बस्तर में नहीं होता रावण दहन, यहां दशहरा पर क्यों निभाई जाती है विशालकाय रथ चुराने की परंपरा?
Chhattisgarh News: बस्तर दशहरा की प्रमुख रस्म 'भीतर रैनी' विजयादशमी पर संपन्न हो गयी. रस्म को निभाने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा. बस्तर की वर्षों पुरानी परंपरा का पालन आज भी किया जाता है.
Bastar Dussehra 2024: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा अद्भुत रस्म के लिए जाना जाता है. विजयादशमी (Vijayadashami 2024) पर जगदलपुर में दशहरा की प्रमुख रस्म 'भीतर रैनी' धूमधाम से अदा की गयी. रविवार और सोमवार की आधी रात रस्म को निभाने जनसैलाब उमड़ पड़ा. कहा जाता है कि आदिकाल में दंडकारण्य क्षेत्र बस्तर लंकापति रावण की बहन शूर्पणखा का नगर हुआ करता था. यही वजह है कि शांति, अहिंसा और सद्भाव के प्रतीक स्वरूप बस्तर दशहरा पर्व में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है.
बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के छत्र, खड़ा और तलवार को 8 चक्कों वाले विशालकाय रथ में रखकर शहर भ्रमण करवाया जाता है. विजयादशमी पर रथ चोरी की परंपरा निभाई जाती है. 600 वर्षों से चली आ रही अनोखी परंपरा को आज भी आदिवासी बखूबी निभाते हैं. जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि बस्तर में दशहरा पर्व के दौरान देवी की उपासना होती है. दशहरा के पूरे रस्मों में मां दंतेश्वरी देवी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.
बस्तर दशहरा की अनूठी रस्म
बंगाल, मैसूर की तरह बस्तर में भी बस्तरवासी देवी के उपासक हैं. विजयादशमी के दिन रथ चलाने की परंपरा 600 सालों से चली आ रही है. शूर्पणखा की नगरी होने के चलते बस्तर दशहरा में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है. इस दिन बस्तर दशहरा की सबसे प्रमुख रस्म 'भीतर रैनी' को निभाया जाता है. जानकार हेमंत कश्यप ने बताया कि विजयादशमी पर दशहरा पर्व पर में 8 चक्कों काे रथ को नगर भ्रमण करवाया जाता है.
आधी रात रथ को चुराकर माड़िया जाति के लोग मंदिर से करीब 4 किमी दूर कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाते हैं. हेमंत कश्यप ने बताया कि राजशाही युग में राजा से असंतुष्ट माड़िया जाति के लोगो ने रथ को चुराकर एक जगह छिपा दिया था. राजा विजयादशमी के दूसरे दिन कुमड़ाकोट पहुंचे. ग्रामीण नये चावल की बनी खीर खाकर रथ को शाही अंदाज में वापस जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाते हैं. जिसे 'बाहर रैनी' का रस्म कहा जाता है.
विजयादशमी पर निभाई गयी
आज भी रस्म को उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. हजारों की संख्या में आदिवासी कुमड़ाकोट पहुंचते हैं. रथ को खींचकर लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए दंतेश्वरी मंदिर के सामने रथ को लाते हैं. रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म को देखने हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है. विजयादशमी के दिन रथ चुराने की परंपरा को निभाया गया. सोमवार को बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव नाराज ग्रामीणों को मनाने कुम्हड़ाकोट पहुंचेंगे. नवा खानी की रस्म निभाने के बाद विशालकाय रथ दंतेश्वरी मंदिर परिसर में वापस आयेगी.
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