(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ram Mandir Opening: इस संप्रदाय के लोग शरीर पर गुदवा लेते हैं राम का नाम, इनकी पहचान ही है रामनामी समुदाय
Ram Mandir Pran Pratishtha: रामनामी संप्रदाय की स्थापना 19वीं सदी में परशुराम ने की थी. यह संप्रदाय भगवान राम की पूजा करता था. इस संप्रदाय के लोग मध्य और उत्तरी छत्तीसगढ़ में रहते हैं.
Ramlala Pran Pratishtha: अयोध्या (Ayodhya) में सोमवार (22 जनवरी) को राम मंदिर (Ram Mandir) का उद्घाटन और भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ramlala Pran Pratishtha) हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कराई. इस बीच हम आपको एक ऐसे संप्रदाय के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम गुदवाते हैं. ये संप्रदाय है रामनामी संप्रदाय.
रामनामी समुदाय के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना 19वीं सदी में परशुराम ने की थी. यह संप्रदाय भगवान राम की पूजा करता था. इस संप्रदाय के लोग मध्य और उत्तरी छत्तीसगढ़ में रहते हैं. रामनामियों का मानना है कि जो लोग राम की पूजा करते हैं उनका उनसे गहरा नाता जुड़ जाता है. रामनामी लैंगिक समानता में विश्वास करते हैं और खुद को 'घुंघरू' और मोर पंखों से बने मुकुट से सजाते हैं.
रामनामी परिवार के पास रहती है रामायण की प्रति
राम नाम गुदवाने की प्रक्रिया नियुक्त वरिष्ठ रामनामियों द्वारा दो लकड़ी की सुइयों का उपयोग करके मैन्युअल रूप से की जाती है, जिससे यह एक बेहद दर्दनाक प्रयास बन जाता है. मिट्टी के बर्तन में मिट्टी के तेल को जलाने से प्राप्त कालिख से इसके लिए स्याही बनाई जाती है. लगभग हर रामनामी परिवार के पास राम की छोटी मूर्तियों के साथ-साथ रामायण की एक प्रति, भगवान राम के जीवन और शिक्षाओं पर एक पुस्तक होती है. गांवों में अधिकांश अनुयायियों के घरों की बाहरी और भीतरी दीवारों पर काले रंग से "राम राम" लिखा होता है. बता दें छत्तीसगढ़ में रामनामी संप्रदाय इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति के लिए जाने जाने वाले इस संप्रदाय के अनुयायी, जिन्हें रामनामी कहा जाता है, सक्रिय रूप से विभिन्न अनुष्ठानों और परंपराओं में भाग लेते हैं जो राम के नाम के जाप और पूजा पर जोर देते हैं. सक्ती के जैजैपुर तहसील के पिरदा में हर साल आयोजित होने वाले वार्षिक रामनामी मेले पर चर्चा करते हुए, खम्हरिया के मनहरण रामनामी ने बताया कि महानदी के विपरीत तटों के बीच बारी-बारी से हर साल एक ही तारीख को मेला आयोजित किया जाता है. 150 वर्षों से, रामनामी भक्ति गीतों में लगे हुए हैं.
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