Satnami Samaj Amar Gufa Jaitkham: छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में सोमवार 10 जून को सतनामी समाज के लोगों ने उग्र आंदोलन किया, जिसमें शहर भर में कई जगहों पर आग लगा दी गई. आंदोलनकारियों ने डीएम और एसपी ऑफिस कैंपस में भी तोड़फोड़ की और सरकारी प्रॉपर्टी को आग के हवाले कर दिया. इस दौरान उन्होंने कई गाड़ियों को जला दिया. 


जानकारी के अनुसार, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस पर पथराव भी किया गया, जिसमें कई अधिकारियों के घायल होने की सूचना है. घटना के बाद जिला प्रशासन ने बलौदा बाजार शहर में धारा 144 लागू कर दी, जो कि 16 जून तक जारी रहेगी. इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भी हिंसा के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं.


हैरानी की बात यह है कि जिस समाज ने हिंसा का रास्ता चुना, उनके गुरु घासीदास हमेशा हिंसा का विरोध करते आए हैं. उन्होंने 'मनखे-मनखे एक समान' का संदेश दिया, जिसने छत्तीसगढ़ के लाखों लोगों को एकजुट किया. हालांकि, सतनामी समाज के गुरु खुशवंत साहेब ने यह दावा किया है कि ऐसी वारदात सतनामी समाज के लोग नहीं कर सकते. इसमें जरूर असामाजिक तत्व शामिल हैं.


सतनामी समाज की स्थापना कैसे हुई?
दरअसल, सतनामी समाज की शुरुआत बाबा गुरु घासीदास से मानी जाती है. बाबा घसीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को बलौदा बाजार में ही हुआ था. यहां के गिरौदपुरी नाम के एक गांव में पिता मंहगू दास और माता अमरौतिन के घर बाबा घसीदास जन्मे. माना जाता है कि घसीदास ने बचपन से ही कई प्रकार के चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए थे, जिससे लोग काफी प्रभावित थे. 


यह भी कहा जाता है कि गुरु घसीदास को ज्ञान की प्राप्ति रायगढ़ जिले के सारंगढ़ तहसील के एक गांव के बाहर पेड़ के नीचे तपस्या करने से हुई थी. उन्हीं की याद में आज यहां पुष्प वाटिका सजाई गई है. मान्यता है कि बाबा घसीदास ने सत्य की तलाश के लिए कई प्रयास किए और इसलिए ही वह गिरौदपुरी गांव के जंगलों में छाता पहाड़ गुफाओं पर समाधि लगाई. इसके बाद गिरौदपुरी में ही आश्रम बनाया. यहां सत्य की खोज में वह लंबी तपस्या पर बैठे.


बताया जाता है कि गुरु घसीदास के पास किसी तरह की कोई शिक्षा नहीं थी. तप और आत्मबल से उन्हें महाज्ञानी की उपाधि हासिल हुई. लाखों लोगों पर उनका प्रभाव था और बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बने. इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में ‘सतनाम पंथ’ स्थापित हुआ. लोगों का मानना है कि गुरु घसीदास अवतार थे. 


कैसे हुई जैतखाम की स्थापना
दरअसल, गिरौदपुरी में ही जहां पर गुरु घासीदास ने तपस्या की, वहां उनके अनुयायियों ने मंदिर बनवाया. इसे ‘अमरगुफा’ कहा जाता है और यहीं पर ‘जैतखाम’ स्थापित किया गया. सतनाम समाज में मूर्ति पूजा निषेध है और वर्ण भेद मायने नहीं रखता. साल 1850 में गुरु घसीदास की मृत्यु के बाद बेटे गुरु बालकदास ने उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाया. आज बाबा घसीदास के करोड़ों अनुयायी हैं. उनका सबसे प्रसिद्ध संदेश 'मनखे-मनखे एक समान' है.


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