Balrampur-Ramanujganj News: छत्तीसगढ़ के बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में स्थित डीएफओ बंगला में काम करने वाले 10 कर्मचारियों को दो साल से वेतन नहीं मिलने का मामला सामने आया है. मजदूरी दर पर तैनात कर्मचारी शासन-प्रशासन से कई बार मदद की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनकी सुनवाई कहीं नही हो पा रही है. जिससे मजूदरों के सामने बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है.
ये मामला जिला मुख्यालय बलरामपुर में स्थित डीएफओ के सरकारी आवास से जुड़ा हुआ है. जहां पर दो साल पहले जिले के तत्कालीन डीएफओ प्रणय मिश्रा के कार्यकाल के दौरान 10 कर्मचारियों को मजदूरी दर पर बंगले के रख रखाव के लिए रखा गया था. जिसमें से माली, कुक, गार्ड और चौकीदार का काम कर्मचारियों ने किया था, लेकिन वर्ष 2020 में जिले में एक हाथी की मौत के बाद तत्कालीन डीएफओ को राज्य सरकार ने वापस रायपुर बुला लिया था और लक्ष्मण सिंह को जिले के डीएफओ के पद पर पदस्थ किया गया था. जिसके बाद डीएफओ बंगले में काम करने वाले सभी कर्मचारियों का मजदूरी भुगतान रुक गया.
विधवा महिला कर्मचारी की भी नहीं हो पा रही सुनवाई
डीएफओ बंगले में कुक के पद पर काम करने वाली एक विधवा महिला मुमित्री नाग का कहना है कि अपने परिवार का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी खुद उसके ऊपर है. लेकिन उसको दो वर्ष काम करने के बाद भी उसकी मजदूरी नहीं मिल सकी है. जिसके कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई है. मुमित्री के मुताबिक उसने अपने मजदूरी भुगतान को लेकर विभागीय अधिकारियों के पास गुहार लगा चुकी है, लेकिन अभी तक उसकी समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.
मजदूरी दर पर काम करने वाली सेविस्टिना खेस ने बताया कि समय पर मजदूरी नहीं मिलने से उसके बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर भी बुरा असर पड़ा है. पैसा नहीं होने से लड़की की शादी भी नहीं कर पा रहे हैं. वर्तमान डीएफओ से मजदूरी मांगते हैं तो उनका कहना है. "मेरे समय का नहीं है, जो आपसे काम करवाया आप उसी से पैसा मांगिए" इसलिए हम लोग अपने मजदूरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
डीएफओ ने नहीं उठाया फोन
इस मामले को लेकर डीएफओ लक्ष्मण सिंह से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई, लेकिन खबर लिखे जाने तक उनकी ओर से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया प्राप्त नही हुई है. बहरहाल सवाल यही है की सरकारी बंगलों की चमक-धमक जिन कर्मचारियों के मेहनत से बरकरार रहती है. आज वही कर्मचारी अपनी मजदूरी के लिए दर-दर भटकने के लिए क्यों मजबूर है. क्या एक डीएफओ के हट जाने से अब उन तमाम कर्मचारियों की मजदूरी जो दिन रात सरकारी आवास में अपनी सेवाएं दे रहे थे उनका मेहताना डूब जाएगा.
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