Balrampur News: वनांचल क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों के लिए जंगल किसी वरदान से कम नहीं. हरे भरे पेड़ों से जहां पर्यावरण अच्छा होता है. वहीं जंगल में पाए जाने वाले विभिन्न प्रजाति के पेड़ पौधों के फल ग्रामीणों के लिए आय का जरिया है. जिसमें महुआ भी शामिल है.


गर्मी के दिनों में होने वाले महुआ को बीनने इन दिनों ग्रामीण परिवार के साथ निकल जाते हैं. परंतु हाल ही में क्षेत्र में हाथी और बाघ की धमक के बाद से अब ग्रामीणों को जंगली जानवरों का भय भी सताने लगा है. ऐसे में ग्रामीण पहले की अपेक्षा कम ही जंगल की ओर जाना पसंद करते हैं. उनकी आय पर भी इसका असर पड़ा है. हालांकि वन विभाग ग्रामीणों को सर्तक कर देता है. इससे ग्रामीणों को कुछ राहत मिली है.


महुआ बेचकर छोटी मोटी जरूरतों को करते  हैं पूरा
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण इन दिनों सुबह से ही अपने पूरे परिवार के साथ महुआ बीनने निकल जाते हैं. बच्चे बूढ़े, महिलाएं और युवा सभी मिलकर महुआ बीनते हैं. जिले में महुआ पेड़ों की संख्या अधिक होने के कारण लगभग हर गांव से परिवार के लोग जंगल और जंगल के आसपास स्थित पेड़ के नीचे गिरे महुआ को बीनते आसानी से नजर आ जाएंगे. ऐसे में गांव में महुआ जीविकोपार्जन का प्रमुख जरिया बन गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग महुआ को बेचकर अपनी घर की छोटी मोटी जरूरतों को पूरा करते हैं. 


इस तरह महुआ ने वनांचल क्षेत्रों में ग्रामीणों के चेहरों पर खुशी बिखेर दी है. हालांकि मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का असर भी महुआ पर पड़ा है. ओलावृष्टि के कारण महुआ पेड़ से गिरकर खराब हो गए थे. लेकिन जिस तरह से गर्मी पड़ रही है उससे महुआ गिरने से एक बार फिर ग्रामीणों की भीड़ पेड़ों के नीचे लगने लगी है.


आमदनी का बना जरिया
जिले के वनांचल और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए महुआ इन दिनों आमदनी का जरिया बना हुआ है. ग्रामिण महुआ बेचकर अपनी जरूरत के सामान खरीदते हैं. वो सुबह महुआ बीनने के बाद अपने घरों में ले जाकर उसे सुखाते हैं. सूखाने के बाद बेचकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं. ऐसे में ग्रामीणों के लिए महुआ आमदनी का अतिरिक्त जरिया बन गया है. 


ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी मिलकर महुआ बीनने का काम करते हैं. सुबह से ही टोकरी लेकर जंगल की तरफ महुआ बीनने निकल पड़ते हैं और दोपहर तक बीनते हैं. इन दिनों ज्यादा महुआ बीनने की होड़ ग्रामीणों के बीच लगी रहती है. यहां के जंगलों में महुआ के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते हैं.


मार्च-अप्रैल में गिरता है महुआ
जिले के वनांचल और ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं. यहां मार्च-अप्रैल के महीने में जमकर महुआ गिरता है. ग्रामीण महुआ बीनने में जुट जाते हैं. इस मौसम में बाहर मजदूरी करने जाने वाले ग्रामीण भी महुआ के सीजन में वापस गांव लौट आते हैं और महुआ बीनते हैं.


जंगली जानवरों का भय
ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ आमदनी का जरिया बना हुआ है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कब हाथी और भालू सहित अन्य जानवर हमला  कर दें. हालांकि वन विभाग भी जन और धन हानि न हो इसे लेकर ग्रामीणों को प्रचार प्रसार कर सर्तक करते रहता है. वन अधिकारी संतोष पाण्डेय और जिले के डीएफओ विवेकानंद झा ने अपने स्तर से हर जगह ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार प्रसार करवाया है कि जहां कहीं भी हाथी की या कोई जंगली जानवर की खबर हो उस तरफ न जाए. रात के अंधेरे में तो कभी न जाएं. मगर इस बात को कभी कभी ग्रामीण गंभीरता से नहीं लेते, जिससे भालू या हाथी के हमले से वो घायल हो जाते हैं.


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