Bastar Dussehra 2022: दशहरा पर देवी देवताओं को बुलाने के लिए तहसीलदार को आवेदन! क्या है ये अनोखी परंपरा
Chhattisgarh News: दशहरा पर्व पर बस्तर संभाग के देवी देवताओं को इस पर्व में शामिल होने के लिए निमंत्रण देने की अनोखी परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है.
Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में मनाई जाने वाली विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में बस्तर संभाग के देवी देवताओं को इस दशहरा पर्व में शामिल होने के लिए आमंत्रण देने की अनोखी परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है. इस तरह की परंपरा पूरे देश में केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है, बकायदा सरकारी तहसील ऑफिस से बस्तर संभाग के लगभग 350 देवी- देवताओं के मंदिरों में आमंत्रण दिया जाता है और देवी देवताओं को बुलाने के लिए सरकारी प्रोटोकॉल का उपयोग सख्ती से किया जाता है,
वहीं किसी खास गांव के देवी देवताओं और आंगा देव को बुलाने के लिए उस गांव के श्रद्धालु तहसीलदार को लिखित आवेदन देते हैं. निमंत्रण पत्र और सूचना संबंधित गांव के थाने को दी जाती है, और निमंत्रण आवेदन की प्रतिलिपि के साथ गांव के पूरे श्रद्धालु इस गांव के थाने पहुंचते हैं और यहां से उन्हें गांव के प्रमुख देवी देवताओं के मंदिर और लकड़ी से बनी आंगा देव के पास ले जाते हैं, यहां गांव के देवी देवताओं के छत्र ,डोलीऔर लकड़ी से बनी आंगा देव अपने आराध्य देवी की अनुमति लेकर आवेदकों के साथ उनके गांव की ओर रवाना होते हैं, जगदलपुर शहर लाते वक्त बकायदा देवी देवताओ के डोली और छत्र के आगे पुलिस की पायलट वाहन चलती है जो एक तरह का अतिथियों का सम्मान होता है.
सालों से चली आ रही है ये परंपरा
बस्तर के जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि बस्तर दशहरा पर्व के दौरान बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी बस्तर संभाग के सभी जिलों के देवी देवताओं को इस पर्व में शामिल होने के लिए आमंत्रण देती है और बकायदा इस दौरान वर्तमान में सरकारी प्रोटोकॉल के तहत ही इन देवी देवताओं को निमंत्रण दिए जाते हैं.
संभाग के अलग-अलग गांव से पहुंचने वाले देवी-देवताओं के छत्र और डोली को पुलिस की सुरक्षा में और मेजबान की तौर पर पुलिस की पायलट वाहन के साथ जगदलपुर शहर के दंतेश्वरी मंदिर तक लाया जाता है, रियासत काल से यह परंपरा चली आ रही है, जो आज भी बखूबी निभाई जाती है.
हेमंत कश्यप ने बताया कि इन देवी देवताओं और लकड़ी से बनी आंगा देव के पर्व में शामिल होने के बाद बकायदा इन देवी देवताओं को विदाई भी दी जाती है, इस दौरान बकरा, मुर्गे और बतख की बलि देने की परंपरा है, इस रस्म को दशहरा के समाप्त होने के बाद निभाया जाता है.
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