Bastar Dussehra News: अपनी अद्भुत रस्मों और अनोखी परंपराओं के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में एक ऐसी भी रस्म निभाई जाती है, जो पूरी तरह से देवी देवताओं के लिए सरकारी प्रोटोकॉल की तरह होती है. दरअसल शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मां मावली देवी और दंतेश्वरी की डोली बस्तर राजपरिवार के न्योता पर जगदलपुर दशहरा पर्व में शामिल होने के लिए दंतेवाड़ा से निकलती है. इस दौरान मां दंतेश्वरी देवी मंदिर में स्थापित एक शिलालेख जो दंतेवाड़ा क्षेत्र के सभी देवी देवताओं के मुखिया बाबा बोधराज के रूप में जाने जाते है, और ठीक उसके बगल में घाट भैरव बाबा की प्रतिमा है जिन्हें नगर कोतवाल कहा जाता है, उन्हें दायित्य सौंपती हैं.
मान्यता के अनुसार मां मावली माता जगदलपुर शहर जाते वक्त दंतेवाड़ा शहर को बोधराज बाबा और घाट भैरव को शहर का दायित्व सौंपकर बस्तर दशहरे में शामिल होने प्रस्थान करती हैं, जैसे सरकारी प्रोटोकॉल में जिले के बड़े अधिकारी शहर से बाहर जाने से पहले अपने अधीन अधिकारी को उस जिले का चार्ज सौंपते हैं.
दंतेवाड़ा दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी परमेश्वर ने बताया कि दशहरा पर्व में शामिल होने से पहले मां मावली माता के डोली को शहर वासियों द्वारा दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर 2 किलोमीटर तक फूलों से रास्ते को सजाया जाता है. पुजारी ने बताया कि बस्तर दशहरा पर्व में शामिल होने मां मावली माता की डोली को जगदलपुर पहुंचाया जाता है और उनके साथ करीब 100 लोगों की टोली साथ में चलती है, जिसमें मंदिर के पुजारियों के साथ ही मंदिर कमेटी के सदस्य भी शामिल रहते हैं. जगदलपुर पहुंचने के बाद यहां बस्तर राज परिवार माता की डोली का भव्य रुप से स्वागत करता है और जब तक दशहरा पर्व की प्रमुख रस्में होती है उन सब में माता की डोली शामिल होती है.
दशहरा पर्व खत्म होने के दौरान दंतेवाड़ा से पहुंची डोली को वापस भेजने के लिए डोली विदाई की रस्म अदायगी की जाती है. जब दंतेश्वरी और मावली मां की डोली वापस दंतेवाड़ा पहुंचती है तो फिर मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाबा बोधराज और घाट भैरव के लिए भेंट स्वरूप गुप्त उपहार जो कि मुख्य पुजारी परमेश्वर द्वारा बस्तर दशहरा से लाया जाता है और दोनों देवताओं को चढ़ाया जाता है. पुजारी ने बताया कि उपहार गुप्त होता है और इसे किसी को भी नहीं दिखाया जाता है,और न ही बताया जाता है.
बकायदा इस उपहार को देने के दौरान पूजा पाठ भी होती है, जिसके बाद बाबा बोधराज और घाट भैरव से दंतेवाड़ा शहर का दायित्व मां दंतेश्वरी उनसे वापस लेकर उन्हें इस दायित्व से मुक्त करती है. उसके बाद ही दंतेश्वरी मां की डोली दंतेवाड़ा मंदिर में प्रवेश करती है और 75 दिनों से तक चलने वाली विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व माई जी की डोली दंतेवाड़ा मंदिर में प्रवेश होने के बाद ही खत्म होती है.
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