Chhattisgarh Naxal Attack: छत्तीसगढ़ के नक्सल (Naxalite) प्रभावित क्षेत्र बस्तर (Bastar) में माओवादियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ के दौरान हर साल सैकड़ों निर्दोष लोग मारे जाते हैं. कुछ ग्रामीणों को पुलिस मुखबिरी के शक में माओवादियों के द्वारा मौत के घाट उतार दिया जाता है. वहीं कुछ निर्दोष ग्रामीण क्रॉस फायरिंग में तो कुछ टारगेट किलिंग का शिकार होते हैं. कई निर्दोष तो शक के बिनाह पर ही मार दिए जाते हैं. बस्तर संभाग में बीते 24 सालों में ऐसे 1,700 से अधिक लोगों की मौत हुई है. इन निर्दोषों की मौत पर सरकार की तरफ से मुआवजे का प्रावधान है, लेकिन अक्सर उनकी मौत पर न्याय मिलने में होने वाली देरी सबसे बड़ी मुश्किल है.


आज भी ऐसे कई निर्दोष ग्रामीण परिवार हैं, जिन्हें न तो सरकार के तरफ से मुआवजा मिल सका है और न ही उनके परिवार में किसी को नौकरी मिल पाई है. कई लोगों के केस पिछले 10 सालों से भी अधिक समय से चल रहे हैं. हालांकि, इन ग्रामीणों को उम्मीद है कि उन्हें एक दिन इंसाफ जरूर मिलेगा. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आम लोगों की जिंदगी कितनी मुश्किल है यह इस बात से समझा जा सकता है. यहां अगर किसी तरह उन पर यह शक हो जाए कि वह पुलिस के लिए मुखबिरी का काम करते हैं तो इसी शक में ही उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है. छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से बीते 24 सालों में करीब 1,700 लोग ऐसे हैं जो इसी तरह से जान गंवाने पर मजबूर हुए हैं. 


सालों चलते हैं केस
यहां सिर्फ माओवादियों द्वारा हत्या ही नहीं बल्कि क्रॉस फायरिंग में भी कई बार निर्दोष लोगों की जान चली जाती है. बीते एक महीने में पुलिस और नक्सलियों के मुठभेड़ के बीच ऐसे ही क्रॉस फायरिंग में छह महीने की बच्ची से लेकर तीन लोगों की मौत हो चुकी है, जिनकी जांच जारी है. वहीं दंतेवाड़ा में एक परिवार मृतक का शव लेकर इस इंतजार में बैठा है कि उन्हें न्याय मिलेगा. सबसे बिडंबना वाली बात यह है कि जिंदगी का ही सफर नहीं बल्कि मौत के बाद का भी सफर यहां इंसाफ के लिए लंबा होता है. निर्दोष ग्रामीण की मौत क्रॉस फायरिंग में हुई है, नक्सलियों द्वारा हत्या की गई है या फिर किसी झूठे मामले में नक्सली बताए जाने को लेकर हुई है. यह साबित करते-करते सालों गुजर जाते हैं.


10 लाख रुपये तक के मुआवजे का प्रावधान
बस्तर के आईजी सुंदरराज पी बताते हैं कि क्रॉस फायरिंग में मारे जाने वाले ग्रामीणों के परिजनों को मुआवजा देने का प्रावधान है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार की तरफ से संयुक्त रूप से 10 लाख रुपये तक का मुआवजा मारे गए ग्रामीण के परिजनों को दिया जाता है. साल दर साल पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों की सबसे ज्यादा हत्याएं माओवादियों द्वारा की जाती है.


एक दो हत्याओं के आंकड़े सामान्य दिखाई देते हैं, लेकिन अगर आप साल दर साल इन आंकड़ों को देखें तो सैकड़ों लोग बेवजह मारे जाते हैं और उनके परिवार के हिस्से में सिर्फ लाचारी ,बेबसी ओर इंसाफ की आस आती है. कई बार मुआवजा पाते-पाते सालों गुजर जाते हैं. कोर्ट में कई सालों तक केस चलते हैं, जिससेमुआवजा मिलने की आस भी पूरी तरह से खत्म हो जाती है. हालांकि, कुछ मामलों में शासन के द्वारा जल्द ही मुआवजा भी मिल जाता है.


बस्तर के ग्रामीण कर रहे शांति की अपील
पुलिस नक्सली मुठभेड़ में  क्रॉस फायरिंग और पुलिस मुखबिरी के शक में मारे गए ग्रामीणों के परिवार वालों का कहना है कि बस्तर पिछले चार दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. पुलिस और नक्सलियों के लड़ाई के बीच आम ग्रामीण या तो क्रॉस फायरिंग में मारे जा रहे हैं या पुलिस मुखबिरी के शक में नक्सली उनकी हत्या कर दे रहे हैं. शासन-प्रशासन के द्वारा मुआवजा का तो प्रावधान है, लेकिन निर्दोष ग्रामीणों की हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.


ऐसे कई परिवार हैं जो नक्सली हिंसा से पीड़ित हैं. वहीं पुलिस की गोली से मारे गए ग्रामीणों के भी ऐसे परिवार हैं, जो आज भी बेबसी और लाचारी की जिंदगी जीने का मजबूर हैं. वहीं अन्य ग्रामीणों की जिंदगी न उजड़े इसलिए बस्तर के ग्रामीण शांति की अपील भी कर रहे हैं.



ये भी पढ़ें- Kamal Nath News: कमलनाथ के BJP जॉइन करने की अटकलों के बीच राजीव शुक्ला का बड़ा दावा- 'हमने सुना है कि ऐसा कुछ...'