Bastar News: छत्तीसगढ़ में साल वनों का द्वीप कहे जाने वाला बस्तर (Bastar) अपने प्राकृतिक संसाधनों और यहां मिलने वाली अनेक प्रकार के वनोपज के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. बस्तर के लगभग 50 फीसदी आदिवासियों का जीवन यहां पाए जाने वाले वनोपज पर ही आश्रित है. इन वनोपज से ही उनकी आय होती है और उनके परिवार का भरण पोषण होता है. बस्तर में सबसे महंगी वनोपज चिरौंजी है. देश में बनने वाली 70 फीसदी मिठाइयों में चिरौंजी का उपयोग किया जाता है.


दरअसल, चिरौंजी को सूखे मेवे की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसका सेवन कई बीमारियों से भी बचाता है. इसका फल भी काफी मीठा और सेहत के लिए लाभदायक होता है. चिरौंजी के बीज में करीब 50 फीसदी से अधिक तेल होता है. चिरौंजी के तेल का उपयोग कॉस्मेटिक और चिकित्सीय उद्देश्य से किया जाता है. बस्तर संभाग के जिलों में चिरौंजी के पेड़ हजारों की संख्या में मौजूद हैं. खासकर सुकमा जिले के जंगलों में इसके सबसे ज्यादा पेड़ मौजूद हैं. इन पेड़ों से ग्रामीण फल तोड़ते हैं. 


चिरौंजी के उत्पादन में आई कमी
ग्रामीण इसके फल को फोड़कर इसके अंदर के बीज से चिरौंजी निकालते हैं. हालांकि इस बीज से चिरौंजी निकालने में काफी मेहनत लगती है, लेकिन चिरौंजी काफी महंगी वनोपज है और इसकी कीमत भी अच्छी खासी होती है. बस्तर के ग्रामीण अधिकांश जगहों पर जंगलों में चिरौंजी के पौधे लगाते हैं. हालांकि वन विभाग की उदासीनता के चलते पिछले कुछ सालों से चिरौंजी का प्लांटेशन ज्यादा नहीं किया जा रहा है. इसके कारण चिरौंजी के उत्पादन में भी कमी आई है. 


चिरौंजी देश में सबसे महंगी वनोपज
वहीं वर्तमान में चिरौंजी के जितने पेड़ बस्तर में हैं, वो सभी ग्रामीणों के आय का स्रोत बने हुए हैं. लंबे समय से ग्रामीण इसके पेड़ों को सूखने से बचाने के लिए खुद प्रयास कर रहे हैं. वो वन विभाग से भी नए प्लांटेशन की मांग कर रहे हैं. बावजूद इसके वन विभाग इसके उत्पादन में उदासीनता बरत रहा है और चिरौंजी के केवल चार पौधों का वृक्षारोपण हो रहा है. बस्तर में वन संपदाओं के जानकार हेमंत कश्यप ने बताया कि चिरौंजी देश में सबसे महंगी वनोपज में शुमार है.


चिरौंजी 1400 से 1500 रुपये किलो
उन्होंने बताया कि दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों में चिरौंजी 1400 से 1500 रुपये किलो में बिकती है. वहीं बस्तर में इसकी कीमत एक हजार से लेकर 1200 रुपये होती है. चिरौंजी का सेवन सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है. मिठाइयों में उपयोग के साथ ही चिरौंजी का तेल औषधीय गुणों से भरपूर होता है. साथ ही इसका फल भी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. यही वजह है कि सुकमा में अधिकांश ग्रामीण चिरौंजी का संग्रहण कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. 


सुकमा में ही चिरौंजी का प्रसंस्करण केंद्र खोला गया है. हेमंत कश्यप ने बताया कि इसके वृक्ष संभाग के सभी जिलों में मौजूद हैं, लेकिन वन विभाग इसके प्रसंस्करण की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा है. हेमंत कश्यप ने बताया कि अगर मौजूदा राज्य सरकार इस वनोपज को लेकर गंभीर होती है और ज्यादा से ज्यादा पौधों का वृक्षारोपण किया जाता है, तो बस्तर में ग्रामीणों के साथ-साथ यहां के व्यापारियों के लिए भी चिरौंजी आय का मुख्य स्त्रोत हो सकता है. यही नहीं इससे बस्तर की अर्थव्यवस्था भी बढ़ सकती सकती है.


ये भी पढ़ें-Ramlala Pran Pratishtha: 'जो लोग अयोध्या नहीं जा सकते वे अपने घरों को...', सीएम विष्णु देव साय की प्रदेशवासियों से अपील