Bastar Dussehra 2022: अपनी अनूठी परंपरा और अनोखी रस्मों को समेटे हुए विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण रस्म अदा की गई, जिसे कुटुंब जात्रा रस्म कहा जाता है. इस रस्म के तहत इस दशहरा पर्व में संभाग भर से हजारों की संख्या में शामिल हुए देवी-देवताओं के छत्र, डोली और सिंबल को बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने पूजा अर्चना कर ससम्मान विदा किया. इस बार बस्तर दशहरा में 200 से अधिक नये देवी देवता भी शामिल हुए. बस्तर राजकुमार और दशहरा समिति के अध्यक्ष ने बताया कि इन नये देवी-देवताओं में इंद्रावती नदी के उस पार अबूझमाड़ के देवी-देवता भी इस बार पर्व में शामिल हुए.
नक्सलवाद की वजह से इन इलाकों के देवी-देवता विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन इस बार इस इलाके से भी बड़ी संख्या में देवी-देवता बकायदा पर्व में शामिल हुए. साथ ही शनिवार को कुटुंब जात्रा रस्म के दौरान उन्हें वापस ससम्मान विदा किया गया. देवी-देवताओं के विदाई समारोह में बलि प्रथा की भी परंपरा है. बकरा, मुर्गा, कबूतर के साथ बत्तख की भी बलि देकर इस रस्म को अदा किया गया.
बस्तर में निभाई जाती है बलि प्रथा
बस्तर में 75 दिनों तक मनाये जाने वाले दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण रस्म कुंटुब जात्र रस्म अदा की गई. इस रस्म में बस्तर राजपरिवार और दशहरा समिति के अगुवाई में बस्तर संभाग के ग्रामीण अंचलों से पर्व में शामिल होने पंहुचे सभी ग्राम के देवी-देवताओं को ससम्मान विदाई दी गई. शहर के गंगामुण्डा वार्ड में मौजूद देवगुड़ी में श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी मन्नतें पूरी होने पर बकरा, कबूतर, मुर्गा, बत्तख की बलि चढाई. साथ ही दशहरा समिति की ओर से सभी देवताओं के पुजारियों को ससम्मान विदा किया गया.
रुसुम देकर देवी देवताओं को किया विदा
पंरपरानुसार दशहरा पर्व में शामिल होने संभाग के सभी ग्राम देवी-देवताओं को न्योता दिया जाता है, जिसके बाद पर्व की समाप्ति पर कुंटुब जात्रा की रस्म अदायगी की जाती है. देवी-देवताओं के छत्र और डोली लेकर पंहुचे पुजारियों को बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव और दशहरा समिति द्वारा रुसुम भी दी जाती है, जिसमें कपड़ा, पैसे और मिठाईयां होती है. बस्तर में रियासतकाल से चली आ रही यह पंरपरा आज भी बखूबी निभाई जाती है.
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