Chhattisgarh State Bird Pahadi Maina: छत्तीसगढ़ के जगदलपुर (Jagdalpur) शहर में एक तरफ जहां पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य वन विभाग शहर के जैव विविधता वाले लामनी पार्क ( Lamani Park) में ढाई करोड़ की लागत से पक्षी विहार एवियरी बनाया है. यहां 300 से अधिक प्रजाति के पक्षियों को रखे जाने का दावा विभाग के अधिकारियों की ओर से किया जा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ इंसानों की बोली की हूबहू नकल करने वाली राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है.
विदेशी पक्षियों पर हो रहा करोड़ों खर्च
आलम यह है कि पिछले 3 दशकों से मैना के प्रजनन के लिए लाखों रुपए खर्च करने के दावे के बाद भी अब तक पहाड़ी मैना ने एक भी बच्चा नहीं दिया है. लिहाजा, इस राजकीय पक्षी की संख्या बस्तर में लगातार कम होती जा रही है. वहीं, दूसरी तरफ अब विदेशी पक्षियों से वन विभाग पर्यटकों का मन बहलाने के लिए करोड़ों रुपए की लागत से इस एवियरी का निर्माण करवा रही है. दरअसल, पहाड़ी मैना को राजकीय पक्षी की उपाधि प्राप्त है, लेकिन इसे बचाने के लिए बस्तर संभाग में एक भी पक्षी विशेषज्ञ नहीं होने की वजह से इसके प्रजनन और वातावरण के साथ ही रहवास को लेकर भी अब तक कोई शोध सफल नहीं हो पाया है. लिहाजा अब यह राजकीय पक्षी बस्तर में कुछ ही जगहों पर काफी कम संख्या में दिखाई देते हैं.
लगातार घट रही पहाड़ी मैना की संख्या
अपने बस्तर प्रवास के दौरान 4 दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने लामनी पार्क में ढाई करोड़ रुपए की लागत से बनाए जा रहे पक्षी विहार का लोकार्पण किया था. इस पक्षी विहार में देश-विदेश के लगभग 200 प्रजाति के सैकड़ों पक्षियों को रखने की व्यवस्था बनाई गई है, लेकिन लोकार्पण से ठीक 1 दिन पहले यहां कोंडागांव से लाई गई ईमू (शुतुरमुर्ग ) की तबीयत बिगड़ने लगी. खास बात यह है कि पूरे बस्तर संभाग में एक भी पक्षी विशेषज्ञ नहीं है. ऐसे में यहां पक्षियों के बीमार होने पर उन्हें क्या देना चाहिए, उनकी देखभाल कैसे करनी चाहिए. इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है.
लाखों खर्च के बाद भी मैना ने नहीं दिया बच्चा
वहीं, दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना की संख्या भी बस्तर से लगातार घटती जा रही है. शुरुआत में वन विद्यालय में बनाये गए पिंजरे में पहाड़ी मैना को रखकर इनकी संख्या बढ़ाने के लिए प्रजनन और अन्य चीजों में शोध करने के नाम पर लाखों रुपये खर्च करने का दावा किया गया. देश के कोने-कोने से पक्षी विशेषज्ञ इस पर शोध करने यहां पहुंचे और कई तरह के शोध भी किए गए, लेकिन पिछले 3 दशकों से बस्तर के वन विद्यायल के एक पिंजरे में मौजूद पहाड़ी मैना ने एक भी बच्चा नहीं दिया है. आलम यह है कि अब यह पहाड़ी मैना बस्तर में कुछ ही जगह पर सिमट कर रह गई है.
पहाड़ी मैना बचाने के साने जतम विफल
पहाड़ी मैना अब पर्यटकों को भी आसानी से नजर नहीं आती है. हालांकि, कांगेर वैली नेशनल पार्क में संचालक ने कई मैना मित्र बनाएं हैं. इनमें मैना मित्रों को पहाड़ी मैना पर नजर रखने और उनके ठिकाने, रहवास और खाने पीने से लेकर सभी पर नजर रखने के लिए तैनात किया गया है. लेकिन, इसका भी कोई अब तक खास नतीजा निकल कर सामने नहीं आया है. यही वजह है कि राजकीय पक्षी मैना की संख्या न के बराबर नजर आ रही है. वहीं, वन विभाग लामिनी पार्क में राजकीय पक्षी को छोड़ देश-विदेश से लाए गए पक्षियों को एवियरी में रखकर पर्यटकों का मन बहलाना पड़ रहा है.
पक्षियों की सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय
वहीं, बस्तर के जानकारों का कहना है कि पहाड़ी मैना के प्रजनन के नाम पर वन विभाग पिछले 3 दशक से लाखों रुपए खर्च करते आ रहे हैं. इसी कड़ी में यहां वन विद्यालय में पहाड़ी मैना का पिंजरा भी बनाया गया है, जो अब कब्रगाह बन गया है. ऐसे में अब इतनी बड़ी तादाद में पक्षी विहार एवियरी में सैकड़ों पक्षियों को रखा जाएगा, लेकिन पक्षी विशेषज्ञों के अभाव में इन पक्षियों का ख्याल और देखभाल कैसे किया जाएगा. इसको लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं. फिलहाल, वन विभाग के अधिकारी इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं.
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