बस्तर में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का दावा सिर्फ कागजों पर है. धरातल पर लोगों को फायदा मिलता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. किडनी रोग से संबंधित मरीजों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं वेंटिलेटर पर हैं. जिले के दोनों मुख्य सरकारी अस्पतालों में किडनी मरीजों को बाहर मोटी रकम देकर डायलिसिस कराना पड़ रहा है. डिमरापाल अस्पताल और महारानी अस्पताल में 10 से अधिक डायलिसिस मशीन हैं. लेकिन टेक्नीशियनों, नेफ्रोलॉजिस्ट और संसाधन के अभाव में मरीजों को फायदा नहीं पहुंच रहा है. 


डायलिसिस वार्ड का है बुरा हाल


डिमरापाल अस्पताल अधीक्षक टिकू सिन्हा बताते हैं कि डायलिसिस की सुविधा के लिए पांच मशीनें लगाई गई हैं. वर्तमान में एक मशीन कोविड मरीजों के लिए रखा गया है. लेकिन वार्ड काफी छोटा है और सेंट्रल ऑक्सीजन सिस्टम भी नहीं है. डायलिसिस के मरीजों में सांस फूलने जैसी समस्या रहती है, इसलिए ऑक्सीजन की जरूरत हमेशा रहती है. अस्पताल में चार टेक्नीशियन हैं और 24 घंटे सुविधा उपलब्ध रहने की बात कही जाती है, लेकिन इसके बाद भी रोजाना 2 से  3 लोग ही डायलिसिस के लिए पहुंच रहे हैं. सफाई को लेकर भी लोग काफी शिकायत करते हैं.


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निजी अस्पताल जाने को मजबूर


डायलिसिस के मरीज बताते हैं कि सरकारी अस्पताल में मशीनें तो हैं लेकिन सुविधा के अभाव में काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ता है. डायलिसिस के लिये अस्पताल में सबसे जरूरी और एक्सपर्ट नेफ्रोलॉजिस्ट भी नहीं हैं. ऐसे में डायलिसिस के दौरान तबियत बिगड़ने पर कोई देखने वाला नहीं मिलेगा. परिजनों का कहना है कि सरकारी अस्पताल में ले जाना मरीज की जान गवांने के बराबर है. मरीज के परिजन कर्ज लेकर भी निजी अस्पताल में डायलिसिस करवाने को मजबूर हैं. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ो के मुताबिक बीते एक माह में  सरकारी अस्पतालों में 10 मशीनें, 7 टेक्नीशियन होने के बावजूद केवल 160 मरीजों का ही डायलिसिस किया गया है. इसके विपरीत निजी अस्पताल में 7 मशीनें, 4 टेक्निशयिन की मदद से 750 डायलिसिस हुआ.


निजी अस्पताल में डायलिसिस के लिए मरीज को 2500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं और सरकारी अस्पताल में मुफ्त सुविधा है. लेकिन स्टाफ की कमी, अव्यवस्था और नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं होने से मजबूरन मरीज निजी अस्पताल में डायलिसिस करवाने को मजबूर है. बस्तर कलेक्टर रजत बंसल भी दोनों अस्पतालों में मशीन के हिसाब से टेक्निशियन और नेफ्रोलॉजिस्ट की कमी मानते हैं, लेकिन जल्द ही भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आश्वासन भी देते हैं.


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