Bastar Medical Students: 'युद्ध के बीच दें एग्जाम वर्ना...'यूक्रेन के इस फरमान से बस्तर के मेडिकल छात्र परेशान
Chhattisgarh: कुछ ऐसे छात्र हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा तो मिल रही है, लेकिन कुछ छात्र ऐसे हैं जो अब अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दूसरे देश में जाने को मजबूर हो रहे हैं.
Ukraine On Indian Medical Students: रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को एक साल पूरे हो गए हैं. इस एक साल में दोनों ही देशों ने एक-दूसरे पर बमबारी कर भारी तबाही मचाई. भले ही इस युद्ध के 1 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन अपनी जान बचाकर वापस भारत लौटे छात्र उस भयानक मंजर को याद कर कांप जाते हैं. वहां भारतीय छात्रों ने कैसे बंकर में रहकर अपने दिन काटे और भगवान से कितनी प्रार्थनाओं के बाद वापस भारत लौट पाए. अब इन छात्रों को अपनी भविष्य की चिंता सताने लगी है. छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से भी 40 छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन की राजधानी कीव गए हुए थे. हालांकि सभी 40 छात्र भारत वापस लौटने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी पढ़ाई पूरी तरह से छूट चुकी है.
कुछ ऐसे छात्र हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा तो मिल रही है, लेकिन कुछ छात्र ऐसे हैं जो अब अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दूसरे देश में जाने को मजबूर हो रहे हैं. हालांकि जिनकी 6 साल की कोर्स कंप्लीट हो चुकी है उन्हें दिल्ली बुलाकर डिग्री तो दे दिया गया, लेकिन बाकि कई ऐसे स्टूडेंटस हैं जिनकी आधी अधूरी पढ़ाई हुई है. अब उन्हें डिग्री मिलेगी या नहीं इसको लेकर चिंता बनी हुई है, क्योंकि लास्ट ईयर वाले छात्रों के लिए कीव के नेशनल मेडिकल कॉलेज ने फरमान जारी किया है कि अगर उन्हें डिग्री चाहिए तो यूक्रेन में ही उन्हें परीक्षा देनी पड़ेगी. उन्हें युद्ध के बीच अपने रिस्क में ही यहां आना पड़ेगा और अगर एग्जाम देने वह नहीं आ पाए तो उन्हें डिग्री नहीं दी जाएगी. इस फरमान के बाद छात्रों के परिजनों में भी काफी निराशा है और इसके लिए उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.
यूक्रेन सरकार का फरमान
दरअसल बस्तर जिले से 40 छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन के कीव गए हुए थे. इनमें से कई ऐसे छात्र हैं, जिनकी 2 साल की कोर्स भी पूरी नहीं हो पाई. यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध होने पर हालात बिगड़ने से उन्हें जान बचाकर वापस लौटना पड़ा. छात्रों के परिजनों का कहना है कि उन्होंने अपने छात्रों की पूरी फीस जमा कर दी और उम्मीद थी कि वापस लौटने के बाद यूक्रेन सरकार की ओर से सर्टिफिकेट मिल जाएगा. ऐसे कई छात्र हैं जिनका कोर्स तो कंप्लीट हो चुका है, लेकिन उन्हें डिग्री नहीं मिल पाई है. यही नहीं लास्ट ईयर के छात्रों को भी वापस यूक्रेन बुलाया जा रहा है और एग्जाम देने के बाद ही डिग्री मिलने की बात कही जा रही है. जगदलपुर के रहने वाले शेर सिंह तोमर ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं और दोनों ने यूक्रेन की राजधानी कीव में नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की है.
हालांकि उनकी बड़ी बेटी दीप्ति तोमर की मेडिकल पढ़ाई पूरी हो चुकी है और काफी पैसा खर्च करने के बाद हाल ही में उसे यूक्रेन से भारत आये यूनिवर्सिटी के स्टाफ द्वारा दिल्ली में डिग्री प्राप्त हुई. वहीं उनका बेटा निहाल तोमर की एक साल अभी भी कोर्स कंप्लीट होने के लिए बची हुई है.
यूक्रेन यूनिवर्सिटी से ऑनलाइन तो शिक्षा मिली लेकिन कहा गया कि उन्हें पोलैंड में आकर एग्जाम देना होगा और यही पढ़ाई करनी होगी, जिसके बाद उसे पोलैंड देश मे कोर्स कंप्लीट करने के लिए भेजा गया, लेकिन अब कीव के मेडिकल यूनिवर्सिटी से फरमान आया है कि निहाल को यूक्रेन पहुंचकर ही आने वाले 14 मार्च को एग्जाम देना होगा. उसके लिए पहले एक फॉर्म भरना होगा, जिसमें यह लिखा होगा कि उसे खुद अपने रिस्क पर आकर एग्जाम देना है और उसके बाद ही उसे डिग्री मिल पाएगी.
