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पांच साल बाद भी बस्तर संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में नहीं ट्रॉमा सेंटर, जवानों को भी होती है दिक्कत

Bastar News: बस्तर के डिमरापाल अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर की लंबे समय से मांग है. इसके बिना, नक्सली मुठभेड़ या आईईडी विस्फोटों में घायल जवानों और सड़क दुर्घटना पीड़ितों को रायपुर रेफर करना पड़ता है.

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में बस्तरवासियों की ट्रॉमा सेंटर की लंबे समय से मांग पूरी होती दिखाई नहीं दे रही है, जिसके चलते बस्तरवासियों के साथ-साथ नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों को स्वास्थ्य संबंधी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, दरअसल ट्रॉमा सेंटर नहीं होने की वजह से पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में और आईईडी ब्लास्ट में घायल जवानों को रायपुर रैफर करना पड़ता है, लेकिन इस दौरान कई बार बीच रास्ते में ही जवान दम तोड़ देते हैं. 

पिछले 4 सालों से डिमरापाल अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर भवन तो बना दिया गया है, लेकिन अब तक इसे शुरू नहीं किया गया है, वहीं यहां उपकरण भी अब तक नहीं लगाए गए हैं,  बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम ने ट्रॉमा सेंटर को शुरू करने के आदेश देने के भी अब तक ट्रॉमा सेंटर की सुविधा शुरू नहीं हो सकी हैं, वहीं इस ट्रॉमा सेंटर में  घायलों को उपचार कब से मिल पायेगा इसको लेकर अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है.

पिछली सरकार ने की थी ट्रॉमा सेंटर बनाने की घोषणा
दरअसल बस्तर जैसे पिछड़े क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ सुविधा को दुरुस्त करने के लिए कांग्रेस सरकार ने बस्तर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर की सौगात देने की घोषणा की थी, लेकिन यह सौगात नई सरकार के बनने के बाद भी बस्तरवासियों को नहीं मिल पाई है,  माना जा रहा है कि इसके लिए और इंतजार करना पड़ सकता है.

ट्रॉमा सेंटर नहीं होने से नहीं मिल पा रहा है ईलाज
दरअसल बस्तर में ट्रॉमा सेंटर नहीं होने से सबसे ज्यादा दिक्कत नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों को हो रही है, जो आये दिन नक्सलियो से होने वाले मुठभेढ़ो में और नक्सलियों के आईईडी ब्लास्ट की चपेट में आकर घायल होते हैं, इसके अलावा सड़क दुर्घटना में भी गंभीर रूप से घायल मरीजो को भी बस्तर में ट्रॉमा सेंटर नहीं होने से ईलाज नहीं मिल पा रहा है. अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि ट्रॉमा सेंटर भवन का निर्माण पूरा हो चुका है, जल्द ही इसकी शुरुआत की जाएगी , लेकिन अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि ट्रॉमा सेंटर में  घायलों को इलाज कब से मिल पायेगा.

इधर सड़क दुर्घटना में घायल मरीजों और मुठभेड़ों में घायल जवानों को यहां इलाज नहीं मिल पा रहा है, जिसके चलते करोड़ो रुपये की लागत से बना अस्पताल रेफर सेंटर बनकर रह गया है, कई बार गंभीर रूप से घायल जवानो को  इलाज के लिये  रेफर करना पड़ता है, और इस दौरान  रास्ते में ही कई जवानों की मौत हो जाती है, वहीं सड़क हादसे में घायल गंभीर मरीज भी ट्रॉमा सेंटर नहीं होने से सफर के बीच रास्ते मे दम तोड़ देते हैं.

रेफर सेंटर बना डिमरापाल अस्पताल
गौरतलब है कि बस्तर पिछले 4 दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है और पूरे बस्तर संभाग में एक लाख से ज्यादा अर्धसैनिक बल नक्सल मोर्चे पर तैनात हैं, अंदरूनी इलाकों में आए दिन नक्सलियों से मुठभेड़ में जवान घायल होते हैं, यही नहीं नक्सली द्वारा प्लांट करने वाले आईईडी की चपेट में भी आते हैं, पुलिस कैंप में जवानों को केवल प्रारंभिक उपचार ही मिल पाता है, जिसके बाद उन्हें जिला अस्पताल पहुंचाया जाता है और वहां भी बेहतर इलाज नहीं मिल पाने से एयर एंबुलेंस से राजधानी रायपुर रेफर किया जाता है, लेकिन कई बार जवानों की आधे रास्ते में ही मौत हो जाती है.

वहीं बस्तर संभाग में सड़क दुर्घटना में घायल मरीजों को भी समय पर  इलाज नहीं मिल पाने से उन्हें दूसरे राज्यों में या राजधानी रायपुर में रेफर किया जाता है, इस समस्या को देखते हुए लंबे समय से बस्तर वासी जगदलपुर के सरकारी अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर बनाने की मांग कर रहे हैं, डिमरापाल अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अनूरुप साहू ने बताया कि अस्पताल परिसर में 20 बेड का ट्रॉमा सेंटर भवन बना लिया गया है, हालांकि कोरोना काल की वजह से इसे बनाने में काफी लंबा समय लग गया, लेकिन अब काम में तेजी लाई गई है. कोशिश की जा रही है कि जल्द से जल्द इसकी  ट्रॉमा सेंटर की शुरुआत हो सके.

ये भी पढ़ें: Bijapur IED Blast: बीजापुर में नक्सलियों के लगाए IED की चपेट में आया 10 साल का बच्चा, इलाज के दौरान मौत

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