Balrampur News: 'पीला सोना' इकट्ठा करने के लिए जंगल में डेरा डालते हैं आदिवासी, कितना उपयोगी है महुआ?
Chhattisgarh News: आदिवासी पेड़ के नीचे आग लगाकर फूल इकट्ठा करते हैं. गर्मियों में पेड़ से महुआ टपकने की शुरुआत होती है. महुआ ग्रामीण आदिवासियों की आय का प्रमुख स्रोत है.
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Chhattisgarh News: बलरामपुर जिले के जंगल में पीला सोना कहे जाने वाले महुआ फूल का टपकना शुरू हो गया है. महुआ की महक से जंगल का वातावरण सुगंधित हो गया है. फूल को इकट्ठा करने के लिए आदिवासी ग्रामीण टोकरी लेकर सुबह में निकल रहे हैं.
महुआ ग्रामीण आदिवासियों की आय का प्रमुख स्रोत है. वर्तमान में सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदारी कर रही है. स्थानीय व्यापारियों से भी महुआ का अच्छा दाम मिल जाता है. महुआ को इकट्ठा करने के लिए आदिवासियों में उत्साह है.
शराब बनाने में होता है उपयोग
आदिवासी अंचल में महुआ फूल का उपयोग शराब बनाने के लिए किया जाता है. देसी शराब से आदिवासियों को अच्छी आमदनी हो जाती है. आदिवासी संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक महुआ की शराब जरूरी है. वनवासियों के लिए भी खास माना जाता है.
महुआ के पेड़ से डोरी भी गिरता है. आदिवासी बीज को सूखा कर तेल निकालते हैं. डोरी के बीज से निकाला गया तेल खाने और औषधि में भी काम आता है. हाथ पैर के दर्द में वनवासी तेल से मालिश करते हैं. डोरी के बीज से निकाला गया तेल दिया जलाने में इस्तेमाल किया जाता है.
अगलगी का बढ़ जाता है खतरा
गर्मियों में महुआ टपकने की शुरुआत के साथ जंगलों में आग लगने की आशंका बढ़ जाती है. आदिवासी पेड़ के नीचे आग लगाकर फूल इकट्ठा करते हैं और बिना बुझाये छोड़कर चले जाते हैं. कई बार आग हवा से धीरे-धीरे पूरे जंगल को चपेट में ले लेती है. हर साल बड़ी मात्रा में वन संपदा का नुकसान होता है. नुकसान को रोकने के लिए वन विभाग जागरूकता कार्यक्रम चलाता है.
समर्थन मूल्य में खरीदेगी सरकार
महुआ संग्रहण के दौरान जंगल में आदिवासियों का खाना और विश्राम होता है. सूर्य के चढ़ने पर पेड़ों से फूल गिरना कम हो जाता है. इसलिए ग्रामीण सुबह पेड़ के नीचे फूलों को इकट्ठा करने पहुंच जाते हैं. जिले के जंगलों में चारों ओर महुआ की खुशबू बिखर रही है.
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