Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले दशहरा पर्व में 12 से अधिक ऐसी रस्में निभाई जाती हैं जो अपने आप में अद्भुत और अनोखी होती हैं. यह परंपरा 600 सालों से लगातार चली आ रही है. इन रस्मों में से एक सबसे महत्वपूर्ण रस्म होता है काछनगादी रस्म, दरअसल, इस रस्म में राज्य के महापर्व को मनाने की अनुमति ली जाती है और इसकी अनुमति इस साल 6 साल की कन्या पीहू देगी. 


राज्य परिवार लेता है अनुमति
नवरात्रि के ठीक एक दिन पहले निभाए जाने वाले इस रस्म में एक 6 साल की कन्या को काछनगुड़ी के देवी मंदिर परिसर में बने बेल के कांटों के झूले में लेटाया जाता है. जिसके बाद कन्या इस दशहरा पर्व के अन्य रस्मों को मनाने की अनुमति देती है. बकायदा बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव, राज परिवार के सदस्य और तमाम बस्तर वासी इस रस्म को निभाने के दौरान मौजूद रहते हैं. राज परिवार देवी से पर्व को मनाने की अनुमति लेता है.




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600 सालो से निभाई जा रही अनोखी परंपरा
दरअसल, बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछनगादी देवी की पूजा होती है. बस्तर दशहरा के जानकार रुद्र नारायण पानी ग्राही बताते हैं कि बस्तर दशहरा जातीय समभाव का प्रमुख त्यौहार है. इसमें रियासत काल से सभी जाति के लोगों को जोड़कर इनके सहभागिता निश्चित की गई थी. इसलिए यह जन जन का पर्व कहलाता रहा है. 


राज्य के इस महापर्व की शुरुआत जाति व्यवस्था के निचले पायदान पर खड़ी अनुसूचित जाति की बालिका की अनुमति से हो ऐसी राष्ट्रीय एकता की भावना और नारी सम्मान का बेहतरीन उदाहरण केवल बस्तर दशहरा में देखने को मिलता है. 600 सालों से चली आ रही परंपरा के तहत एक विशेष पनिका जनजाति की ही कुंवारी कन्या को बेल के कांटों से बने झूले में लेटाया जाता है इस रस्म को निभाने से पहले करीब 9 दिनों तक 6 साल की कन्या उपवास रहती है और काछन देवी के मंदिर में कन्या को रखा जाता है.




 
बच्ची पर सवार होती हैं देवी
इस साल पहली कक्षा में पढ़ने वाली पीहु श्रीवास्तव नवरात्रि के एक दिन पहले काछनगादी रस्म में देवी का अवतार लेकर दशहरा पर्व को मनाने की अनुमति देगी, ग्रामीणों का कहना है कि इस दौरान खुद बच्ची पर देवी सवार होती है बकायदा उसे तैयार किया जाता है और जिसके बाद राज परिवार और बस्तर वासियों की मौजूदगी में बेल के कांटों से बने झूले में लेटाया जाता है. हर साल पितृ मोक्ष अमावस्या को इस महत्वपूर्ण रस्म के अदायगी से बस्तर दशहरा की अन्य रस्मो की शुरुआत होती है. कन्या पीहू के नानी भानू ने बताया कि इस रस्म को निभाने के दौरान कन्या में साक्षात देवी आकर दशहरा पर्व को आरंभ कराने की अनुमति देती है. इधर इस रस्म को निभाने के लिए 6 साल की कन्या पीहू भी काफी खुश है.


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