Ambikapur News: अगर आप आलू की खेती करते हैं तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में एक ऐसा इलाका है. जहां आपके आलू की फसल लगने के पहले ही तैयार भी हो जाती है और बिकने के लिए पड़ोसी राज्यों में भेज दी जाती है. इतना ही नहीं यहां के आलू की डिमांड इतनी ज्यादा है कि बाहर के व्यापारी खेतों में खड़ी फसल को बुक कर लेते हैं और फिर सैकड़ों ट्रक आलू, छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्यों के थाली का पकवान बनता है.

 

सरगुजा के पहाडी इलाके में बसा मैनपाट, अपनी खूबसूरत वादियों, घने जंगलों और कल कल करते झरनों के साथ ही आलू की खेती के लिए देश भर में चर्चित है. सामान्यतः आलू रबी की फसल है, लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि मैनपाट के उन्नत किसानों द्वारा इसे ख़रीफ़ के सीजन में लगाया जाता है. मानसून के आते ही यहां जून लास्ट और जुलाई में आलू की बुआई कर दी जाती है और अक्टूबर तक इसकी खुदाई कर बिक्री भी कर दी जाती है. मतलब सामान्य स्थिति में जब आलू की बुआई अक्टूबर में की जाती है. तो वही अक्टूबर में मैनपाट का आलू बाज़ारों में दिखाई देने लगता है.

 

उत्तरप्रदेश की बड़ी मंडियों में जाता है आलू

मैनपाट के आलू की डिमांड इतनी ज़्यादा है कि खुदाई के पहले खेतों से ही व्यापारी फसल को ख़रीद लेते हैं. यहां का आलू उत्तरप्रदेश की बड़ी मंडी जैसे इलाहाबाद , बनारस और लखनऊ के अलावा अन्य प्रदेशों में भेजा जाता है. क़िस्म की बात करें तो यहाँ होने वाली आलू की किस्म में कुफ़री बादशाह, ज्योति, 3397 जैसी क़िस्में मुख्य हैं. लेकिन ज़्यादा डिमांड के कारण यहाँ के किसान ज्योति बीज का उपयोग करते हैं. ज्योति बीज से तैयार होने वाला आलू लाल गोल चिकना और पतले छिलके वाला होता है. और ये काफ़ी डिमांडिंग है. 

 

खरीफ़ में आलू का उत्पादन लुढ़का

बेहतर मौसम और ढलानी ज़मीन के कारण बारिश के दिनों में भी आलू खेत में जमा नहीं होता है. जिससे यहां पिछले वर्षों तक आलू की बंकर पैदावार होती थी. लेकिन अब कुछ वर्ष पहले तक जहां यहां के किसान 2000 हेक्टेयर में आलू की खेती करते थे. तो वहीं अब रक़बा घटकर 100 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. दरअसल, किसी भी खेती के लिए अनुकूल मौसम के साथ समय पर खाद और बीज चाहिए. लेकिन कुछ वर्षों में बढ़ी बीज की क़ीमत और समय पर खाद बीज ना मिल पाने के कारण आलू का रक़बा बहुत ज़्यादा घट गया है. जिसको लेकर किसान चिंतित भी हैं और उनकी वार्षिक आय भी बहुत ही कम हो गई है.

 

मैनपाट के आलू अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानी डॉ राठिया ने बताया कि ख़रीफ़ सीजन में आलू की पैदावार घटी है. पिछले साल डेढ़ हज़ार हेक्टेयर में आलू का उत्पादन हुआ था. इस बार क़रीब 200 हेक्टेयर में रक़बा सिमट गया है. इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि पिछले साल तक बीज 20-25 रूपए किलो मिलता था. लेकिन इस बार 40-45 रूपए किलो मिला है साथ ही खाद की कमी भी रक़बा घटने का मुख्य कारण है. उन्होंने ये भी बताया कि सरगुजा के मैनपाट, बलरामपुर के सामरी पाट और जशपुर के सन्नापाट ऐसे इलाक़े हैं, जहां ख़रीफ़ और रवि दोनों खेती सीजन में आलू लगाया जाता है. छत्तीसगढ़ में ऐसा सिर्फ़ इन्ही चार पांच में होता है. 

 

ग्रुप एरिगेशन बेहतर उपाय

डॉ राठिया के मुताबिक़ किसानों के सामने मंहगे बीज से बचने के लिए दो प्रमुख उपाय करना चाहिए. जो किसान नहीं करते हैं. पहला उपाय बताते हुए उन्होंने कहा कि किसान ग्रुप फ़ार्मिंग करके मंहगे बीच से बच सकते हैं. जिससे उनको बीज सस्ते में मिल सकता है. इसके माध्यम से रवि सीजन में आलू के बीज को कोल्ड स्टोरेज में रखकर अगली बार बीज के रूप मे इस्तेमाल किया जा सकता है. ग्रुप में ऐसा करने में कोल्ड स्टोरेज तक का खर्च तीन-चार किसानों में बंट जाएगा और फिर ख़रीफ़ के सीजन में इसी बीज का प्रयोग करते दुए मंहगे बीज खरीदने और बिचौलियों से बचा जा सकता था.

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