरानी रख कुपोषण का आंकड़ा कम करने की कोशिश की जा रही है. गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले में 6 माह से 3 साल तक के 51445 और 3 साल से 6 साल तक के 37262 कुपोषित बच्चे हैं.


ये भी पढ़ें-


Chhattisgarh: इस योजना के तहत लाभार्थियों की पहली दो बेटियों के खाते में 20-20 हजार रुपये भेजेगी बघेल सरकार, जानें पूरी बात


Chhattisgarh News: प्रधानमंत्री आवास योजना में कमीशनखोरी का मामला, अब सीएम बघेल ने दिया ये बड़ा बयान