Shardiya Navratri 2022: माता शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्रि की आज से शुरुआत हो चुकी है. बालोद (Balod) जिला आज से ही भक्तिमय हो गया है. मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी है. सभी शक्तिपीठों में विधि विधान से मनोकामना दीप प्रज्वलित किए गए हैं. गंगा मैया शक्तिपीठ में इस बार भक्तों के सहयोग से 900 दीप जलाए गए हैं. शारदीय नवरात्र के मौके पर देश विदेश से भक्त आते हैं. मान्यता है कि मां गंगा मैया मंदिर में हर मनोकामना पूरी होती है. दूरदराज से लोग मुंडन कराने भी पहुंचे हुए हैं. लोग गंगा मैया को सिर के बाल दान करते हैं. पूरे छत्तीसगढ़ से लोग मुंडन कराने के लिए पहुंचते हैं.


माता शक्ति की उपासना का पर्व


मंदिर प्रबंधन मुंडन के लिए विशेष व्यवस्था करता है. भक्तों की भीड़ को देखते हुए मां गंगा मैया मंदिर में सुरक्षा की खास व्यवस्था की गई है. बालोद थाने सहित आसपास के सुरक्षाकर्मियों को बुलाया गया है. सुबह से ही सब जवानों की ड्यूटी बांट दी गई है. शाम होते ही भक्तों की संख्या में काफी इजाफा होता है. पर्व के दूसरे दिन से ही भक्तों की भीड़ लगने लगती है. सुरक्षा की तैनाती पुलिस अधीक्षक डॉ जितेंद्र कुमार यादव के निर्देशन में की गई है. मंदिर ट्रस्टी पालक ठाकुर ने बताया कि रोजाना भक्तों की संख्या में वृद्धि हो रही है.


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लोग मनोकामना मांगते हैं और मनोकामना पूरी भी होती है. उन्होंने कहा कि प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी पूड़ी सब्जी की व्यवस्था की गई है. उचित दर पर भक्तों को भोजन दिलाने के लिए दाल भात केंद्र बनाए गए हैं. लगभग 133 साल पहले जीवन दायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था. उस समय झलमला की आबादी मात्र 100 थी. सोमवार को बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था. बाजार में दूर-दराज से पशुओं के साथ बंजारे आया करते थे. पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस होने लगी थी.




सपने के बाद मूर्ति को निकाला बाहर

पानी की कमी को दूर करने के लिए बांधा तालाब की खुदाई कराई गई. झलमला में नहर किनारे मां गंगा मैया के अवतरण की कहानी लगभग 133 साल पुरानी है. देवी ने बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं. मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण- प्रतिष्ठा करवाओ. सपने की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट और अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहंचे.


केंवट के जाल फेंकने पर वही प्रतिमा फिर फंस गई. प्रतिमा को बाहर निकाला गया. उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई. जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से विख्यात हुई. मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया कि एक दिन ग्राम सिवनी का एक केंवट मछली पकड़ने इस तालाब में गया.


बार-बार जाल में फंसती रही प्रतिमा

जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई. केंवट ने अज्ञानतावश साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया. इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केंवट जाल लेकर घर चला गया. बताया जाता है कि तांदुला नहर निर्माण के दौरान गंगा मैया की प्रतिमा को हटाने का अंग्रेजों ने बहुत प्रयास किया. मगर एडम स्मिथ सहित अन्य अंग्रेजों साथियों की मौत हो गई.


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