Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी दिवाली पर्व की जोर शोर से तैयारियां शुरू हो गई है. इस साल कोरोना का असर लगभग खत्म होने से दीपावली त्यौहार के बाजार में रौनक देखने को मिल रही है. कपड़ों से लेकर पटाखों, मिठाइयों, सुपर मार्केट और सर्राफा व्यवसायियों के दुकानों में ग्राहकों की भारी भीड़ देखी जा रही है, लेकिन इस पर्व की सबसे खास दीयों का बाजार बस्तर के लोकल कुम्हारों से नहीं बल्कि ओड़िशा के कुम्हारों से भरा पड़ा है, दरअसल बस्तर के कुम्हारों ने दीया बनाने के अपने पारंपरिक काम को छोड़ दिया है, जिस वजह से पूरे बाजार में केवल ओड़िशा राज्य के कुम्हारों द्वारा लाये गए दीयों से बाज़ार भर पड़ा है और अब बस्तर के मिट्टी के शिल्पकार भी अपने पारंपरिक काम को छोड़ ओड़िशा के लोगों से दिए खरीद कर इसकी बिक्री कर रहे हैं.
बस्तर के शिल्पकारों ने पारंपरिक काम से किया तौबा
बस्तर में हर साल दीपावली के त्यौहार पर मिट्टी के कुम्हारों को अच्छी कमाई की उम्मीद रहती है, साल में गर्मियों के अलावा दीपावली का त्यौहार ही वह मौका होता है, जब कुम्हारों की पूछ परख होती है, और एक ही सीजन में सालभर के लिए बनाए गए मिट्टी के दिए, बर्तन और सजावट के सामान कुम्हार बेच पाते हैं. बीते 20 दिनों से ओड़िशा राज्य से करीब 200 से अधिक कुम्हार परिवार बस्तर में डेरा डालकर दिए खुले बाजार में बेच रहे हैं.
इन कुम्हारों का कहना है कि वह बीते कुछ सालों से बस्तर के बाजार पर निर्भर है, और स्थानीय कुम्हारों द्वारा मिट्टी की कला शिल्प से दूरी के बाद ओड़िशा के कारीगर ही बस्तर में मिट्टी के उत्पाद बनाते हैं, और बेचते हैं, दीपावली पर्व के दौरान बस्तर का बाजार ओड़िशा के कुम्हारों के लाए मिट्टी के सामानों से भरा हुआ है, इस बार भी ने दीपावली से पहले लाखों रुपए का सामान उन्हें बेचने की उम्मीद है.
स्थानीय कुम्हारों के नाम से जाना जाता था शहर
दरअसल कभी बस्तर के दर्जनों गांव स्थानीय कुम्हारों के नाम से जाने जाते थे, दिवाली पर्व में दिया बनाकर बेचना यहां के ग्रामीणों के लिए मुख्य आय का साधन था, लेकिन अब यहां के कुम्हारों ने मिट्टी का काम बंद कर दिया है, इसकी जगह बस्तर में दीपावली पर्व पर घर में सजाने वाले मिट्टी के दिए और सजावट के सामान ओड़िशा से पहुंचने लगे हैं.
स्थानीय कुम्हारों का कहना है कि बस्तर के ग्रामीण धीरे-धीरे अपने पारंपरिक काम को बंद कर रहे हैं उसमें दीया का व्यवसाय भी शामिल है, अब जो भी ग्रामीण दीपावली में दिए की बिक्री करते हैं वह भी ओड़िशा से लाये जाने वाले दिया को ही खरीद कर उसे मार्केट में बेचते हैं. उनका कहना है कि मिट्टी से लेकर बाकी सामान भी बस्तर में महंगे हो गए हैं, यही नहीं अब प्रशासन भी कुम्हारों को प्रोत्साहित करने के लिए इस पर ध्यान नहीं देता.
यही वजह है कि कुछ थोड़ी बहुत लोग जो यहां मिट्टी से दीया और सजावट के सामान बनाने का काम कर रहे थे, वह भी अब इस काम को छोड़ चुके हैं, और ओड़िशा से पहुंचने वाले दिए पर ही निर्भर रह रहे हैं, इन दीयों को थोक में खरीद कर मार्केट में बिक्री कर अपने जिंदगी का गुजारा बसर कर रहे हैं.
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