Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले आदिवासियों की जीवन शैली और परंपरा अनेक कलाओं को समेटे हुए हैं. इन कलाओं में से एक है तुंबा कला. आदिवासियों ने लौकी की सब्जी के इतर से एक अनोखा उपयोग भी  इजाद किया है. जिसे स्थानीय भाषा में तुंबा कहते हैं. बस्तर की आदिवासी महिलाएं इस तुंबा कला को सहेजने में लगी हैं. दरअसल प्राकृतिक जीवन जीने वाले बस्तर के आदिवासी तुंबा लौकी को सुखाकर बनाते हैं.


सूखने के बाद इसके अंदर के हिस्से को काट कर निकाल दिया जाता है. इस प्राकृतिक बर्तन को ही आदिवासी तुंबा कहते हैं. तुंबा में रखा पानी काफी देर तक ठंडा रहता है. आदिवासी लंबी दूरी की यात्रा के दौरान इसमें पीने के पानी के साथ उनके द्वारा तैयार की जाने वाली सॉफ्ट ड्रिंक भी रखा करते हैं.


नीति आयोग ने भी की है तारीफ


इसे देसी थर्मस भी कहा जा सकता है. वहीं आधुनिकता के दौर में धीरे-धीरे तुंबा कला विलुप्त होने के चलते एक बार फिर से इस कला को जीवित करने के लिए बस्तर जिला प्रशासन ने स्थानीय महिलाओं को इसे बनाने के लिए बढ़ावा दिया है. अब एक बार फिर से आदिवासी महिला इस तुंबा कला को प्रोत्साहित करते हुए बड़ी संख्या में तुंबा का निर्माण कर रहे हैं. खुद नीति आयोग ने भी आदिवासी महिलाओं द्वारा तैयार किये जा रहे इस तुंबा कला की जमकर तारीफ की है. तुम्बा बनाकर स्थानीय आदिवासी महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है.


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तुंबा से तैयार हो रही कई कलाकृतियां


बस्तर के आदिवासी कलाकार जगतराम ने बताया कि तुंबा कला को नए रूप में दुनिया के सामने लाने का प्रयास जिला प्रशासन के माध्यम से किया जा रहा है. जगतराम ने बताया कि तुंबा को न केवल पेयजल रखने के लिए बनाया गया है बल्कि उसके कई रूप और रंग भी इजाद किए गए हैं. जिसमें लैंप, पोर्ट और कई आकर्षक कलाकृतियां भी शामिल हैं. वहीं सूखे हुए तुंबा पर शिल्पकार कई तरह की सुंदर कलाकृतियां और उन्हें मनमोहक और आकर्षक रूप देते हैं.


लोगों को पसंद आ रही है ये कलाकृति


देश की राजधानी दिल्ली समेत बड़े महानगरों और शहरों में भी तुंबा की यह कलाकृतियां लोगों को काफी लुभा रही है. साथ ही अब ऑनलाइन के माध्यम से भी इसकी काफी डिमांड बढ़ गई है. इस  कला ने खुद गीत और संगीत से जुड़े मशहूर कलाकार कैलाश खेर को भी दीवाना बना दिया है. कैलाश खेर ने भी बस्तर के आदिवासियों के इस कला की तारीफ अपने सोशल मीडिया के पोस्ट में की है.


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