Chhattisgarh Rath Yatra 2024: छत्तीसगढ़ का बस्तर हमेशा से ही अपनी कला, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्यता को लेकर पूरे देश में जाना जाता है, बस्तर का दशहरा हो या फिर बस्तर में मनाए जाने वाला गोंचा महापर्व  रथयात्रा, इन महापर्व  में बस्तर में अदा की जाने वाली सभी रस्म को देखने लोग दूर-दूर से बस्तर पहुंचते है और खूबसूरत वादियों के बीच आदिवासी समाज की संस्कृति और सभ्यता का गवाह बनने आते हैं.


दरअसल बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के बाद गोंचा पर्व को दूसरे बड़े पर्व का दर्जा दिया गया है.करीब  600 सालो से चली आ रही परंपराओं के मुताबिक इस पर्व को 27 दिनों तक मनाया जाता है. जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर बस्तर में भी भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र के तीन विशालकाय रथ निकाले जाते हैं, और शहर में इसकी परिक्रमा करायी जाती है, इस परम्परा को देखने  हजारो की संख्या में लोगो का जनसैलाब उमड़ पड़ता है...इस साल भी बस्तर में धूमधाम से रथयात्रा निकाला गया.


बस्तर में 600 सालो से चली आ रही है रथयात्रा की परम्परा 
बस्तर में रविवार को निभाई गई गोंचा रथ यात्रा रस्म के दौरान  तुपकी (बांस की बनी नली)की सलामी  के बाद ही रथयात्रा की शुरुआत की जाती है, तीन विशालकाय रथों में सवार भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र के रथ के दर्शन करने के लिए जगदलपुर शहर के जगन्नाथ मंदिर में भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.


करीब 600 साल पहले बस्तर के राजा महाराज पुरषोत्तम पैदल यात्रा करते हुए बस्तर से ओड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने पहुंचे थे. पुरी के राजा गजपति ने उन्हें जगन्नाथ मंदिर में मौजूद माता सुभद्रा का रथ दिया था, इसके बाद से ही बस्तर में जगन्नाथ रथयात्रा को बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा.


9 दिनों तक सीरासार जनकपुरी में दर्शन के लिए उमड़ेगा जनसैलाब 
बस्तर राजपरिवार के  सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि परंपराओ के अनुसार  गोंचा पर्व के पहले दिन ही भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा को अपने साथ गुंडेचा मंदिर लेकर जाते हैं. यहां दोनों 7 दिनों तक आराम करते हैं, इस दौरान बस्तर राजपरिवार भी भगवान जगन्नाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा पाठ करता है, और रथयात्रा के दिन राजपरिवार के द्वारा विशेष पूजा अर्चना की जाती है.


इधर बस्तर के आरण्यक ब्राह्मण समाज के लोगों के द्वारा अब अगले 9 दिनों तक जगदलपुर शहर के सीरासार भवन  में विधि विधान के साथ भगवान जगन्नाथ के 12 विग्रहों की पूजा की जाती है और इसे देखने केवल बस्तर से ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और देश के कोने कोने से भी लोग बस्तर पहुंचते हैं,गौरतलब है कि दिन बीतते गए और परंपराओं में बदलाव देखने को मिले, लेकिन बस्तर के लोग आज भी काफी उत्साह के साथ इस महापर्व में हिस्सा लेते हैं.


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