Bastar News: 92 वर्षीय ताऊजी ने नक्सली क्षेत्र की बालिकाओं को ऐसे दिलाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान, पढ़ें पूरी कहानी
बस्तर के आदिवासी लड़कियों को 92 वर्षीय ताऊजी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है. इनके सहयोग से सैकड़ों बालिकाओं ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक जीतकर बस्तर का सम्मान बढ़ाया है.
Chhattisgarh News: जगदलपुर शहर के डिमरापाल गांव में मौजूद रुकमणी कन्या आश्रम के संचालक पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने बताया कि वह 60 के दशक में बस्तर आए थे, उन्होंने बस्तर आने से पहले बस्तर में महिलाओं की वीरता की कहानी अखबारों में पढ़ी थी, उन्होंने बताया कि 1960 में बस्तर में 6 महिलाओं ने उन पर हमला कर रहे तेंदुआ को अपने साहस का परिचय देते हुए, पारंपरिक हथियार से चारों खाने चित कर दिया था, और उसके बाद यहां की महिलाओं की हिम्मत और ताकत को लेकर धर्मपाल सैनी ने बस्तर पहुंच आदिवासी बालिकाओं में शिक्षा की अलख जगाने गांव गांव पहुंचकर बालिकाओं को पढ़ाया, जिसके बाद गांव वालों की मदद से एक कन्या आश्रम की स्थापना छोटे से कुटिया में की.
यहां पर आदिवासी बालिकाओं को पढ़ाने के साथ ही खेल जगत में भी उन्हें प्रशिक्षण दिया और धीरे-धीरे पूरे बस्तर संभाग में 40 से ज्यादा रुकमणी कन्या आश्रम स्थापित किए. 1980 के बाद बस्तर संभाग में नक्सलवाद तेजी से बढ़ा और इस दौरान कई नक्सली हिंसा हुई और न जाने कितने बच्चियों के माता-पिता इस हिंसा में मारे गए, जिसके बाद उन बालिकाओं को भी धर्मपाल सैनी ने अपने आश्रम में रखकर पढ़ाया, और खेलों के प्रति भी उनके अंदर रुचि पैदा की और नतीजा यह निकला कि बस्तर की ये बेटियां आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में अपने लोहा मनवा रही हैं.
पद्मश्री धर्मपाल सैनी के मार्गदर्शन में केवल जगदलपुर रुकमणी आश्रम की 150 से ज्यादा बालिकाएं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत चुकी हैं. सीमित संसाधन के बावजूद यहां के खिलाड़ी देश में बस्तर का नाम रोशन कर रहे हैं..
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी बालिकाओं ने दिखाया जौहर
इन आश्रमों में आदिवासी बालिकाओं को पहली से लेकर 12वीं तक की शिक्षा मिल रही है और साथ ही साथ बच्चे खेल में भी अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं, पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने बताया कि आश्रम के बालिकाओं को नि:शुल्क शिक्षा, भोजन और आवास की सुविधा दी जाती है, उन्होंने बताया कि अब तक ढाई हजार से ज्यादा बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेलों में हिस्सा लेकर पदक जीत चुके हैं, बच्चियों को जो भी पुरस्कार राशि मिलती है उसे वे अपने घर में आर्थिक रूप से भी मदद करते हैं, और अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं.
उन्होंने कहा कि बस्तर की बालिकाओं में बहुत स्टेमना है, जरूरत है तो उनके प्रतिभाओं को निखारने की और इसके लिए धर्मपाल सैनी के साथ मिलकर हर संभव प्रयास यहां के शिक्षक कर रहे हैं. लगातार 5 सालों तक यहां की बालिकाएं सुब्रतो फुटबॉल प्रतियोगिता में जीत हासिल की है, इसके साथ ही एथलेटिक्स, खोखो और तीरदांजी औऱ थ्रो बॉल में तीन तीन बार गोल्ड मेडल ला चुकी है.
साथ ही कबड्डी और मैराथन में भी छात्राएं राष्ट्रीय स्तर पर ट्रॉफी हासिल कर चुकी है. खास बात यह कि धर्मपाल सैनी के आने से पहले तक बस्तर में साक्षरता का ग्राफ 10 फ़ीसदी भी नहीं थी और आज वर्तमान में बस्तर में शिक्षा का प्रतिशत 50 फ़ीसदी के करीब पहुंच गया है, साथ ही गांव गांव की आदिवासी बालिकाएं स्कूल नहीं जाती थी लेकिन आज धर्मपाल सैनी की आश्रमों में कई बालिकाएं रहकर पढ़ाई कर रही हैं. और शिक्षा और खेल के जगत में नाम कमा रही है.
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