Independence Day: आजादी की लड़ाई में 16 साल की उम्र में ही कूद पड़े थे बाबू परमानंद, अभी तक नहीं मिला स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा
Chhattisgarh News: शहीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू परमानंद आजादी की लड़ाई में 16 साल की उम्र में ही कूद पड़े थे. हालांकि आजादी के 75 साल बाद भी नहीं मिला स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिला है.
Freedom Fighter Babu Parmanand: सरगुजा संभाग के एक आजादी के दीवाने जिसने महज 16 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया. परिवार के लोगों के लाख रोकने समझाने के बाद भी सरदार भगत सिंह से जुड़ी संस्था के बीस सदस्यीय आर्य सत्याग्रह जत्थे के साथ वंदे मातरम का उद्घोष कर अंग्रेजों के खिलाफ हैदराबाद स्टेट के राजौर आसिफाबाद में लड़ाई शुरू कर दी. अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर जेल में इतनी यातनाएं दी कि वे शहीद हो गए. लेकिन सरकार द्वारा तैयार स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में बाबू परमानंद का नाम ही नहीं है.
सरगुजा रियासत के शहीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू परमानंद का जन्म सरगुजा संभाग के सूरजपुर में 23 जनवरी 1921 ने हुआ. उनके पिता स्व गोकुल प्रसाद और माता लक्ष्मी देवी थी. बाबू परमानंद बड़े बेटे थे. इनकी प्राथमिक शिक्षा सूरजपुर से पूरी हुई. इसके बाद 1938 का दौर था जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन की आंधी जोरों पर थी. बाबू परमानंद भी इसी प्रेरणा से प्रेरित हुए, वे हिंदू महासभा के आह्वान पर घर से बिना बताए निकले और रायपुर पहुंचे. जहां उनकी दीदी का ससुराल था, वहां उन्होंने अपनी दीदी को लड़ाई में जाने की बात बताई. इस पर दीदी ने उन्हें मना किया. फिर भी वे नहीं माने तो उनकी दीदी ने उनके कपड़ों को पानी में डाल दिया, ताकि वह नहीं जा सके.
जीजा के कपड़े पहनकर आजादी की लड़ाई के लिए निकल पड़े
इसके बाद बाबू परमानंद सुबह गीला कपड़ा देख अपने जीजा के कपड़े पहनकर लड़ाई के लिए निकल पड़े. इसके बाद हरिद्वार से सोलापुर आकर सत्याग्रह समिति में शामिल हो गए. बाबू परमानंद ने सरदार भगत सिंह से संबंध संस्था के बीस सदस्यीय आर्य सत्याग्रह जत्थे के साथ वंदे मातरम का उद्घोष कर निजाम के हैदराबाद स्टेट के राजौर जिला आसिफाबाद में प्रवेश कर तहलका मचा दिया. इस आंदोलन से अंग्रेज प्रशासन चौकन्ना हो गया और इसे राजद्रोह मानकर आसिफाबाद, हैदराबाद स्टेट के राजौर से बाबू परमानंद सहित दल के सभी को गिरफ्तार कर गुलबर्ग जेल भेज दिया.
जेल में किया वंदे मातरम का उद्घोष
बाबू परमानंद के तेवर देख इनका स्थानांतरण हैदराबाद सेंट्रल जेल चंचलागुड़ी में कर दिया गया. जेल में भी वंदे मातरम और वैदिक धर्म के जय उद्घोष करते रहे, जेल अधिकारियों द्वारा नारे नहीं लगाने की चेतावनी को भी न मानते हुए अपने सिद्धांतों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया. जेल कर्मचारियों ने आदेश के उल्लंघन करने के अपराध में बड़ी निर्ममता से कोडे बरसाते हुए लहूलुहान कर दिया. इतनी बेरहमी से पीटा कि 1 अप्रैल 1939 को चंचलागुड़ी जेल में ही देश की खातिर शहीद हो गए.
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आजादी के 75 साल बाद भी नहीं मिला स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध कर रहे व्याख्याता व राज्यपाल से सम्मानित अजय चतुर्वेदी ने बताया शोध के दौरान सरगुजांचल के सूरजपुर जिले के एक गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ब्रह्मचारी बाबू परमानंद की जानकारी मिली. वे 18 वर्ष 02 माह 08 दिन जेल में रहते देश की खातिर शहीद हो गए थे, लेकिन आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी इन्हें शहीद या स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया है.