Chhattisgarh Latest News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में मौजूद भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर दूरदराज से आने वाले पर्यटकों के लिए श्रद्धा के साथ आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. इस मंदिर में करीब 200 साल पुरानी घंटी लगी हुई है. इस घंटी में 1806 लंदन लिखा हुआ है. जानकार बताते हैं कि तत्कालीन ब्रिटिश के राज्यपाल ने यह घंटी मंदिर में चढ़ाई थी. तब से यह घंटी मंदिर के प्रांगण में लगी हुई है और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.
इसका वजन करीब 15 किलो है और प्योर लोहे से बनी इस घंटी की खास बात यह है कि इसमें कभी जंग नहीं लगती, दरअसल मंदिर की खुदाई के दौरान शिवलिंग के साथ ग्रामवासियों को यह घंटी मिली थी जिसके बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और आज भी मंदिर बनने के बाद लंदन की यह घंटी मंदिर की शोभा बढ़ा रही है, करीब 200 साल पुरानी घंटी को देखने हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं, साथ ही महाशिवरात्रि और सावन के सोमवार के मौके पर भगवान शिव के मंदिर में मेला लगता है.
शिव के उपासक हैं बस्तर के ग्रामीण
छत्तीसगढ़ के बस्तर को आदिकाल से ही शिवधाम कहा जाता है, यहां के ग्रामीण भगवान शिव और भगवान राम की सैकड़ों सालों से उपासना करते आ रहे हैं. यही वजह है कि बस्तर में हजारों की संख्या में भगवान शिव के मंदिर हैं और सभी मंदिर की अलग-अलग विशेषताएं हैं. जगदलपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामपाल का शिव मंदिर भी प्रसिद्ध है और सैकड़ों साल पुराना है. इंद्रावती नदी के पास मौजूद मंदिर में खुदाई के दौरान शिवलिंग मिला था.
इस शिवलिंग की गोलाई लगभग 3 से 4 फीट है और कुछ साल पहले की जांच में लगभग 30 फीट से अधिक गहराई पाई गई. ग्रामीण इस शिवलिंग को अटल शिवलिंग कहते हैं जो कि जमीन की नाभि से मिलता है.
इस पुरातात्विक मंदिर की कहानी प्रभु श्रीराम से जुड़ी है. कहा जाता है कि अपने 14 साल के वनवास के दौरान जब भगवान राम दंडकारण्य से गुजर रहे थे तब उन्होंने यहां मौजूद शिवलिंग में पूजा-अर्चना की थी. इसलिए बस्तर के प्रसिद्ध शिवधाम में से एक रामपाल गांव को रामवनगमन पथ से भी जोड़ा गया है. मंदिर के आसपास खुदाई के दौरान ग्रामीणों को जो ईट मिली है. वह पांचवीं सदी की है, ऐसा पुरातत्व के जानकार कहते हैं, इस ईट के अवशेष आज भी मंदिर में मौजूद हैं. मान्यता है कि शिवलिंग प्रभु श्रीराम द्वारा स्थापित की गई है.
दिल्ली के श्रीराम सांस्कृतिक संस्थान के विशेषज्ञों ने इसकी शोध की थी और 50 साल से श्रीराम के वनवास पर शोध कर रहे हैं और इस शोध में यह जानकारी निकलकर सामने आई. यहां मौजूद शिवलिंग को लिंगेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है, यहां के ग्रामीण उनके पूर्वज करीब 150 सालो से इस शिव मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं.
रामपाल गांव के सरपंच का कहना है कि उनके पूर्वजों के समय से उनका परिवार और गांव के पूरे परिवार लिंगेश्वर स्वामी की उपासना करते आ रहे हैं. यहां खुदाई के दौरान मिले बड़े-बड़े ईट से यह प्रमाणित होता है कि भगवान श्री राम द्वारा भोलेनाथ की उपासना के बाद इस शिवलिंग को बस्तर के तत्कालीन राजा महाराजाओं ने संजोकर रखा था और यहां मंदिर का निर्माण कराया.
यह पूरा इलाका जंगल क्षेत्र था धीरे-धीरे ग्रामीण परिवेश के बाद खुदाई की गई तो शिवलिंग के दर्शन हुए तब से यहां के ग्रामीणों से चंदा इकट्ठा कर शिवरात्रि के दौरान मेला का आयोजन कर बाबा लिंगेश्वर की पूजा अर्चना करते हैं.
राज्य सरकार द्वारा इसे रामवनगमन पथ में भी शामिल किए जाने से लगातार इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, साथ ही पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा रहा है.
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