Mandai Fair In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में वनवासियों के द्वारा मनाए जाने वाली मंडई मेले की शुरुआत हो चुकी है. नए साल के पहले दिन से ही जिले में अलग-अलग गांव में मंडई मेला मनाया जाता है. इस मेले की खास बात यह होती है कि इसमें आदिवासियों की संस्कृति की झलक दिखती है और हर जाति समाज अलग-अलग तरीके से मंडई मेला मनाता है.


बस्तर जिले की पहली मंडई मेला दरभा ब्लॉक के नेतानार में मनाई जाती है. बकायदा 2 दिनों तक चलने वाले इस मंडई मेला में खास तरह की रस्मों को निभाया जाता है. इसमें बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी देवी के रूप नेतानारीन देवी की पूजा की जाती है. इस दौरान इस गुड़ी के प्रधान पुजारी को गांव वाले कंधे पर बैठाकर गुड़ी तक ले जाते हैं. यहां पूजा पाठ करने के बाद यहां से फिर कंधे पर बैठाकर उन्हें मंडई मेला में ले जाते हैं.


बताया जाता है कि ग्रामीणों द्वारा इस मंडई मेला में अपने गांव के प्रधान पुजारी को दिया गया एक सम्मान है. इसकी खास बात यह होती है कि पुजारी को घर से लेने के लिए बकायदा ढोल नगाड़ा और बस्तर के पारंपरिक बाजा के साथ पूरा गांव प्रधान पुजारी के घर पहुंचता है. फिर गाजे बाजे के साथ उन्हें देवगुड़ी और देव गुड़ी से मंडई मेला के स्थान तक लेकर जाते हैं. इस तरह की अनोखी परंपरा केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है.


पुजारी को दिया जाता है सम्मान


बस्तर के जानकार डॉक्टर सतीश मिश्रा बताते हैं कि सिर्फ बस्तर में ही इस तरह की अनोखी परंपरा निभाई जाती है. नए साल में गांव-गांव में मंडई मेला का आयोजन होता है, जिसमें पूरे गांव के लोग पहुंचते हैं. यहां खरीददारी करने के साथ ही ग्रामीणों यहां आयोजित जगार और रामायण नाट में शामिल होते हैं. मंडई मेले के 2 दिनों तक बस्तर जिले के हर गांव में रौनक होती है, दिवाली जैसा माहौल देखने को मिलता है. खास बात यह है कि दरभा ब्लॉक के नेतानार गांव से ही नये साल में मंडई मेला की शुरुआत होती है और यहां बेहद ही अनोखी परंपरा निभाई जाती है.


प्रधान पुजारी का बहुत महत्व


इस गांव में प्रधान पुजारी का काफी महत्व रहता है. यही वजह है कि देव गुड़ी में पूजा करने के लिए बकायदा प्रधान पुजारी को पालकी में या फिर कंधे पर बैठाकर पुजारी के घर से देव गुड़ी तक ले जाया जाता है. इस दौरान गांव में बारात जैसा माहौल होता है. बाकयदा ढोल नगाड़े और बस्तर की मोहरी बाजा के साथ पुजारी को देवगुड़ी तक पहुंचाया जाता है. यहां पुजारी के द्वारा पूरे गांव वाले की उपस्थिति में पूजा पाठ किया जाता है.


इसके बाद फिर प्रधान पुजारी को कंधे या पालकी में बैठा कर मंडई मेला तक ले जाया जाता है. बोलचाल की भाषा में इसे बस्तरिया उत्सव कहा जाता है, जहां आदिवासियों की अपनी देवी देवता के प्रति आस्था देखने को मिलती है. साथ ही उनकी  संस्कृति, रीति-रिवाज भी मंडई मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है.


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