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Chhattisgarh: Bastar में आदिवासियों के आराध्य माने जाते हैं आंगा देव, जात्रा में निभाई जाती है 400 वर्ष पुरानी यह अनोखी परंपरा

Bastar: बस्तर संभाग के हर एक गांव में सदियों पहले स्थापित किए गए देव विग्रह आंगा देव आज भी मौजूद हैं. आदिवासी समुदाय के लोगों की मानें तो यह देव की मूर्ति नहीं है लेकिन इस पर देव आते हैं.

Bastar Tradition: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का बस्तर (Bastar) अपनी अनोखी परंपरा और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में पहचाना जाता है. यहां के आदिवासियों की रीति- रिवाज, रहन-सहन, पूजा-पाठ सबसे अलग है, इसलिए बस्तर को अद्भुत बस्तर कहा जाता है. बस्तरवासियों के धार्मिक हो या सामाजिक परंपरा बिना स्थानीय देवी देवता के नहीं होती और इन देवी-देवताओं में सबसे प्रमुख और आराध्य आंगा देव को माना जाता है. 

बस्तर संभाग के हर एक गांव में सदियों पहले स्थापित किए गए देव विग्रह आंगा देव आज भी मौजूद हैं. आदिवासी समुदाय के लोगों की मानें तो यह देव की मूर्ति नहीं है लेकिन इस पर देव आता है. आंगा देव का निर्माण विधि विधान से किया जाता है और ऐसा माना जाता है कि इसमें देवता वास करते हैं. दरअसल बस्तर के स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग पेड़ की लकड़ी से एक डोली की तरह आंगा देव बनाते हैं और इसे मिट्टी, मोर पंख सहित अन्य चीजों से सजाते हैं.

सैकड़ों वर्ष पुरानी है यह परंपरा

ग्रामीणों का कहना है कि आंगा देव आदिवासियों के इष्ट देव हैं और आदिवासी समुदाय द्वारा आंगा देव के पूजन की परंपरा सदियों पुरानी है. ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 400 वर्ष पहले उनके पूर्वजों ने आंगा देव की स्थापना की थी. आंगा देव के निर्माण के लिए लकड़ी पुरानी हो जाने से उसे पुनः आदिवासी समुदाय व गांव वालों की उपस्थिति में विधि विधान से सागौन की लकड़ी से आंगा देव की पुनः स्थापना की जाती है. शीतला माता मंदिर समिति कोंडागांव के सह सचिव नरपति पटेल ने बताया कि बस्तर के आदिवासी सहज और सरल स्वभाव के होते हैं, पेड़ की लकड़ी काटकर अपना इष्ट देवता का विग्रह बनाते हैं और आंगा देव बनाते समय लकड़ी में औजार लगाने पड़ते हैं. जब आंगा देव बन जाते हैं तो इस पर हल्दी का लेपन करते हैं, इस परंपरा का उद्देश्य निर्माण के दौरान औजार लगने से आंगा देव (लकड़ी) को चोट लगती है, जिसके कारण हल्दी का लेप लगाने से चोट में राहत मिलती है.

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न्यायाधीश की भूमिका निभाते है आंगा देव

बस्तर के इतिहासकार और वरिष्ठ पत्रकार हेमंत कश्यप ने बताया कि गांव में कोई पर्व हो या कोई सामाजिक या धार्मिक आयोजन आंगा देव के पुजारियों की अनुमति के बिना कहीं नहीं जाते हैं, आंगा देव का चलायमान देवस्थान है. आंगा देव  पुजारी के निगरानी में रहते हैं और पुजारी के अनुमति के बिना इसे कहीं नहीं ले जाया जाता है. वहीं बस्तर क्षेत्र के जानकार खेम वैष्णव ने बताया कि आंगा देव का सीधा अर्थ अंग में धारण करने वाला है. बस्तर में आंगा देव का सामाजिक और धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है, आंगा देव बस्तर की संस्कृति में रचे बसे हैं और आंगा देव काफी उग्र देव माने भी जाते हैं, उनसे लोग काफी डरते हैं. कहीं भी कोई मुसीबत आती है तो आंगा देव को ले जाकर उसे दूर किया जाता है. कहा जा सकता है कि यह देव न्यायाधीश की भूमिका निभाते हैं, आज भी देवी-देवताओं के प्रति बस्तर के लोगों के मन में जो आस्था दिखाई देती है इसे नकारा नहीं जा सकता.

हर साल होती है आंगा देव की जात्रा

छत्तीसगढ़ के बस्तर में ही आंगा देव देखने को मिलते हैं, बस्तर के ग्रामीण अंचलों में होने वाले मंडई मेले, और जात्रा के साथ ही विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व के दौरान आंगा देव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के रथ परिचालन के दौरान आंगा देव ही रथ की अगुवाई करते हैं, वहीं साल में 2 बार आंगा देव जात्रा का भी आयोजन होता है. जात्रा के मौके पर कोंडागांव के केशकाल घाटी में स्थित भंगाराम के मंदिर में सभी गांव के आंगा देव एकत्रित होते हैं. जानकार खेम वैष्णव बताते हैं कि भंगाराम आस-पास के 40 गांव के देवों के मुखिया है, पूरे परगना के 40 गांव के देवी-देवता इस जात्रा में आते हैं. इस जात्रा में असली और नकली देवताओं की भी जांच होती है, भंगाराम सभी आंगा की जांच कर बता देते हैं कि कौन देव नकली है और किसने उसे गांव वालों को धोखा देने के लिए बनाया है और सिद्ध हो जाने पर नकली आंगा को वही तोड़ कर फेंक दिया जाता है. आंगा देव की यह जात्रा बस्तर की अनोखी परंपरा होती है.

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