(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bastar News: इस शिवलिंग पर प्रकृति कराती है सालभर जलाभिषेक, वैज्ञानिक भी नहीं पता लगा पाए कहां से आता है जल
Bastar News: यहां साल के 365 दिन प्राकृतिक रूप से केवल शिवलिंग पर ही पानी रिसता रहता है. सालभर प्रकृति शिव का जलाभिषेक करती रहती है. यह पानी कहां से आता है इसकी जानकारी अभी तक किसी को नहीं है.
Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके को शिवधाम कहा जाता है. यहां के रहवासी सदियों से भगवान शिव की आराधना करते आ रहे हैं. बस्तर के ग्रामीण अंचल के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी बड़ी संख्या में भगवान शिव के मंदिर देखे जा सकते हैं. इस शिवधाम में ऐसे भी धाम हैं जो काफी प्रचलित हैं और इन्हीं में से एक है तुलार गुफा शिवधाम. यहां भगवान शिव को तुलार बाबा के नाम से भी जाना जाता है.
किसने स्थापित किया है शिवलिंग
कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण के जैसा कोई शिवभक्त नहीं हुआ, लेकिन रावण से शक्तिशाली और भगवान शिव के मानस पुत्र की पदवी पाने वाले परम विष्णु भक्त प्रहलाद के नाती और धरती के महान दानी राजाबलि के ज्येष्ठ पुत्र दैत्यराज बाणासुर ने यहां अद्भुत शिवलिंग स्थापित किया है. अबूझमाड़ के घनघोर जंगल के बीच बारसूर से लगभग 20 किलोमीटर दूर यह तुलार गुफा स्थापित है. बताया जाता है कि यह शिवलिंग 5 हजार साल पुराना है. इस परम तेजस्वी और रहस्यमई शिवलिंग के बारे में शिव महापुराण और महाभारत में पूरी जानकारी मिलती है.
साल के 365 दिन शिवलिंग में रिसता है पानी
छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग रहस्यों से भरा है. संभाग के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर ब्लॉक के घोर जंगलो के बीच एक रहस्यमई गुफा है, जिसे तुलार गुफा कहा जाता है. इसके अंदर हजारों साल पुराना शिवलिंग विराजित है. इस गुफा की सबसे खास बात यह है कि यहां साल के 365 दिन प्राकृतिक रूप से केवल शिवलिंग पर ही पानी रिसता रहता है. यह कह सकते हैं कि सालभर प्रकृति शिव का जलाभिषेक करती रहती है. जलाभिषेक के लिए यह पानी कहां से आता है इसकी जानकारी अभी तक किसी को नहीं है.
वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए पता
जल का रिसाव अलग-अलग मौसम में अलग-अलग होता रहता है. बरसात के मौसम में जल की धारा तेज हो जाती है. ठंड के मौसम में भी शिवलिंग पर पानी रिसता रहता है. यहां तक कि गर्मी के मौसम में भी बूंद बूंद पानी शिवलिंग पर रिसता है. गौरतलब है कि अब तक वैज्ञानिकों ने भी यह पता नहीं लगा पाया है कि आखिर यह पानी आता कहां से है. बरसात के मौसम में हालांकि नदी नाले उफान में रहते हैं और ऐसे में गुफा के भीतर तक यह पानी पहुंचना संभव है, लेकिन गर्मी के मौसम में भी बूंद बूंद पानी का शिवलिंग पर रिसना वैज्ञानिकों के लिए भी शोध का विषय बना हुआ है.
बाणासुर ने वर्षो की थी तपस्या
यहां के स्थानीय ग्रामीणों ने इस रहस्यमयी गुफा के बारे में जानकरी देते हुए बताया कि इस गुफा में बाणासुर नामक राक्षस ने खुद को महान बनाने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की थी और इसी तपस्या के लिए बाणासुर ने इस गुफा की रचना की थी. यहां के ग्रामीण बताते हैं कि आज भी महाबली बाणासुर हर रोज ब्रह्म मुहूर्त में शिव की आराधना करने आते हैं, इस वजह से यहां 365 दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक होता है.
हजारों साल पुराना है शिवलिंग
इतिहासकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि हजारों साल पुराने शिवलिंग में महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा के दौरान हजारों की संख्या में आसपास के ग्रामीणों की भीड़ भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचती है. इस गुफा में पूजा करने वाले पंडित और मौजूद लोगों के मुताबिक चंद्रमा की स्थिति के अनुसार पानी की मात्रा कभी कम कभी ज्यादा होती रहती है. शिवलिंग पर रिसकर गिरने वाले पानी को ग्रामीण और श्रद्धालु गंगाजल जैसा पवित्र मानते हैं और तुलार गुफा में भगवान शिव के दर्शन के बाद इसे अपने साथ ले जाते हैं.
ऐसे पहुंचा जा सकता है गुफा तक
यह गुफा जगदलपुर शहर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर तक जाने के लिए जिला दंतेवाड़ा के बारसूर ब्लॉक के अंदर जाना होता है. वहां से एक पगडंडी नुमा रास्ता जाता है और वहां से पैदल या दो पहिया वाहन से जाया जा सकता है. इस रास्ते में करीब दो से तीन नाले पड़ते हैं जिस पर अगर पानी ज्यादा हो तो मोटरसाइल पार कराने में खासी दिक्कत होती है. कई उंचे रास्ते भी हैं जहां वाहन का चढ़ पाना कठिन होता है. तुलार गुफा तक पहुंचने पर काफी थकान हो जाती है, लेकिन लोगो का कहना है कि जैसे ही भगवान शिव के दर्शन होते हैं पूरी थकान दूर हो जाती है.
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