क्या कहना है छात्रों के परिजनों का
इस फरमान को लेकर नीहाल के पिता शेर सिंह तोमर का कहना है कि यूक्रेन और रूस के बीच अभी युद्ध थमा नहीं है. ऐसे में रिस्क लेकर अपने बेटे को यूक्रेन भेजना काफी खतरनाक साबित हो सकता है. इसलिए उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है कि कैसे भी मेडिकल यूनिवर्सिटी इस एग्जाम को पोलैंड में ही पूरा होने दें. वहीं जगदलपुर के रहने वाली एक और छात्रा शालिनी गुप्ता के परिजन शिवम गुप्ता का कहना है कि उनकी बहन शालिनी गुप्ता मेडिकल की शिक्षा लेने यूक्रेन गई हुई थी. हालांकि केंद्र सरकार की पहल से उनकी बहन सुरक्षित वापस घर तो लौट गई, लेकिन अब उसका भविष्य अधर में है.
साल 2020 में शालिनी का एडमिशन कराया गया था और अभी तक ढाई साल का ही कोर्स हुआ है. जबकि अभी भी ढाई साल का कोर्स बाकी है, लेकिन उन्हें जानकारी मिली है कि कोर्स पूरा करने के लिए युद्ध के बीच यूक्रेन बुलाया जा रहा है, जो काफी खतरनाक है. ऐसे में वे चाहते हैं कि केंद्र राज्य सरकार बच्चों का भविष्य अधर में ना लटके इसके लिए सरकारी मेडिकल कॉलेज में उनका एडमिशन कराएं, ताकि बचा हुआ ढाई साल का कोर्स पूरा कर सके.
परिजनों का कहना है कि ऑनलाइन क्लास भी बंद हो गई है और उन्हें शालिनी की कोर्स कंप्लीट कराने के लिए मजबूरन कजाकिस्तान में पढ़ाई पूरी करवाने के लिए भेजने का विचार करना पड़ रहा है. अगर सरकार उनकी मदद करे और शालिनी का सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला हो जाए तो इससे काफी राहत मिलेगी. छात्रों के घर वापस लौटे साल भर चुके हैं, लेकिन सरकार ने अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. ऐसे में उनके बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी है, इसलिए सरकार से मदद की गुहार लगाई है.
सरकार से मदद की लगा रहे परिजन गुहार
वहीं ऐसे और भी छात्र के परिजन हैं, जिन्होंने बच्चों के भविष्य के लिए सरकार से मदद की गुहार लगाई है. इन छात्रों में कुछ ऐसे भी छात्र हैं, जो एडमिशन के 1 साल बाद ही रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से भारत लौट गए. अब उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अब आगे करना क्या है. यूक्रेन सरकार के द्वारा मेडिकल पढ़ाई का कोर्स पूरी करने के लिए वापस तो बुलाया जा रहा है, लेकिन एक ऐसा फरमान जारी कर दिया है जिसको लेकर चिंता बनी हुई है.
बकायदा यूक्रेन जाने से पहले एक फॉर्म भी भरने को कहा जा रहा है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि अपने बच्चों को खुद के रिस्क पर अपनी कोर्स कंप्लीट करने के लिए वापस भेजें. साथ ही इसमें लिखा है कि अगर इस दौरान छात्र या छात्राएं किसी तरह के हमले का शिकार होते हैं तो सरकार इसकी जवाबदारी नहीं लेगी.
इस फरमान के बाद परिजन नहीं चाह रहे हैं कि उनके कोर्स को कंप्लीट करने के लिए वापस युद्ध के बीच अपने बच्चो को यूक्रेन भेजें. इसलिए सरकार से ही मदद की गुहार लगा रहे हैं और उनके बच्चों के भविष्य के लिए कोई ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं. फिलहाल बस्तर जिले के 40 छात्रों में कोई भी वापस यूक्रेन नहीं लौटा है और कई छात्रों को यूक्रेन से ऑनलाइन शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है.
ऐसे में वे अपने घर में ही बैठकर सरकार से मदद की टकटकिया लगाए बैठे हैं. क्योंकि परिजनों का कहना है कि मेडिकल शिक्षा के लिए अपनी जमा पूंजी कर लाखों रुपए लगा चुके हैं. ऐसे में अब सरकार से मदद का ही उन्हें एक सहारा है ताकि उनके बच्चों का भविष्य अंधकार में ना जाए और मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर देश में ही नौकरी पाकर देश के लोगों की सेवा करें.