Bastar Dussehra 2022: विश्व में अनोखी और आकर्षक परंपराओं के लिए मशहूर बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत आज रात काछन देवी की अनुमति के बाद हो गयी है. बस्तर दशहरा पर्व शुरू करने के लिए अनुमति लेने की परंपरा अनूठी है. काछनगादी रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या बेल के कांटों के झूले पर लिटाया जाता है. बस्तर में करीब 600 वर्षों से चली आ रही परंपरा की मान्यता के अनुसार कांटों के झूले पर लेटी कन्या में साक्षात देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है.


6 साल की पीहू की अनुमति से शुरू हुआ दशहरा पर्व


बस्तर का महापर्व दशहरा बाधा रहित संपन्न होने की मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछनदेवी की पूजा की जाती है. आज रात ठीक नवरात्रि के एक दिन पहले काछनगुड़ी के देवी मंदिर परिसर में रस्म को निभाया गया. बस्तर की अनुसूचित जाति के एक विशेष परिवार की 6 वर्षीय कुंवारी कन्या पीहू ने राजपरिवार को काछनदेवी के रूप में दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति दी. पिछले 6 वर्षों से काछनगादी रस्म को निभाने पीहू की चचेरी बहन अनुराधा निभा रही थी.


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नवरात्रि के एक दिन पहले निभाई जाती है अद्भुत रस्म


अब उसकी जगह 6 साल की पीहू काछनदेवी के रूप में कांटों के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी परंपरा को निभाने की अनुमति दी. मान्यता है कि महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिए काछनदेवी की अनुमति जरूरी है. इसके लिए पनिका जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटों से बने झूले पर लिटाया जाता है. इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है.


हर साल नवरात्रि के एक दिन पहले पितृमोक्ष अमावस्या को रस्म निभाकर राज परिवार अनुमति प्राप्त करता है. इस दौरान बस्तर का राज परिवार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ सैकड़ों की संख्या में लोग अनूठी परंपरा को देखने काछनगुड़ी पहुंचते हैं. 75 दिनों तक मनाए जाने वाले दशहरा पर्व में 12 से ज्यादा निभाई जानेवाली रस्में अद्भुत और अनोखी होती हैं.


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